भरवाईं स्कूल के भवन का कायाकल्प कर संजय पराशर ने पिता का सपना किया पूरा

सामाजिक सरोकारों को निभाने में मिसाल बन चुके कैप्टन संजय अपने पिता की अधूरी इच्छा काे पूरी करने के लिए ‘श्रवण कुमार’ बन गए। पराशर ने सन् 1889 में अस्तित्व में आए राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भरवाईं के जर्जर भवन के चार कमरों का कायाकल्प कर दिया।

By Richa RanaEdited By: Publish:Tue, 30 Nov 2021 05:12 PM (IST) Updated:Tue, 30 Nov 2021 05:12 PM (IST)
भरवाईं स्कूल के भवन का कायाकल्प कर संजय पराशर ने पिता का सपना किया पूरा
संजय पराशर ने भरवाईं के जर्जर भवन के चार कमरों का कायाकल्प कर दिया।

डाडासीबा, संवाद सूत्र। सामाजिक सरोकारों को निभाने में मिसाल बन चुके कैप्टन संजय अपने पिता की अधूरी इच्छा काे पूरी करने के लिए ‘श्रवण कुमार’ बन गए। पराशर ने सन् 1889 में अस्तित्व में आए राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला भरवाईं के जर्जर भवन के चार कमरों का कायाकल्प कर दिया। जिस भवन का जीर्णोद्वार हुआ है, उसी परिसर के कमरों में संजय के पिता रमेश पराशर ने पचास के दशक में मैट्रिक तक की पढ़ाई पूरी की थी। कमरों का कायाकल्प होने के विद्यालय प्रबंधन कमेटी और अभिभावकों ने पराशर का आभार जताया है।

दरअसल एतिहासिक स्मरणों को संजाेए इस विद्यालय के पुराने भवन में हजारों विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर चुके हैं। वर्तमान में इस स्कूल में जसवां-परागपुर और चिंतपूर्णी विधानसभा क्षेत्रों के तीन सौ से ज्यादा विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इसी विद्यालय में रमेश पराशर 1954 से लेकर 1959 तक अध्ययनरत रहे। कुछ माह पूर्व जब रमेश ने इस स्कूल में गए तो पाया कि उक्त भवन की छत की हालत अत्यंत खस्ता हो गई है। रमेश ने अपने बेटे संजय को बताया कि तब यह भवन तो ठीक हालत में था, लेकिन साथ लगते भवन की हालत अत्यंत खस्ता थी और भवन गिर गया था। तब विद्यार्थियों को बारिश के मौसम में अत्यंत दिक्कतें पेश आती थीं। बाद में नया भवन तैयार हो गया था, लेकिन पढ़ाई के दौरान छात्रों को रही परेशानी की कसक हमेशा मन में रही। अब इस स्कूल में जाकर देखा और तो पाया कि अब भी हालात कुछ ऐसे ही हैं। पिता के कहने पर संजय इस स्कूल में गए और विद्यार्थियों से बात की। पता चला कि इस भवन मे छठी और सातवीं कक्षाओं के विद्यार्थी बैठते हैं तो दो कमरों में विज्ञान प्रयोगशालाएं भी हैं। कुछ समय पहले तक चार कमरों की छत्त बरसात के मौसम में हर तरफ से टपकती थी और विद्यार्थियों के साथ शिक्षक भी बारिश के पानी से बचने के लिए असहाय नजर आते थे।

इस विडंबना काे दूर करने के लिए संजय पराशर ने भवन की हालत सुधारने का निर्णय ले लिया। इसके साथ ही निर्माण कार्य शुरू हो गया और पराशर ने 70 टीन की चादरें खरीद कर स्कूल प्रबंधक कमेटी को दीं। भवन की छत बदलने के बाद अब ऐतिहासिक ईमारत और निखर गई है और विद्यालय के पूर्व विद्यार्थियों राजेश, सुमेश, रजनी, कर्म चंद और कश्मीर चंद ने भी खुशी जाहिर करते हुए कैप्टन संजय का आभार जताया है। अभिभावकों में कड़ोआ से राजेश कुमार, गुरल से पूर्ण नाथ, शिवपुरी से नरेंद्र कुमार और नारी से सुनीश डढवाल ने बताया कि पराशर ने अपने संसाधनों से 132 वर्ष पुराने इस विद्यालय के इतिहास काे संवारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

विद्यालय की स्कूल मैनेजमेंट कमेटी के अध्यक्ष रामधन ने बताया कि कैप्टन संजय का पहले भी इस स्कूल को सहयोग मिलता रहा है। कमेटी के सदस्यों सहित अभिभावक व विद्यार्थी भी पराशर का भवन का जीर्णोद्वार करने के लिए धन्यवाद व्यक्त करते हैं। वहीं, कैप्टन संजय ने कहा कि जिन रास्तों व पंगडंडियों पर उनके बुजुर्गों व पूर्वजाें के चरण पड़े हैं, उनका प्रयास रहेगा कि उन्हें संवारने के लिए तन-मन-धन से समर्पित होकर कार्य करूं।

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