फूलों से गुलजार रहने वाले सरोवर बन गए इतिहास
अंधाधुंध भवन निर्माण के साथ अतिक्रमण से प्राकृतिक जलस्रोतों के अस्तिव मिटने की कगार पर पहुंच गया है।
सुभाष आहलुवालिया, नेरचौक
अंधाधुंध भवन निर्माण के साथ अतिक्रमण प्राकृतिक जलस्रोतों के अस्तित्व पर भारी पड़ने लगा है। मानवीय दखल के कारण सदियों पुराने जल स्रोतों का वजूद मिटने की कगार पर पहुंच गया है। बल्ह घाटी में विलुप्त हो रहे प्राकृतिक जल स्रोतों को बचाने के लिए वन विभाग व पंचायतें कारगर कदम नहीं उठा रही हैं। बरसात के दिनों में कमल के फूलों से गुलजार रहने वाले सरोवर आवागमन करने वालों का ध्यान अपनी ओर खींचते थे लेकिन अब अतिक्रमण के कारण करीब एक किलोमीटर के दायरे में नौ सरोवरों में से अधिकतर का वजूद खत्म हो गया है।
बल्ह घाटी के नलसर गांव में एक किलोमीटर के दायरे में नौ प्राकृतिक जल स्रोत गांव की सुंदरता को चार चांद लगाते थे। इनमें से डडौर-बग्गी सड़क के साथ सटे कुछ सरोवर कमल के फूलों से गुलजार रहते थे। इसके अलावा गागल रोड पर बड़ी झील का भी एतिहासिक व धार्मिक महत्व है। 47 बीघा में फैली झील को पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने की योजनाएं तो बनी लेकिन योजनाएं फाइलों में भी दफन होकर रह गई हैं। इस कारण झील मिट्टी व गाद से लबालब हो गई है।
झील की कायाकल्प कर इसे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया जा सकता है। कई प्रकार की जलक्रीड़ाओं की भी इस झील में संभावनाएं हैं। लेकिन सरकार की उदासीनता इसके सुंदरीकरण पर भारी पड़ रही है। नेरचौक व डडौर के बीच सरोवर भी अंतिम सांसें गिन रहा है। अतिक्रमण के कारण इसका दायरा लगातार सिकुड़ रहा है। अगर वन विभाग व स्थानीय संस्थाओं ने इन सरोवरों के जीर्णोद्धार के लिए कोई कदम नहीं उठाए तो प्राकृतिक जल स्त्रोत इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएंगे।
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नलसर झील के सुंदरीकरण के लिए नई राहें नई मंजिल के तहत केस बना कर मंजूरी के लिए भेजा गया है। मंजूरी मिलते ही झील के सुंदरीकरण का कार्य किया जाएगा। सरोवरों के संवर्द्धन के लिए विभाग विभिन्न योजनाओं के माध्यम से कार्य कर रहा है। लोगों को भी इनके महत्व के बारे में जागरूक किया जा रहा है। अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ विभाग कार्रवाई करता रहा है।
-सुभाष चंद पराशर, वन मंडलाधिकारी सुंदरनगर।