फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रहे विकास कार्य
जागरण संवाददाता शिमला राजधानी शिमला में विकास को लेकर योजनाएं तो खूब बन रही हैं लेकिन
जागरण संवाददाता, शिमला : राजधानी शिमला में विकास को लेकर योजनाएं तो खूब बन रही हैं, लेकिन विभागों की लापरवाही के कारण फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। नतीजतन इन योजनाओं का लाभ लोगों तक पहुंच नहीं पा रहा है। विभागों की सुस्ती से प्रदेश की योजनाएं फॉरेस्ट क्लीयरेंस न मिलने के कारण अधर में अटकी हुई हैं। शहर में विभिन्न विभागों के विकास कार्यो के मामले ऐसे हैं जो छह माह से वन विभाग के पास पड़े हैं।
हैरानी की बात है कि संबंधित विभाग भी इसमें रुचि नहीं दिखा रहे हैं। विभाग औपचारिकताएं ही पूरी नहीं कर पा रहे हैं जिस कारण वन विभाग मंजूरी के लिए आवेदन को ऑनलाइन अपडेट नहीं कर पा रहा है। चार प्रोजेक्टों को ही फॉरेस्ट क्लीयरेंस अप्रूवल (एफसीए) की मंजूरी शिमला में मिल पाई है। इनमें तीन काम स्मार्ट सिटी के हैं, जबकि एक काम खेल विभाग का है।
कई मामले ऐसे हैं जो विभागों ने एफसीए की मंजूरी के लिए केंद्र को तो भेजे लेकिन इन प्रोजेक्टों पर केंद्र द्वारा लगाई गई आपत्तियों को विभाग दूर नहीं कर पाया। इस वजह से प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। सरकार ने एक हेक्टेयर तक लगने वाले प्रोजेक्टों के लिए डीएफओ को अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) के लिए अधिकृत किया है। बावजूद इसके विभागों की औपचारिकताएं पूरी न होने के कारण यह मामले डीएफओ स्तर पर भी आगे नहीं बढ़ पाए हैं। सलाहकार भी किए नियुक्त
खलीनी का वेंडिग जोन, जाखू एस्केलेटर और कृष्णा नगर में नालों के तटीकरण कार्य भी एफसीए की मंजूरी न मिलने के कारण अटके पड़े हैं। स्मार्ट सिटी के तहत शिमला में इन प्रोजेक्टों को पूरा करना था, लेकिन एफसीए की मंजूरी नहीं मिल पाई। हालांकि निगम ने इसके लिए सलाहकार भी नियुक्त किया है। बावजूद इसके मंजूरी के लिए आवश्यक दस्तावेज वन विभाग तक नहीं पहुंच पाए हैं। ऐसे में प्रोजेक्टों पर काम शुरू नहीं हो पा रहा है। स्मार्ट सिटी की प्रत्येक बैठक में एफसीए के मुद्दे पर चर्चा होती है, लेकिन प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। एफसीए की मंजूरी के लिए विभाग औपचारिकताएं पूरी नहीं कर पा रहे हैं, जिस कारण मामले लटके पड़े हैं। स्मार्ट सिटी और खेल विभाग के कुछ मामलों में औपचारिकताएं पूरी थीं उन्हें एफसीए की मंजूरी मिली है। पांच साल से करीब 35 मामले औपचारिकताएं पूरी न होने के कारण लटके हुए हैं।
पवन चौहान, डीएफओ शिमला शहरी।