'मैं' नहीं हम से ही बड़ी पहचान

मैं नहीं हम से हमारी एक बड़ी पहचान बनती है। आज के युग में मैं का महत्व भी बढ़ा है लेकिन एक अकेला अपनी मैं को लेकर कभी भी सफल नहीं हो सकता है। बीडी डीएवी सीसे स्कूल कोतवाली बाजार धर्मशाला में दैनिक जागरण द्वारा आयेजित संस्कारशाला में शिक्षकों ने कहा कि चाहे वह खेल का क्षेत्र हो या फिर अन्य कोई बड़ा मुकाम छूने की बात

By JagranEdited By: Publish:Thu, 20 Sep 2018 06:41 AM (IST) Updated:Thu, 20 Sep 2018 06:41 AM (IST)
'मैं' नहीं हम से ही बड़ी पहचान
'मैं' नहीं हम से ही बड़ी पहचान

जागरण संवाददाता, धर्मशाला : मैं नहीं हम से ही हमारी बड़ी पहचान बनती है। आज के युग में मैं का महत्व भी बढ़ा है लेकिन एक अकेला अपनी मैं को लेकर कभी सफल नहीं हो सकता है। बीडी डीएवी सीनियर सेकेंडरी स्कूल कोतवाली बाजार धर्मशाला में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित संस्कारशाला में शिक्षकों ने कहा कि चाहे वह खेल का क्षेत्र हो या फिर अन्य कोई बड़ा मुकाम हासिल करने की बात, हम एकजुट होकर ही किसी प्रतियोगिता को जीत सकते हैं। उन्होंने कहा, एक से एक मिलकर पर्वत, नदियां और रेगिस्तान की तपती जमीन को संगठन की शक्ति शीतल बना देती है। ऐसे ही विद्यार्थी जीवन में अगर मैं छूट जाए और हम का अहसास हो जाए तो हम समाज को नई दिशा दे सकते हैं। मैं अकेला एक कक्षा नहीं हो सकता है, इसलिए हम का बोध हमें शक्ति और संगठन का अहसास भी करवाता है। इस दौरान शिक्षक नितिन शर्मा ने संस्कारों के प्रति और भी जानकारियां विद्यार्थियों को दीं। कार्यक्रम में विद्यार्थियों के अलावा शिक्षकों सुनीता, नेहा शर्मा, अचला शर्मा, अवनीत कौर व सीमा ने उपस्थिति दर्ज करवाई।

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'संस्कार मनुष्य जीवन के विकास में सहायक सिद्ध होते हैं। संस्कार परंपरा और रीति रिवाजों का मान-सम्मान करना सिखाते हैं। अच्छे संस्कार वातावरण में मधुरता लाते हैं और जीवन को सुगम बनाते हैं।'

गौरी कौशल, छात्रा

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'भगवान की भक्ति करना, माता-पिता और शिक्षकों की आज्ञा मानना, झूठ न बोलना व दूसरों की सहायता करना ये हमारे संस्कार हैं। हम में मानवता व परमार्थ की भावना भी होनी चाहिए।'

सेजल, छात्रा

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'संस्कारों से अलंकृत व्यक्ति ऋषि-मुनियों के समान पूजनीय हो जाता है। संस्कार का बनना एक ऐसी प्रक्रिया है जो किसी के सीखने व सिखाने से नहीं बल्कि खुद आपके जीवन में किए जाने आचरण से बनते हैं।'

कनिका शर्मा, छात्रा

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'बड़ों की आज्ञा का पालन करना व छोटों से नम्रता भी संस्कारों की परिभाषा में आता है। कभी किसी के खिलाफ गलत न बोलें और परंपराओं को निभाना भी एक संस्कारित व्यक्ति की निशानी है।'

अपाला कपूर, छात्रा

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'संस्कार मनुष्य के कुल की पहचान होते हैं। संस्कारों से ही श्रेष्ठ समाज का निर्माण होता है। वास्तव में संस्कार मानव जीवन को परिष्कृत करने वाली एक ऐसी विद्या है जो मनुष्य को बुराइयों से दूर रखती है।'

-अक्षिता गुरुंग, छात्र

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