डॉक्टरों की कमी से बिगड़ रही स्वास्थ्य सुविधाओं की सेहत

हिमाचल प्रदेश सरकार व स्वस्थ विभाग के प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के दावे जिला शिमला में खोखले साबित हो रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 18 Feb 2019 09:24 AM (IST) Updated:Mon, 18 Feb 2019 09:24 AM (IST)
डॉक्टरों की कमी से बिगड़ रही स्वास्थ्य सुविधाओं की सेहत
डॉक्टरों की कमी से बिगड़ रही स्वास्थ्य सुविधाओं की सेहत

जागरण संवाददाता, शिमला : हिमाचल प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग के प्रदेश में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने के दावे जिला शिमला में खोखले साबित हो रहे हैं। राजधानी शिमला के जोनल अस्पताल दीन दयाल उपाध्याय (रिपन) में एक-एक चिकित्सक के सहारे सैकड़ों मरीजों को छोड़ा गया है। डॉक्टर को केवल ओपीडी में मरीजों का चेकअप नहीं करना पड़ता है, बल्कि वार्ड में जाकर भी मरीज देखने पड़ते हैं। जब अस्पताल में दाखिल मरीज को किसी तरह की परेशानी आती है तो डॉक्टर को ओपीडी छोड़ वार्ड में जाना पड़ता है, ऐसे में ओपीडी के बाहर लाइन में खड़े लोगों को परेशानी झेलनी पड़ती है। इतना ही नहीं एक डॉक्टर के छुट्टी पर जाने से ऑपरेशन भी टल जाते हैं, एक डॉक्टर ओपीडी संभाले या फिर ऑपरेशन या फिर वार्ड में दाखिल मरीजों को देखें। अस्पताल पहुंचे मरीजों को इंतजार करने के बावजूद कई बार इलाज नहीं मिल पाता है।

मेडिसिन ओपीडी की भी ऐसी ही स्थिति है, जहां पर सैकड़ों मरीज तो प्रतिदिन आते हैं लेकिन दो डॉक्टरों के सहारे ही ओपीडी चलती है। ऐसे में एक डॉक्टर के छुट्टी पर जाने से सारा जिम्मा दूसरे डॉक्टर पर आ जाता है। त्वचा रोग विभाग में तो एक ही डॉक्टर है। यदि डॉक्टर छुट्टी पर चले जाते हैं तो ओपीडी बंद करनी पड़ती है। इस कारण दूरदराज क्षेत्र से आए लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।

अस्पताल में कुछ विभाग ऐसे भी हैं, जहां दो से अधिक विशेषज्ञ चिकित्सक कार्यरत हैं। यहां तक कि रिपन अस्पताल में डेंटल ओपीडी में सर्जन सहित सात डॉक्टर बैठाए गए हैं, जबकि मरीजों की संख्या काफी कम है। जिन ओपीडी में मरीजों की संख्या अधिक है वहां पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं।

जिला के जोनल अस्पताल की स्थिति यह है, इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिला के दूरदराज क्षेत्रों में स्थापित पीएचसी, सीएचसी में क्या स्थिति होगी।

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रिपन अस्पताल में डॉक्टरों की स्थिति

विभाग,डॉक्टर

ऑर्थो,2

मेडिसिन,2

आई,3

ईएनटी,2

गायनी,4

रेडियोलॉजी,2

सर्जरी,1

डेंटल,7

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पीएचसी मशोबरा

शिमला ग्रामीण और कसुम्पटी विधानसभा क्षेत्र के बड़े हिस्से को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध करवाने वाले प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) मशोबरा कहने को तो 30 बिस्तर का है, लेकिन यहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ तक नहीं है। गर्भवती महिलाओं को कमला नेहरू अस्पताल या फिर रिपन के चक्कर काटने पड़ रहे हैं।

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कमला नेहरू अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं बदहाल

कमला नेहरू मातृ एवं शिशु अस्पताल कहने को तो प्रदेशस्तरीय अस्पताल है, लेकिन स्टाफ की भारी कमी है। वर्ष 1924 में स्वीकृत पद ही अभी तक यहां पर हैं। मरीजों की संख्या तो बढ़ी, लेकिन अस्पताल में डॉक्टर और अन्य स्टाफ नहीं बढ़ा। अस्पताल में बिस्तर भी बढ़ाए हैं, लेकिन स्टाफ नहीं। इन स्वीकृत पदों में से भी कई खाली हैं। कमला नेहरू अस्पताल में मेडिकल ऑफिसर का पद भी खाली है। फार्मासिस्ट के दो पद खाली हैं। ईसीजी भी उधार से चल रहा है।

