लाव-लश्कर के साथ निकली भगवान नृसिंह की जलेब
अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू के छठे दिन बुधवार को भगवान नृसिह की जलेब निकली।
संवाद सहयोगी, कुल्लू : अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव कुल्लू के छठे दिन बुधवार को भगवान नृसिंह की पारंपरिक जलेब पूरे लाव-लश्कर के साथ निकली। राजा की चनणी से शुरू हुई शाही जलेब में अंतिम दिन महाराजा घाटी व सैंज घाटी के सात देवी-देवताओं ने भाग लिया। जलेब में देवी देवताओं के रथ और सैकड़ों लोग पालकी के इर्द गिर्द नाचते गाते चले। सोने-चांदी से सजे देवरथों और ढोल-नगाड़ों की स्वर लहरियों के बीच निकली भव्य जलेब आकर्षण का केंद्र रही।
देवरथों के साथ चली जलेब में आगे नृसिंह की घोड़ी और पीछे 12 देवरथ तथा उनके साथ थिरकते देवताओं से पूरा वातावरण देवमय हो उठा। इस दौरान रघुनाथ जी के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने पालकी में पूरे ढालपुर शहर की परिक्रमा की। कड़े पुलिस पहरे के बीच यह जलेब दशहरा उत्सव की अंतिम जलेब निकली। देवी-देवताओं के साथ आए देवलुओं ने झूमते हुए फेरी पूर्ण की। जलेब का इतिहास
मुगलकाल और ब्रिटिश काल में भी जलेब की अनुमति थी। दशहरा उत्सव क्षेत्र की सुरक्षा का जिम्मा भगवान नृसिंह के पास था और वह परिक्रमा से क्षेत्र की किलेबंदी करते थे। वर्तमान में दशहरे की सुरक्षा का दायित्व पुलिस और खुफिया एजेंसियों के हाथ में रहता है फिर भी नृसिंह की जलेब प्रतीकात्मक रूप में आज भी जारी है। जब राजा जगत सिंह ने दशहरा आयोजन का प्रारंभ किया था, तब उन्होंने अठारह करडू की सौह जिसे आज ढालपुर कहा जाता है, उसकी लगभग 108 बीघा भूमि का भाग दशहरा आयोजन के लिए दिया था। इस भूमि पर पहले धान उगाया जाता था। तबसे लेकर आज तक यह भूमि भगवान रघुनाथ और उनके छड़ीबरदारों द्वारा दशहरे के आयोजन को मुफ्त दी जाती रही है। तबसे आज तक दशहरे की सुरक्षा कुल्लू जनपद के सभी देवी देवताओं के हारियानों को दी गई और भगवान नृसिंह को इनका मुखिया घोषित किया गया।