Union Budget 2021: हिमाचल प्रदेश के लिए केंद्रीय बजट में बहुत कुछ, जानिए क्या कहते हैं विशेषज्ञ
Union Budget for Himachal केंद्रीय बजट खास इसलिए है क्योंकि इसमें न ही आम तौर पर कर ढांचे में बदलाव से राजस्व को बढ़ाने के प्रयास हैं और न ही खर्च में कमी कर राजकोषीय घाटे को कम करने की जद्दोजहद। राजकोषीय घाटे की सीमाएं लांघने बारे कोई चिंता नहीं।
धर्मशाला, डॉ. राकेश शर्मा। Union Budget for Himachal, केंद्रीय बजट खास इसलिए है क्योंकि इसमें न ही आम तौर पर कर ढांचे में बदलाव से राजस्व को बढ़ाने के प्रयास हैं और न ही खर्च में कमी कर राजकोषीय घाटे को कम करने की जद्दोजहद। कोरोना से जूझ रही विश्वभर की अर्थव्यवस्थाओं की तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को पुन: खड़ा करने की कोशिशें इतनी प्रबल हैं कि राजकोषीय घाटे की सीमाएं लांघने बारे भी कोई चिंता नहीं। इसी बीच देश में युवाओं के कौशल एवं उद्यम विकास आधारित मिशन स्टार्ट अप और आत्मनिर्भर भारत को वैसे ही केंद्रबिंदु बनाए रखा गया है जैसे सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम को। इनके लिए प्रोत्साहन की बयार इतनी कि आयात-निर्यात तक का माहौल सुगम बनाया गया है।
छोटे राज्यों को दो स्तर पर केंद्रीय बजट से उम्मीद होती है। एक, व्यक्तिगत तौर पर करों की रियायत के लिए। दूसरा, प्रदेश सरकार को केंद्रीय मदद। बेशक केंद्रीय बजट प्रदेश को प्रत्यक्ष तौर पर धन आवंटन नहीं करता परंतु केंद्र प्रायोजित कार्यक्रमों, योजनाओं के माध्यम और करों से प्राप्त राजस्व को वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप बांट कर राज्यों के बजट को प्रभावित करता है।
करों से प्राप्त राजस्व के आबंटन और वित्त आयोग के अनुदान में पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले 2021-22 में 21 फीसद वृद्धि दर्ज हुई जो सभी राज्यों की वित्तीय स्थिति के लिए अच्छा संकेत है। केंद्र प्रायोजित कार्यक्रमों के माध्यम से भी प्रदेश के विभिन्न विभागों को सहायता बढ़ेगी हालांकि वित्त वर्ष 2020-21 के संशोधित आंकड़ों के अनुसार इसमें गिरावट दिखाई देगी क्योंकि कोरोना के कारण इन मदों में अप्रत्याशित वृद्धि करनी पड़ी थी। हिमाचल सहित 17 राज्यों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि राजस्व घाटा अनुदान पिछले वित्तीय वर्ष के मुकाबले तकरीबन 60 प्रतिशत बढ़ा है। बेशक इसमें अब 14 के बजाय 17 राज्य हिस्सेदार होंगे।
कोरोना के भयावह संकट से सबक लेकर स्वास्थ्य के बजट में अप्रत्याशित 135 फीसद वृद्धि हर्ष का विषय है क्योंकि स्वास्थ्य और शिक्षा ही किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास की रीढ़ हैं। इससे हिमाचल प्रदेश के स्वास्थ्य ढांचे में भी आवश्यक सुधार होगा जो वर्तमान में किन हालात में है, छुपा नहीं। बजट में लक्ष्य यह रहेगा कि ऐसी व्यवस्था बनाई जाए कि कम से कम लोग ही अस्पताल पहुंचें। इस संदर्भ में केंद्रीय मद को हम कागजी प्रोजेक्ट से आगे धरातल पर सही ढंग से उतार पाएं तो प्रदेश की जनता का भला हो जो आज भी प्रदेश के सर्वोच्च अस्पताल के बेहद सीमित आपातकाल कक्ष में प्रवेश पा कृतज्ञ हो जाती है। जल जीवन मिशन को शहरी क्षेत्र तक ले जाने के लिए बजट में पिछले वर्ष के 11 हजार करोड़ रुपये के मुकाबले इस वर्ष 50 हजार करोड़ का लक्ष्य हिमाचल जैसे राज्यों में पानी और सीवेज ट्रीटमेंट की बुनियादी जरूरत को पूरा कर सकता है।
