पांगी में सात दिन चलने वाले मेलों का आगाज
पांगी में सात दिन तक चलने वाले मेलों का आगाज मंगलवार से शुरू हो गया है। ये मेले 21 सितंबर तक अलग-अलग दिनों में मनाए जाते हैं। शुभारंभ पंचायत पुरथी की माता मलासनी के मंदिर से पारवाच मेले से शुरू होकर मिंधल में िमधलियाच मेले के साथ समाप्त होते हैं।
पांगी, कृष्ण चंद राणा।
देवभूमि पांगी में सात दिन तक चलने वाले मेलों का आगाज मंगलवार से शुरू हो गया है। ये मेले 21 सितंबर तक समस्त पांगी में अलग-अलग दिनों में मनाए जाते हैं। मेलों का शुभारंभ ग्राम पंचायत पुरथी की माता मलासनी के मंदिर से पारवाच मेले से शुरू होकर ङ्क्षमधल में ङ्क्षमधलियाच मेले के साथ समाप्त होते हैं।
ङ्क्षकवदंती और लोक आस्था के अनुसार सतयुग में नाग नागनी के 11 बच्चों ने धरती पर जन्म लिया था, जिसमें नौ बहनें व दो भाई हैं। सब से बड़ी बहन माता मलासनी पुरथी के बुचवास गांव में आकर बस गई। अन्य भाई बहनें भी अलग-अलग स्थानों पर जाकर के रहने लगी। सभी ने आपस में और बड़ी बहन से मिलने के लिए जिस दिन को चुना उस रोज पारवाच मेला मनाया जाता है। सभी भाई बहनें पुरथी आते हैं।
भाद्रपद मास के अमावस्या को पुरथी और शून में मग मेले से
पांगी में मेलों का आगाज भाद्रपद मास के अमावस्या को पुरथी और शून में मग मेले से ही किया जाता है। पारवाच मेले में शौर, थांदला, रेई की प्रजाओं का मिलन रथ के साथ पुरथी में सायं (आठ बजे कडेवेल) माता के मंदिर में माता के साथ होता है। माता की आरती के बाद चारों ओर के रथ मेला मैदान में माता के जयकारों के साथ प्रवेश करते हैं। मेला मैदान में अग्निकुंड तैयार किया जाता है। अग्निकुंड में लकडिय़ां खड़ी कर के उनमें आग लगाई जाती हैं। रथ के साथ आए चारों प्रजाओं के चेले व अन्य लोग माता से अरदास (प्रार्थना) करते हैं। आस्था है जिस प्रजा की ओर गिरेगी उसको साल भर में किसी न किसी प्रकार का नुकसान झेलना पड़ता है। समस्त पूजा पाठ करने के बाद माता का चेला (ठाठड़ी) माता से अनुमति लेकर अग्निकुंड को पार कर के जंगल से चील का पेड़ लाने के लिए जाता है। चेला जंगल में उसी पेड़ की चोटी को लाता है, जिस पर रोशनी पड़ती है चेले के जाने से लेकर आने तक बाकी के चेले पुजारी लागड़ी सवार विधिवत पूजा पाठ करते रहते हैं। जैसे ही चेला पेड़ लेकर आता है सभी लोग उसके फूल तोडऩे के लिए दौड़ पड़ते हैं। आस्था है कि जिस घर में यह फूल रहता है साल भर माता की कृपा बनी रहती हैं।
बुचवास में प्रकट हुई थी माता मलासनी
कहते हैं सदियों पहले जब माता मलासनी पुरथी के बुचवास गांव में प्रकट हुई उस समय चुली रतवास में राणा परिवार रहता था। माता का पूजा पाठ का काम तो उसने संभाल, लेकिन माता के बजंतरियों का काम करने वाला कोई नहीं था। जनश्रुतियों के अनुससार एक पत्थर फटा उससे दो भाई माता के समक्ष प्रस्तुत हुए और अपना जीवन माता की सेवा में लगाने की विनती की। उनकी भक्ति को देखकर माता ने एक भाई को अपने सेवा में रहने का आदेश दिया व एक भाई यह कह कर के भाई जब आप के खानदान में माता की सेवा करने वाला कोई नहीं रहेगा तो मैं हाजिर हो जाऊंगा कह कर वापस पत्थर में समा गया। इस खानदान को पटियान खानदान के नाम से जाना जाता है। जो आज भी हर समय माता के मंदिर में बांसुरी वादक ढोलक वादक का कार्य श्रद्धा और निष्ठा के साथ करता है।
क्या कहते हैं पुजारी
माता के पुजारी श्रीकंठ बताते हैं कि माता का मंदिर भक्तों के लिए साल भर खुला रहता है। मग, पारवाच और मए तीन मेले मनाए जाते हैं। पारवाच मेले के दिन माता के सभी भाई बहनें मिलने आते हैं। यह मेला भाद्रपद मास के प्रथम अमावस्या के बाद चंद्रमा सातवें चढ़ते को मनाया जाता इसके बाद पांगी में सात दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर मेल मनाए जाते है।