World Trauma Day : समय पर उपचार न मिलने से 80 फीसद मरीजों को भुगतना पड़ता है अंजाम
World Trauma Day हिमाचल प्रदेश में ट्रामा मरीजों पर लापरवाही भारी पड़ रही है। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां और देरी से उपचार मिलने का खामियाजा 80 फीसद मरीजों को भुगतना पड़ता है। लापरवाही से अस्तपाल पहुंचाने के कारण उन्हें अंगों या फिर जीवन से हाथ धोना पड़ रहा है।
शिमला, यादवेन्द्र शर्मा।
World Trauma Day, हिमाचल प्रदेश में ट्रामा मरीजों पर लापरवाही भारी पड़ रही है। प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां और देरी से उपचार मिलने का खामियाजा 80 फीसद मरीजों को भुगतना पड़ता है। लापरवाही से अस्तपाल पहुंचाने के कारण उन्हें अंगों या फिर जीवन से हाथ धोना पड़ रहा है। प्रदेश में ट्रामा सेंटर की कमी भी मरीजों पर भारी पड़ रही है।
आघात शारीरिक और मानसिक दोनों तरह का होता है। ऐसे मरीजों के लिए उपचार के लिए अधिकतम छह घंटे अवधि निर्धारित है। इसे गोल्डन पीरियड भी कहते हैं। आघात वाले मरीज को अस्पताल पहुंचाने के लिए ज्यादा एहतियात बरतने की जरूरत होती है।
हादसे या गिरने के कारण गंभीर रूप से घायल लोग ट्रामा मरीजों की श्रेणी आते हैं, जबकि किसी भी तरह का मानसिक आघात पहुंचने पर ऐसे मरीज को ट्रामा की श्रेणी में न रख मेडिकल इमरजेंसी की श्रेणी में रखा जाता है। प्रदेश में ट्रामा सेंटर की कमी और अस्पतालों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी भारी पड़ रही है।
बेहतर सुविधाओं का अभाव
प्रदेश में सबसे पहले बिलासपुर व कुल्लू में ट्रामा सेंटर शुरू हुआ। इसके अलावा मेडिकल कालेज में भी ट्रामा सेंटर शुरू किए गए। नेरचौक मेडिकल कालेज का ट्रामा सेंटर बन गया है। 2009 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा ने ट्रामा सेंटर बिलासपुर में खोलने के प्रयास किए। आज भी ए स्तर का ट्रामा सेंटर प्रदेश में नहीं है। आइजीएमसी शिमला में बन रहे ए लेवल के ट्रामा सेंटर के अगले वर्ष मार्च तक शुरू होने की उम्मीद है।
ट्रामा या आघात वाले मरीजों के लिए सावधानियां
-मरीज को बाईं तरफ करवट लिटाकर जल्द अस्पताल पहुंचाएं।
-आघात वाले मरीज को कुछ भी खिलाना व पिलाना घातक।
-दौरे पडऩे पर झाड़-फूंक की अपेक्षा जल्द अस्पताल पहुंचाएं।
तीन स्तर के होते हैं ट्रामा सेंटर
ट्रामा सेंटर ए,बी और सी तीन स्तर के होते हैं। इसी के आधार पर इनके निर्माण और उपकरण आदि के लिए राशि और स्टाफ की तैनाती होती है। ए स्तर के ट्रामा सेंटर में न्यूरो सर्जन सहित अन्य सर्जन व विशेषज्ञ चिकित्सक रहते हैं और 12 करोड़ की राशि जारी होती है। जबकि बी स्तर में आठ करोड़ और सी स्तर के लिए तीन करोड़ की राशि जारी होती है।
ट्रामा मरीजों को देरी से उपचार मिलने और लापरवाही के कारण बहुत अधिक नुकसान होता है। लोग दौरा पडऩे पर झाड़ फूंक के चक्कर में रहते हैं। आघात वाले मरीजों के उपचार के लिए छह घंटे अधिकतम निर्धारित है।
-डा. जनकराज, विभागाध्यक्ष न्यूरोसर्जरी व चिकित्सक अधीक्षक आइजीएमसी, शिमला।