जन सहयोग से बदली स्कूल की तस्वीर
अकसर कहा जाता है कि लगातार अंधेरे की शिकायत करने से बेहतर है एक दीया जला ही दिया जाए। ऐसा ही एक प्रयास जिला सिरमौर के शिक्षा खंड सराहां के तहत राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मेहंदोबाल के शिक्षकों व एसएमसी सदस्यों ने किया है।
जागरण संवाददाता, नाहन : अकसर कहा जाता है कि लगातार अंधेरे की शिकायत करने से बेहतर है कि एक दीया जला लिया जाए। ऐसा ही एक प्रयास जिला सिरमौर के शिक्षा खंड सराहां के तहत राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मेहंदोबाग स्कूल के शिक्षकों व एसएमसी सदस्यों ने कर दिखाया है। स्कूल के शिक्षकों तथा एसएमसी ने जनसहयोग से खस्ताहाल स्कूल भवन की तस्वीर ही बदल डाली। स्थानीय ग्रामीणों, शिक्षकों, एसएमसी व अभिभावकों ने धनराशि एकत्रित कर स्कूल में लाइब्रेरी, एक्टिविटी रूम, लैब व खस्ताहाल टूटे-फूटे फर्श पर टाइल्स लगवा कर स्कूल को संवार दिया है। इस कार्य पर करीब ढाई लाख रुपये की राशि खर्च की गई है।
मेहंदोबाग स्कूल में भवन संबंधी ढांचागत सुविधाओं का अभाव चल रहा था। लाइब्रेरी, प्रयोगशाला की भी समस्या थी। कोई बजट नहीं था। ऐसे में विद्यालय के प्रधानाचार्य ललित कुमार शर्मा ने सभी संसाधनों और वार्षिक सरकारी अनुदान का विवेकपूर्ण व्यय करते हुए एक सुंदर विज्ञान प्रयोगशाला और बरामदे के खाली पड़े हिस्से में लाइब्रेरी कक्ष बनवाया।
इस सारे अभियान में तत्कालीन स्कूल प्रबंधन समिति और इसके अध्यक्ष स्वरूप गौतम का भरपूर सहयोग मिला। इसके अलावा ग्रांउड फ्लोर के चार कक्षा कक्ष और बाहर बरामदे का फर्श बुरी तरह उखड़ा हुआ था। इन चार कमरों में टाइलें लगवा दी गई हैं। जब टाइलें लगवाने के लिए धन की कमी आड़े आने लगी तो प्रधानाचार्य और अध्यापकों ने अपना एक दिन का वेतन इस कार्य के लिए दे दिया। शिक्षक स्टाफ में से एक शिक्षक व शिक्षिका ने तो गुप्त दान के तौर पर 21 हजार रुपये इस कार्य के लिए दिए। बरामदे के लिए मोलकराम ने मुहैया करवाई टाइल
वहीं स्कूल के बरामदे के लिए टाइल का प्रबंध करने के लिए स्कूल प्रबंधन समिति अध्यक्ष और कुछ शिक्षक सेवानिवृत्त नेवल कमांडर मोलकराम शर्मा से मिलने उनके घर पहुंचे और विद्यालय की इस समस्या से अवगत कराया। उन्होंने बरामदे के लिए टाइल देना स्वीकार किया और एक हफ्ते के अंदर बरामदे में टाइलें लगवा दी गई। उसके बाद विद्यालय में रंग-रोगन कर उसे बिल्कुल नया बना दिया। कोरोना काल में ही करवाया काम
यह सारा कार्य कोरोना काल के दौरान करवाया गया। जब विद्यालय में विद्यार्थियों की आवाजाही नहीं थी। इस समय का भी एक तरह से सदुपयोग हो गया। विद्यालय में करवाए गए ये सारे कार्य इस बात का प्रमाण हैं कि अगर कुछ कर गुजरने का संकल्प हो तो उसे पूरा करना मुश्किल नहीं होता।