पैकिंग व ट्रांसपोर्टेशन से प्रभावित नहीं होगी फल और सब्जी की गुणवत्ता
पैकिंग व ट्रांसपोर्टेशन से अब फल व सब्जी की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी। पैङ्क्षकग मैटीरियल पहले से ज्यादा सस्ता कारगर व ईको फे्रंडली होगा। खेत व बगीचे से लेकर बाजार तक फल व सब्जी की ताजगी व गुणवत्ता बरकरार रहेगी।
हंसराज सैनी, मंडी।पैकिंग व ट्रांसपोर्टेशन से अब फल व सब्जी की गुणवत्ता प्रभावित नहीं होगी। पैङ्क्षकग मैटीरियल पहले से ज्यादा सस्ता, कारगर व ईको फे्रंडली होगा। खेत व बगीचे से लेकर बाजार तक फल व सब्जी की ताजगी व गुणवत्ता बरकरार रहेगी। किसान व बागवानों को आर्थिक नुकसान नहीं होगा। ग्राहकों को मार्केट में अच्छे उत्पाद मिलेंगे। देश के किसान व बागवान प्रतिस्पर्धा के इस दौर में निजी कंपनियों से मुकाबला करने में सक्षम होंगे। पैकिंग मैटीरियल तैयार होने पर ही इसकी कीमत तय हो पाएगी।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी किसानों व बागवानों को पैङ्क्षकग की आधुनिक तकनीक उपलब्ध करवाएगी। आइआइटी के शोधकर्ताओं ने पैकिंग प्रोटोटाइप विकसित करने पर काम शुरू कर दिया है। शोधार्थी प्रदेश के फल, सब्जी उत्पादक क्षेत्रों व मंडियों में जाकर वर्तमान में मार्केट में उपलब्ध पैङ्क्षकग मैटीरियल का अध्ययन कर रहे हैं। कृषि उपज एवं विपणन समिति (एपीएमसी) ने आइआइटी मंडी के स्कूल आफ इंजीनियङ्क्षरग को पैङ्क्षकग प्रोफोटाइप विकसित करने के लिए करीब 18 लाख का प्रोजेक्ट सौंपा है।
बोरी व पालीथीन बैग से मिलेगा छुटकारा
हिमाचल प्रदेश सहित देश के अन्य राज्यों के किसान व बागवान खेत व बगीचे में तैयार फल व सब्जी निकालने के बाद उसे बोरी, प्लास्टिक क्रेट, पालीथीन बैग, बाल्टी या फिर बांस से बनी टोकरी में डालते हैं। इसके बाद भंडारण कर उसकी ग्रेडिंग करते हैं। इन्हें गत्ते के डिब्बे, बोरी व क्रेट में उत्पाद मार्केट तक भेजा जाता है। खेत व बगीचे से सब्जी व फल निकालने तक उनकी तागजी व गुणवत्ता पर बरकरार रहती है, लेकिन मैन्युअल तरीके से तुड़ान, पैङ्क्षकग व घटिया स्तर के पैकिंग मैटीरियल की वजह से फल व सब्जी की गुणवत्ता प्रभावित हो जाती है। इस कारण बेहतर दाम नहीं मिलते हैं। ग्राहक भी खराब उत्पाद खरीदने से कन्नी काटते हैं। बोरी व पालीथीन बैग में उत्पाद के सडऩे की संभावना अधिक होती है।
लाहुल-स्पीति व मंडी जिले के सराज घाटी का मटर मार्केट में पहुंचने तक किसानों को रास्ते में एक से दूसरी बोरी में डालना पड़ता है। इससे भी काफी नुकसान होता है। बोरी व गत्ते के डिब्बे में फलों को रगड़ लगने की संभावना रहती है। करीब 15 फीसद तक उत्पाद खराब हो जाते हैं।
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किसान व बागवानों के पास पैङ्क्षकग तकनीक का अभाव है। अब भी पैङ्क्षकग के पुराने तरीके अपनाए जा रहे हैं। फल व सब्जी बोरियों व पालीथीन बैग में मार्केट भेजी जाती हैं। इससे 10 से 15 फीसद तक उत्पाद खराब हो जाते हैं। आइआइटी मंडी को आधुनिक पैकिंग मैटीरियल विकसित करने के लिए 10 लाख का प्रोजेक्ट सौंपा है।
-नरेश ठाकुर, प्रबंध निदेशक कृषि उपज एवं विपणन समिति हिमाचल प्रदेश।