जलाशय में पहली बार ट्राउट मछली तैयार

हिमालयन रेंज से निकली सतलुज नदी पर निर्मित कोल बांध प्रोजेक्ट के जलाशय में पहली बार ट्राउट मछली का उतपादन किया गया है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 11 Feb 2021 07:03 PM (IST) Updated:Thu, 11 Feb 2021 07:03 PM (IST)
जलाशय में पहली बार ट्राउट मछली तैयार
जलाशय में पहली बार ट्राउट मछली तैयार

रमेश सिंगटा, शिमला

हिमालयन रेंज से निकली सतलुज नदी पर निर्मित कोल बांध प्रोजेक्ट न केवल बिजली से घरों को जगमगा रहा है बल्कि इसके जलाशय के जरिये मत्स्य संपदा को भी बढ़ावा मिलेगा। इस जलाशय में ट्राउट मछली तैयार हो गई है। भारत के किसी राज्य के जलाशय में ऐसा प्रयोग पहली बार किया गया जो सफल रहा है।

कोल बांध जलाशय में गत वर्ष अक्टूबर में पिंजरों (कैजिज कल्चर) में मछली के बीज डाले गए थे। अब ये मछलियां बन गई हैं। ऐसे 30 हजार बीज पानी में डाले गए थे जिनका प्रारंभिक स्टॉक तीन मीट्रिक टन हो गया है। इनमें से एक का आकार 345 ग्राम है। बीज से मछली बनने के लिए कोल बांध जलाशय का तापमान सबसे उपयुक्त माना गया है। यह तापमान 10 से 18 डिग्री सेल्सियस के बीच रहा है। हालांकि गर्मी के मौसम में इसमें काफी वृद्धि हो सकती है। हिमाचल प्रदेश के जलाशयों में हरियाणा के एक उद्यमी ने कैजिज कल्चर से प्रोजेक्ट लगाने के लिए हामी भरी है। वह पहले चरण में एक हजार पिंजरे लगाएंगे। उन्होंने इसके लिए चंबा जिला में स्थित चमेरा प्रोजेक्ट में सर्वे कर लिया है। मछली की 85 प्रजातियां

हिमाचल के जलस्त्रोतों में मछली की 85 प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें रोहू, कैटला, मृगल व ट्राउट शामिल हैं। गत वित्त वर्ष के दौरान प्रदेश के बाहर 492.33 मीट्रिक टन मछली का विपणन किया गया। मछलियों के वितरण के लिए छह मोबाइल वैन का उपयोग किया जाता है। मछली पालकों को इन्सुलेटिड बॉक्स भी प्रदान किए गए हैं। सुन्नी में बनेगी महाशीर हैचरी

प्रदेश सरकार द्वारा शिमला जिला के सुन्नी में नई महाशीर हैचरी एवं कॉर्प प्रजनन इकाई स्थापित की जा रही है। इस इकाई में सुरक्षित परिस्थितियों में मछली प्रजनन के तरीकों को विकसित करने के लिए 296.97 लाख रुपये की अनुमानित लागत आएगी। यह राज्य में मछली फार्म के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

---------- भारत में किसी जलाशय में ट्राउट पहली बार तैयार की गई है। मछली के 30 हजार बीजों के छह लॉट बनाए गए थे। इससे मत्स्य संपदा को बढ़ावा मिलेगा। अनूठा प्रयोग सफल रहा है। अब दूसरे जलाशयों में भी इस प्रयोग को आजमाया जाएगा। इसके लिए उद्यमी भी रुचि दिखा रहे हैं।

वीरेंद्र कंवर, पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्री

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