अब महापौर व उपमहापौर कार्यालय में नहीं टपकेगा पानी
अब महापौर व उपमहापौर कार्यालय की छत से पानी नहीं टपकेगा। मंगलवार को भवन की छत की मरम्मत का काम शुरू कर दिया गया।
जागरण संवाददाता, शिमला : अब महापौर व उपमहापौर कार्यालय की छत से पानी नहीं टपकेगा। मंगलवार को लंबे इंतजार के बाद आखिरकार टाउनहाल की छत की मरम्मत का काम शुरू हो ही गया। अब पानी की लीकेज को रोकने के लिए रिज मैदान की ओर से टाउनहाल के ऊपर बनी छत को ठीक किया जा रहा है। उम्मीद है कि आने वाले दो सप्ताह में इस काम को पूरा कर लिया जाएगा।
शहर के सबसे अहम भवन टाउनहाल का पूर्व सरकार के समय में आठ करोड़ रुपये से जीर्णोद्धार करवाया गया था। हैरानी की बात है कि इतने पैसे खर्च करने के बावजूद तीन साल बाद इसकी छत को दोबारा से ठीक करना पड़ रहा है। तीन साल के दौरान हर बरसात में शहर के लोगों को बेहतर और मजबूत घर बनाने के लिए प्रेरित करने वाले निगम के महापौर व उपमहापौर के कमरों से खुद पानी टपकता रहा। महापौर ने तीन से चार बार पर्यटन विभाग को छत की मरम्मत करने के लिए पत्र भी लिखा। कई बार ये मामला मुख्यमंत्री तक भी पहुंचा। उन्होंने संबंधित विभाग को इसमें सुधार करने के निर्देश दिए।
नगर निगम की ओर से छत से लीकेज होने का मामला विभाग के समक्ष उठाया गया था। इसमें यह तर्क दिया गया था कि इतना पैसा खर्च के बावजूद छत से लीकेज हो रही है। इससे यहां लगी लकड़ी भी खराब हो रही है। शहर की हेरिटेज इमारत को नुकसान पहुंच रहा है। रिसाव के कारण ही नहीं मिल रहा था कोई किरायेदार
नगर निगम में टाउनहाल के सबसे निचले फ्लोर को रेस्टोरेंट के रूप में किराये पर देने के लिए टेंडर प्रक्रिया चल रही है। भवन में पानी का रिसाव होने के कारण कोई भी कंपनी इसे लेने के लिए तैयार नहीं है। अब उम्मीद है कि छत के ठीक होने के बाद निगम को किरायेदार भी मिल जाएगा। 1908 में बना है भवन
ब्रिटिश शासनकाल के दौरान साल 1908 में यह भवन बना था। इस ऐतिहासिक टाउनहाल भवन में 2014 तक नगर निगम का कार्यालय चल रहा था। इस दौरान सरकार ने इस भवन के जीर्णोद्धार का फैसला लिया। तत्कालीन महापौर के विरोध के बावजूद टाउनहाल खाली करवाया गया। नगर निगम के सारे दफ्तर उपायुक्त कार्यालय परिसर में शिफ्ट कर दिए थे। 2014 में शुरू हुआ था काम
एशियन डेवलपमेंट बैंक की ओर से जारी आठ करोड़ रुपये से पर्यटन विभाग ने इसके जीर्णोद्धार का काम शुरू किया। यह काम 2017 तक पूरा होना था, लेकिन देरी के चलते यह काम अगस्त 2018 में पूरा हुआ। इसके बाद कई सामाजिक संगठनों ने आवाज उठाई कि इस ऐतिहासिक भवन में सरकारी दफ्तर खोलने की जगह इसका बेहतर इस्तेमाल हो सकता है।