हिमाचल में पैदा होने वाला पीला राजमा दूर रखेगा रोग

राजमा को सब पसंद करते हैं लेकिन कुछ लोग गर्म तासीर के कारण इन्हें खाने से परहेज करते हैं। चौधरी सरवण हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की ओर से ईजाद की गई राजमा की त्रिलोकी किस्म रोगों को दूर रखेगी।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 08:37 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 08:37 PM (IST)
हिमाचल में पैदा होने वाला पीला राजमा दूर रखेगा रोग
लाहुल-स्पीति में तैयार पीला राजमा। सौजन्य कृषि विभाग

मुकेश मेहरा, मंडी। राजमा को सब पसंद करते हैं, लेकिन कुछ लोग गर्म तासीर के कारण इन्हें खाने से परहेज करते हैं। चौधरी सरवण हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर की ओर से ईजाद की गई राजमा की त्रिलोकी किस्म रोगों को दूर रखेगी। इस किस्म के राजमा की तासीर ठंडी होने के कारण कोई भी इसे खा सकता है। बरोट, लाहुल स्पीति, पांगी, रामपुर इत्यादि ठंडे क्षेत्रों के किसान इसकी खेती कर रहे हैं।

त्रिलोकी किस्म के राजमा की फसल 98 से 100 दिन में तैयार हो जाती है। किसानों को इसके अच्छे दाम मिल रहे हैं। यह राजमा बाजार में 200 से 300 रुपये प्रति किलो बिकते हैं। अन्य किस्म के राजमा 10 से 20 दिन देरी से तैयार होते। कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक ठंडे क्षेत्र में पैदा होने के कारण त्रिलोकी किस्म के राजमा में अधिक पोषक तत्व होते हैं। बवासीर जैसी बीमारी से जूझ रहे लोग भी इसे खा सकते हैं। कृषि विज्ञान केंद्र सुंदरनगर के प्रभारी पंकज सूद बताते हैं कि पीला राजमा खाने में स्वादिष्ट होता है। एक हेक्टेयर में 10 से 15 ङ्क्षक्वटल तक इसकी फसल तैयार होती है।

नहीं लगता झुलसा रोग

कृषि विभाग लाहुल की कृषि विकास अधिकारी अंजू ठाकुर बताती हैं कि त्रिलोकी किस्म यानी पीले राजमा को झुलसा रोग नहीं लगता। इसके पत्ते चौड़े गहरे, फूल सफेद रंग के होते हैं और पौधा 44 से 45 सेंटीमीटर लंबा होता है। फसल तैयार होने पर दाने भी नहीं गिरते हैं।

यह पोषक तत्व जाते हैं पाए

विशेषज्ञों के मुताबिक पीले राजमा में प्रोटीन, स्टार्ची, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर्स, एंटीआक्सीडेंट जैसे तत्व पाए जाते हैं। रोग प्रतिरोधक क्षमा को बढ़ाने व ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए विटामिन बी6, विटामिन सी, पोटाशियम, जिंक, मैग्नीशियम, कैल्शियम व आयरन भरपूर मात्रा में होता है।

कम होता फाइटोहिमोग्लूटन, इसलिए ठंडी है तासीर

फाइटोहिमोग्लूटन लाल राजमा में अधिक पाया जाता है। यह पीले राजमा में कम ही होता। पीले राजमा की परत पतली होने के कारण यह जल्दी पक जाता है और फाइटोहिमोग्लूटन पकाते वक्त ही नष्ट हो जाता है। इसके न होने से डायरिया, पेट दर्द, बदहजमी, बात, कफ, जोड़ों व पित्त संबंधित बीमारियों के लिए ठीक है।

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हमारा प्रयास है कि किसानों को बेहतर बीज की बेहतर किस्में मिलें जो स्वास्थ्य लाभ देने के साथ किसानों की आर्थिकी भी मजबूत करें। पीला राजमा इसमें बेहतर विकल्प है। यह पौष्टिक भी है और इसके दाम भी अच्छे मिलते हैं।

-डा. हरिंद्र चौधरी, कुलपति चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विवि पालमुपर।

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