शेरिजयाच मेला : बुरी शक्तियों से रक्षा के लिए पांगी के लोगों ने मांगी मन्नत

पांगी स्थित मिंधल माता मंदिर में कार्तिक प्रतिपदा (पूर्णिमा के दूसरे दिन) शेरिजयाच मेला मनाया गया। मेले में पांगी की पांच प्रजाओं के साथ किरयूनी सहित समस्त पांगी में रहने वाले परिवारों के मुखिया सुख समृद्धि मवेशियों सर्दियों में आसुरी शक्तियों से रक्षा करने की मन्नत मांगी।

By Virender KumarEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 09:45 PM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 10:15 PM (IST)
शेरिजयाच मेला : बुरी शक्तियों से रक्षा के लिए पांगी के लोगों ने मांगी मन्नत
पांगी में धूमधाम से मनाया शेरिजयाच मेला। जागरण

पांगी, कृष्ण चंद राणा।

पांगी स्थित मिंधल माता मंदिर में कार्तिक प्रतिपदा (पूर्णिमा के दूसरे दिन) शेरिजयाच मेला मनाया गया। मेले में पांगी की पांच प्रजाओं के साथ किरयूनी सहित समस्त पांगी में रहने वाले परिवारों के मुखिया सुख समृद्धि, मवेशियों, सर्दियों में आसुरी शक्तियों से रक्षा करने की मन्नत लेकर माता के मंदिर पहुंचे तथा शुद्ध देसी घी से हो रहे हवन में आहुति डाली। शेरिजयाच के दिन हवन कुंड में लोहे का दीपक रखा जाता है, उसमें लाल चुनसरी की सोती के साथ घी लगाकर आहुति डाली जाती है। आहुति देने का काम पीरपंजाल की चोटियों पर चांद की रोशनी आते शुरू होता है। मान्यता के अनुसार मां कालिका जब चेंडीपास से पांगी की ओर आ रही थीं तो चेंडीपास में चंड और मंड में मुंड राक्षसों का वध किया था। जहां चंड का वध किया, उस स्थान का नाम चेंडी और जहां का वध किया उस स्थान का नाम मंड रखा गया है। चंड-मुड के वध करने के बाद कालिका मां ने अपनी भक्तिन घुंगती के घर भटवास गांव को अपना निवास स्थान बनाया और एक शिला के रूप में प्रकट हुई। उस समय से ङ्क्षमधल माता ने अपनी भक्त घुंगती को वरदान दिया था कि पांगी में कार्तिक मास की पूर्णमासी के उपरांत प्रतिपदा के दिन खुले आसमान के नीचे घी के दीप जलाकर आहुति देंगे तो पांगी के साथ-साथ समस्त संसार की आसुरी शक्तियों से मां रक्षा करेगी। तब से इस को दीप प्रज्वलित कर आहुति दी जाती है। इस दीप को आकाश दीया कहा जाता है।

मां कीलिका पूरे संसार की रक्षक है। पांगी में इनका निवास ङ्क्षमधल भटवास में है। हालांकि, माता का वास हर स्थान में है। कई स्थानों पर माता की पूजा पाठ अलग-अलग विधि विधान से की जाती है।

मंगल चंद, जगाड़ी(चेला) ङ्क्षमधल माता।

मां कालिका की महिमा अपार है, जो भी सच्चे मन से माता की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। माता ने चंड-मुंड का वध करके मानव जाति की रक्षा की थी। उस काल से शेरिजयाच मेला मनाया जाता है।

इंद्र देव, ठाठड़ी (चेला)।

कालिका पांगी ङ्क्षमधल के भटवास गांव में ङ्क्षमधल माता के नाम से विख्यात हैं। माता के दरबार में जो भी आता है, वह कभी खाली हाथ नहीं जाता है। शेरिजयाच के मेले के दिन आकाश दीया प्रज्वलित कर हवन की आहुति डाली जाती है। शुद्ध घी के दीप जलाने से वातावरण शुद्ध होता है।

श्रीराम, पुजारी माता ङ्क्षमधल।

शेरिजयाच मेला सुख समृद्धि का मेला है। पांगी में हर घर का मुखिया या कोई अन्य सदस्य माता के मंदिर में आकर आहुति देता है। घर में गाय-चुरी का पहला घी बनाया जाता है। उसको माता को चढ़ाने के लिए रखा जाता है। कार्तिक मास की प्रथम पूर्णमासी के उपरांत प्रतिपदा के दिन आकाश दीये में आहुति दी जाती है।

हीरचंद, बांसुरी वादक ङ्क्षमधल माता।

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