कैंसर की पहचान करना अब हुआ आसान, बच सकेगी लोगों की जान

आइआइटी मंडी ने विकसित की फ्लूरोसेंट नैनोडॉट्स मार्कर तकनीक इसका प्रयोग आमतौर पर कोशिकाओं के अंदर की संरचना और घटकों के बारे में जानने के लिए किया जाता है।

By BabitaEdited By: Publish:Fri, 26 Apr 2019 11:58 AM (IST) Updated:Fri, 26 Apr 2019 11:58 AM (IST)
कैंसर की पहचान करना अब हुआ आसान, बच सकेगी लोगों की जान
कैंसर की पहचान करना अब हुआ आसान, बच सकेगी लोगों की जान

मंडी, जेएनएन। कैंसर कोशिकाओं की पहचान करना अब आसान होगा। इससे समय पर पहचान और उपचार संभव होने से लाखों लोगों की जान बचेगी। इस काम को हिमाचल प्रदेश स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने संभव कर दिखाया है। जैविक कोशिकाओं के अंदर पानी वितरण देखना अब संभव है। शोधकर्ताओं ने इसके लिए फ्लूरोसेंट नैनोडॉट्स तकनीक तैयार की है।

आरंभिक शोध से संकेत मिले हैं कि सामान्य कोशिकाओं की तुलना में कैंसर सेल्स के अंदर पानी का वितरण भिन्न होता है। शोधकर्ता टीम का नेतृत्व स्कूल ऑफ बेसिक साइंसिज, आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. चयन के नंदी ने किया। इन्सान के शरीर में कोशिकाओं के कई घटक होते हैं। इसमें सर्वाधिक 80 प्रतिशत पानी होता है। पानी के अणु आपस में कमजोर बंधन बलों से जुड़े होते हैं। इन्हें हाइड्रोजन बंधन कहते हैं। यह गतिमान होते हैं और पानी के परिवेश से प्रतिक्रियाओं के अनुसार बदलते हैं। दो कोशिकाओं के बीच पानी (जो कोशिका के कार्यों पर नियंत्रण करता है) के बारीक बदलाव से बायोमेक्रोमॉलेक्यूलर डिस्फंक्शन की समस्या होती है। इसके परिणामस्वरूप कैंसर या मानसिक रोग उत्पन्न हो सकते हैं।

मार्कर का प्रयोग आमतौर पर कोशिकाओं के अंदर की संरचना और घटकों के बारे में जानने के लिए किया जाता है। फ्लूरोसेंट मार्कर रोशनी प्रदान (प्रदीप्त हो) कर उस कंपोनेंट की मौजूदगी और संरचना दर्शाएगा, जिनसे यह जुड़ेगा। अब तक ऐसे मार्कर नहीं थे जो कोशिका के अंदर केवल पानी से बंधन बनाएं।डॉ. नंदी की टीम द्वारा तैयार फ्लूरोसेंट नैनोडॉट तैयार नैनोमीटर के स्केल का है अर्थात इन्सान के बाल की मोटाई से  80,0000 गुना छोटा है। नैनोडॉट कार्बन से बनाया गया है। इसमें हाइड्रोफिलिक (पानी से आकर्षण) और हाइड्रोफोबिक (पानी से विकर्षण) दोनों हिस्से हैं। जैसा कि साबुन के अणु में होता है।

एक ही नैनोडॉट के अंदर पानी आकर्षक और पानी विकर्षक हिस्से होने की वजह से ये खुद को पानी के हाइड्रोजन बंधन की तरह व्यवस्थित कर लेते हैं जैसे कि ग्रीज के चारों ओर साबुन के मिसेल (अणु समूह)

बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त नैनोडॉट प्रदीप्त (रोशन) हो सकते हैं अर्थात निकट अल्ट्रावायलेट लाइट से प्रकाशित करने पर दूर अल्ट्रावायलेट वेवलेंथ में रोशनी दे सकते हैं। इसके रोशनी देने में लगने वाला समय हाइड्रोजन बंधन नेटवर्क के चारों ओर नैनोडॉट की मिसेल संरचना पर निर्भर करता है।

शोधकर्ताओं की टीम ने कोशिकाओं में नैनोडॉट डाल कर यह दिखाया कि हाइड्रोजन बंधन और इसलिए पानी के कंटेंट (मात्रा) कोशिका के अलग-अलग हिस्सों में भिन्न है। बड़ी बात यह कि सामान्य कोशिकाओं की तुलना में कैंसर कोशिकाओं में हाइड्रोजन बंधन नेटवर्क भिन्न दिखा।

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