तिब्बत की स्वतंत्रता से ही स्थापित हो सकती है एशिया में शांति: अमर कुमार

21वीं सदी का गुजरता दौर एशिया में दो महाराज्यों के मध्य टकराव को और निकट लाता जा रहा है। तिब्बत की आजादी को लेकर पिछले कई दशकों से आंदोलन चल रहा है। वहीं भारत व चीन के बीच के संबंध में दिन व दिन बिगड़ रहे हैं।

By Richa RanaEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 11:11 AM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 11:11 AM (IST)
तिब्बत की स्वतंत्रता से ही स्थापित हो सकती है एशिया में शांति: अमर कुमार
तिब्बत की आजादी को लेकर पिछले कई दशकों से आंदोलन चल रहा है।

धर्मशाला, जेएनएन। 21वीं सदी का गुजरता दौर एशिया में दो महाराज्यों के मध्य टकराव को और निकट लाता जा रहा है। इनके मध्य सीमा, व्यापार, विचारधारा, क्षेत्र में प्रभुत्व का बढ़ता टकराव यदि विकट मोड़ लेता है, तो हिंदू महासागर से उठी यह ज्वाला एशिया से शुरू होकर पूरे विश्व को इसमें समेट लेगी। सामान्य हथियारों से लेकर अणु, परमाणु शस्त्रों का प्रयोग हमें इस संघर्ष में देखने को मिलेगा और मानवता का संपूर्ण नाश निश्चित हो जाएगा। इस संघर्ष को न्यून करने का एकमात्र मार्ग है स्वतंत्र तिब्बत।

तिब्बत की आजादी को लेकर पिछले कई दशकों से आंदोलन चल रहा है। वहीं भारत व चीन के बीच के संबंध में दिन व दिन बिगड़ रहे हैं। 7वीं शताब्दी में सेन गेंपो नपामक शासक ने इस राज्य की नींव रखी जिसका विवाह नेपाल की राजकुमारी से हुई और और बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार राजा गेम्पो ने किया। राजा गेंपो ने तुर्की ओर मध्य एशिया तक अपने राज्य का प्रसार किया। 12वीं शताब्दी में मंगोल शासक चंगेज खान ने तिब्बत और चीन दोनों को अपने अधीन कर लिया। कुछ समय बाद दोनों मंगोल नियंत्रण से मुक्त हो गए। 17वीं शताब्दी से चीन ने तिबत को हड़पने का प्रयास आरंभ किया। जिसकी आंशिक प्राप्ति उन्हें 1911 की। परंतु 912 में 13वें दलाईलामा ने तिब्बत को एक स्वतंत्र राज्य घोषित किया।

1949 में चीन ने अपनी सैन्य शक्ति से तिब्बत को अपने कब्जे में ले लिया और कहा कि हमने तिब्बत को स्वतंत्र करवा लिया। उस समय भारत को अपनी स्वतंत्रता मिली थी और भारत को दो राज्यो में विभक्त कर दिया गया था। भारत की तात्कालिक स्थिति ऐसी नही थी कि भारत किसी राज्य की सैन्य सहायता कर सके। भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि आपने किससे तिब्बत को आजाद करवा लिया, तिब्बत तो पहले से ही आजाद था। 1951 में चीन ने तिब्बत के शिष्टमंडल से साथ एक संधिपत्र पर हस्ताक्षर करवा लिए, परन्तु शीघ्र ही वहां के नागरिकों विद्रोह कर दिया लेकिन चीन ने उसका दमन कर दिया।

14वें दलाईलामा ने भारत में शरण ली और निर्वासित तिबत सरकार का गठन किया। तिबत की सभ्यता, संस्कृति, धर्म, खानपान, भाषा चीन से भिन्न है। चीन ने 1961 की सांस्कृतिक क्रांति के समय तिब्बत के बौद्ध मंदिरों को तहस नहस कर दिया। कौटिल्य मंडल नीति के अनुसार महाराज्यो के मध्य छोटे राज्यो का होना अति आवश्यक है अन्यथा दोनो के मध्य युद्ध अटल हो जाएगा। कितुं चीन की साम्राज्यवादी और तात्कालिक लाभ की नीति ने क्षेत्र में अस्थिरता को जन्म दे दिया है।

तिब्बत को संसार की छत कहा जाता है, क्योंकि विश्व की अनेकों नदियों का उद्गम स्थल इसे कहा जाता है। आसस, इंडस, सिंधु, बह्मपुत्र इत्यादि। चीन ऊर्जा प्राप्ति के लिए इनके ऊपर हाइड्रो प्रोजेक्ट लगता जा रहा है। जिसका प्रभार भारत, नेपाल, श्रीलंका, भूटान, पाकिस्तान व अफगानिस्तान पर पड़ रहा है। सहनशक्ति के परे होने पर इन सब राज्यो में संघर्ष अनिवार्य हो जाएगा।

अतः भारत एशिया और विश्व के लोकतांत्रिक राज्यो का यह कर्तव्य बनता है कि वह तिब्बत को स्वतंत्र करवाए। संप्रभू राज्य तिब्बत नेपाल की भांति मधयस्थ राज्य बन क्षेत्र में शांति स्थापित करेगा। प्रदेश के केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोधार्थी अमर कुमार ने पंडित नेहरु, दीन दयाल उपाध्याय व 14वें दलाईलामा ने तिब्बत की स्थिति पर गहन चिंतन किया है। नास्त्रेदमस कहा करते थे कि जो 21वीं सदी में हिंद महासागर पर राज करेगा वह विश्व पर राज करेगा। परंतु यदि तिब्बत स्वतंत्र रहा तभी यह क्षेत्र स्थिर रहेगा।

chat bot
आपका साथी