एक्सरे सुविधा भी नहीं

कमला नेहरू अस्पताल में लंबे समय से एक्सरे की सुविधा भी मरीजों को नहीं मिल पा रही है। इस कारण मरीजों को निजी लैब में भारी राशि अदा कर एक्सरे करवाने पड़ रहे हैं, जबकि सरकार का दावा है कि गर्भवती महिलाओं को उपचार नि:शुल्क दिया जाता है।

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कमला नेहरू अस्प्ताल में स्टाफ की स्थिति

पदनाम,स्वीकृत पद,खाली

वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी,1,1

फार्मासिस्ट,4,2

वार्ड सिस्टर,11,10

नर्सिग स्टाफ,41,8

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी,29,8

ईसीजी तकनीशियन,1,1

लैब असिस्टेंट,3,3

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खनेरी अस्पताल में 33 में से केवल 16 डॉक्टर

जिला शिमला के रामपुर में स्थित व चार अन्य जिलों मंडी, लाहुल-स्पीति, कुल्लू व किन्नौर के लोगों को चिकित्सा लाभ देने के उद्देश्य से बनाए गए महात्मा गांधी चिकित्सा सेवा परिसर खनेरी में एक वर्ष से चिकित्सकों की भारी कमी है। शिमला के आइजीएमसी के बाद रामपुर में बनाए गए 250 बेड के इस अस्पताल को मिनी आइजीएमसी के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन किसी न किसी वजह से हमेशा अस्पताल सुर्खियों में ही रहा है। अधिक दिक्कत चिकित्सकों के अस्पताल में न होने की है।

मौजूदा समय में अस्पताल में 33 में से केवल 16 ही चिकित्सक सेवाएं दे रहे हैं। विशेषज्ञों की कमी होने के कारण मरीजों को आइजीएमसी या फिर प्रदेश से बाहर इलाज करवाने जाना पड़ रहा है। खनेरी अस्पताल में रोजाना 900 से एक हजार तक की ओपीडी है और कई मरीजों को बिना उपचार के भी वापस जाना पड़ता है या फिर दूसरे दिन अस्पताल आन पड़ता है।

प्रदेश सरकार रामपुर में इस कमी को पूरा करने में नाकाम साबित हुई है। अस्पताल में बीते तीन वर्ष से न तो अल्ट्रासाउंड का चिकित्सक है और न ही आधुनिक मशीन अब तक उपलब्ध करवाई जा सकी है।

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ट्रॉमा सेंटर का निर्माण अधर में

खनेरी अस्पताल में पूर्व कांग्रेस सरकार के समय में ट्रॉमा सेंटर बना कर उसे शुरू करने की योजना बनाई गई थी। अस्पताल में भवन निर्माण कार्य तो शुरू कर दिया, लेकिन एक वर्ष से सेंटर का निर्माण कार्य सुस्त पड़ गया है। इस कारण कांग्रेस ने भाजपा पर अस्पताल में भी राजनीति करने का आरोप लगाया है।

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-सिविल अस्पताल कुमारसैन दर्जा बढ़ा सुविधाएं नहीं

-बीएमओ का पद भी कई माह से खाली, कोई डेंटल डॉक्टर नहीं उपमंडल मुख्यालय कुमारसैन में स्थित सिविल अस्पताल में भी डॉक्टरों सहित कई अन्य पद रिक्त होने से मरीजों को दिक्कत पेश आती है। स्वास्थ्य खंड कुमारसैन में बीएमओ का पद भी रिक्त पड़ा है। इसके अलावा सिविल अस्पताल कुमारसैन में डेंटल डॉक्टर का एक पद, स्वास्थ्य अधिकारी के दो पद, स्टाफ नर्स के तीन पद, फार्मेसिस्ट के पद खाली हैं। जिससे यहां इलाज करवाने आने वाले मरीजों को दिक्कत पेश आती है। हालांकि लगभग तीन वर्ष पूर्व कुमारसैन अस्पताल का दर्जा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से सिविल अस्पताल किया था, लेकिन दर्जा बढ़ने के अलावा यहां सुविधाएं नहीं बढ़ी।

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