नहीं रहे हिंदी और संस्कृत के ज्ञानी प्रो. भारतेंद्र बंसल, कई समाजसेवी संस्थाओं ने जताया शोक

प्रख्यात समाजसेवी प्रो.भारतेंद्र बंसल का गत दिवस निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। उनके निधन पर क्षेत्र की विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने गहरा दुख व्यक्त किया है। प्रो.भारतेंद्र बंसल हिंदी व संस्कृत के प्रोफेसर थे।

By Richa RanaEdited By: Publish:Wed, 09 Jun 2021 05:00 PM (IST) Updated:Wed, 09 Jun 2021 05:00 PM (IST)
नहीं रहे हिंदी और संस्कृत के ज्ञानी प्रो. भारतेंद्र बंसल, कई समाजसेवी संस्थाओं ने जताया शोक
प्रख्यात समाजसेवी प्रो.भारतेंद्र बंसल का निधन हो गया है।

पालमपुर, जेएनएन। प्रख्यात समाजसेवी प्रो.भारतेंद्र बंसल का गत दिवस निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। उनके निधन पर क्षेत्र की विभिन्न सामाजिक व धार्मिक संस्थाओं ने गहरा दुख व्यक्त किया है। प्रो.भारतेंद्र बंसल हिंदी व संस्कृत के प्रोफेसर थे। मूलत: पंजाब के भटिंडा में 1936 में पैदा हुए प्रो.भारतेंद्र बंसल का लगाव हमेशा से हिमालय से रहा। हिमालय की वादियां उन्हें युवावस्था में हिमाचल प्रदेश खींच लाई।

ट्रेकिंग ट्रिप पर एक बार हिमाचल आए प्रो.भारतेंद्र बंसल हिमाचल प्रदेश के ही होकर रह गए। इस बीच परिवारिक जिम्मेवारियों के निर्वहन के लिए वह 1981 में अमेरिका गए, लेकिन अपने बच्चों को वहां बसाने के बाद, वह 1998 में भारत वापस आ गए तथा हिमाचल प्रदेश को अपनी कर्मस्थली बना लिया। यहीं से प्रो.भारतेंद्र बंसल का एक नया सफरनामा शुरू हुआ। उन्होंने चिन्मय मिशन के साथ तपोवन (सिद्धबाड़ी) में ग्रामीण विकास विशेषकर महिलाओं के उत्थान को गति देने के लिए स्वयं सहायता समूहों की स्थापना की और ग्रामीण महिलाओं के लिए आय सृजन योजनाओं की शुरूआत की।

उन्होंने ऐसे समय में ग्रामीण स्वच्छता में सुधार की दिशा में काम किया जब इस मुद्दे को काफी हद तक उपेक्षित किया गया था। उन्होंने गांवों में घरेलू स्तर के भस्मक और नवीकरणीय ऊर्जा बायोगैस संयंत्र विकसित करके अपशिष्ट निपटान के लिए समाधान तैयार करने का भी प्रयास किया। इसके बाद प्रो.भारतेंद्र बंसल वर्ष 2000 में पालमपुर शिफ्ट हो गए। यहां पर उन्होंने नव प्रयास केंद्र की स्थापना की। प्रो.बसंल ने अपनी पत्नी के साथ दिव्यांग बच्चों के पुनर्वास के लिए कार्य किया।

उन्होंने गांवों में उपेक्षित मामलों की पहचान से लेकर उनके समग्र विकास तक, जिसमें प्रशिक्षण,चिकित्सा, फिजियोथेरेपी, सर्जरी और कृत्रिम अंग लगवाकर दिव्यांगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए कार्य किया। उन्होंने बुनियादी ढांचे, उपकरणों की सहायता और गुणवत्ता नियंत्रण सुनिश्चित करके महिला सहकारी समृद्धि का समर्थन किया। जब उन्होंने देखा कि टीबी के मरीजों को दवा लेने के लिए पानी अपने घर से लाना पड़ता है, तो उन्होंने डॉट्स सेंटर के लिए वाटर कैंपर उपलब्ध कराकर मरीजों की मदद की।

वह शिक्षित बच्चों को समाज के बेहतर भविष्य की कुंजी मानते थे। इसी के चलते निम्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के बच्चों को अपने घर में बुलाकर उन्हें पढ़ाना शुरू कर दिया। उन्होंने मेधावी व योग्य छात्रों को उनकी शिक्षा में भी प्रायोजित किया। उन्होंने सरकारी स्कूलों के बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण में मदद की। प्रो.भारतेंद्र बंसल ने चुपचाप और निस्वार्थ भाव से समाज के लिए अनगिनत तरीकों से योगदान दिया। एक संक्षिप्त बीमारी के बाद 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और निस्वार्थ सेवा की विरासत को पीछे छोड़ गए।

उनके निधन पर पूर्व विधायक एवं रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन डॉ शिव कुमार,चिन्मय मिशन के डॉ क्षमा मैत्रे,हिमोत्कर्ष परिषद के प्रदेश सचिव मनोज कुँवर, डॉ राजेश सूद,रोटरी क्लब प्रधान डॉ आदर्श,प्रेस क्लब के प्रधान संजीव बाघला ने शोक व्यक्त किया है।

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