शहरी क्षेत्रों में सामुदायिक परिवहन को निजी, सार्वजनिक सहभागिता में चलाने की बजट में व्यवस्था भी प्रदेश को अब आकलन करने पर मजबूर कर सकती है। रेलवे ट्रैक में अधिकाधिक विस्टाडोम चलाने व स्पीड बढ़ाकर यात्रा समय अवधि को घटाने के बारे में भी प्रदेश को प्रयत्न करने चाहिए क्योंकि इस ओर बजट के लक्ष्यों में प्रावधान दिखाई दिए हैं और पूर्व में कुछ प्रयास हुए भी हैं। सहकारी समितियों को और आसानी से गठित एवं संचालित करने बारे भी स्पष्ट सुधार की बात कही है।
बजट में समर्थन मूल्य को लागत के डेढ़ गुना रखने के लक्ष्य से भी किसानों की आय को दोगुना करने में बल मिलेगा। हिमाचल जैसे हिंदी भाषी राज्यों के लिए राष्ट्रीय भाषा अनुवाद कमीशन की स्थापना मददगार होगी क्योंकि जन-मानस की हिंदी भाषा फिर स्वयं शासन-प्रशासन के लिए भी आसान हो पाएगी और आमजन के लिए भी। कोरोनाकाल और उससे आई मंदी से निपटने के लिए एफआरबीएम एक्ट के लक्ष्य के अनुरूप राजकोषीय घाटा रखने के बारे में केंद्र ने भले स्वयं इस तर्क पर छूट ली हो कि देश को संकट से बाहर निकालना है परंतु राज्यों को इस सीमा के अंदर ही पैर पसारने के संकेत भी बजट भाषण में स्पष्ट सुनाई पड़े हैं। वित्त आयोग की सिफारिश के मुताबिक 2023-24 तक राज्यों को राजकोषीय घाटा सकल घरेलू राज्य उत्पाद का तीन प्रतिशत पर ही रखना होगा।
स्वरोजगार के साथ अन्य के लिए रोजगार के अवसर जुटा आज के पढ़े लिखे युवा उद्यमी बनने के द्वार पर खड़े हैं, बस एक पहल की जरूरत है। माहौल और भी अनुकूल है क्योंकि बरसों से चाही जाने वाली नौकरियों में अब वेतन, भत्ते, प्रोमोशन, सुविधाएं निम्न चरण पर हैं और कार्य-तनाव व जी-हज़ूरी शिखर पर। केंद्र के बजट ने न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन के लक्ष्यों का उल्लेख केवल केंद्र के दायरे में कर इत्यादि सरलीकरण से जोड़ा है परंतु राज्यों को इसे व्यापक बनाना होगा विशेष तौर पर जहां नए उद्यम को प्रोत्साहन की बात हो अन्यथा बरसों की लाटसाहबी न ही निजी क्षेत्र की कृषि व सहकारी क्षेत्र को सम्मान दे पाई है और न ही किसी भी स्तर के उद्यम और निवेश को।
कुल मिलाकर, प्रदेश के लिए स्थिति लगभग पिछले वर्षों के समान ही है जहां केंद्र से वित्तीय मदद एवं कार्यक्रम लगातार बढ़ते जा रहे हैं और यह अब हिमाचल की कार्यव्यवस्था पर निर्भर करता है कि हम किन-किन कार्यक्रमों परियोजनाओं को केंद्र से खींच पाते हैं और कितनी ईमानदारी से धरातल पर उतारने वाले प्रयास करते हैं।
(लेखक हिमाचल लोक प्रशासन संस्थान (हिपा) शिमला में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, ये लेखक के निजी विचार हैं)