कुल्लू प्रकरण: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर निर्भर करेगी नियमित विभागीय जांच

कुल्लू के पुलिस अधीक्षक गौरव ङ्क्षसह के हाथों मुख्यमंत्री की सुरक्षा के प्रभारी एएसपी बृजेश सूद को लगे थप्पड़ की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी है। घटना के लिए कौन कसूरवार है इसके लिए जांच अधिकारी वीडियो के अलावा यह भी देख रहे हैं कि मामले की पृष्ठभूमि क्या है।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Thu, 24 Jun 2021 10:06 PM (IST) Updated:Thu, 24 Jun 2021 10:06 PM (IST)
कुल्लू प्रकरण: फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पर निर्भर करेगी नियमित विभागीय जांच
कुल्लू जिले के भुंतर में भिड़ते अधिकारी। जागरण आर्काइव

रमेश सिंगटा, शिमला। कुल्लू के पुलिस अधीक्षक गौरव ङ्क्षसह के हाथों मुख्यमंत्री की सुरक्षा के प्रभारी एएसपी बृजेश सूद को लगे थप्पड़ की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी है। इस घटना के लिए कौन कसूरवार है, इसके लिए जांच अधिकारी वीडियो के अलावा यह भी देख रहे हैं कि मामले की पृष्ठभूमि क्या है। डीआइजी की फैक्ट फाइंङ्क्षडग रिपोर्ट पर ही नियमित विभागीय जांच निर्भर करेगी।

रिपोर्ट में घटना के दोषियों को चेतावनी देकर छोडऩे की सलाह दी गई तो पूरा मामला यहीं पर खत्म हो जाएगा। न एसपी पर गाज गिरेगी और न एएसपी फंसेंगे। अगर डीआइजी ने सजा देने की बात कही तो फिर नियमित विभागीय जांच करवानी होगी। वह आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए भी कह सकते हैं। उस सूरत में एसपी और पीएसओ के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करनी होगी। इस प्रकरण में दो अधिकारियों पर गाज गिरे या न गिरे लेकिन मुख्यमंत्री के पीएसओ बलवंत पर कार्रवाई तय मानी जा रही है। नियमों के अनुसार वह मुख्यमंत्री की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं न कि एएसपी की सुरक्षा के लिए। उन्होंने एसपी को लात मारकर जुर्म कर अपने लिए आफत मोल ली है। उनके खिलाफ न केवल आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है बल्कि विभागीय जांच से भी गुजरना पड़ेगा। अगर जांच में दोषी पाए गए तो मेजर या माइनर पेनल्टी लग सकती है। मेजर पेनल्टी में नौकरी से बर्खास्त करने तक जबकि माइनर पेनल्टी में इंक्रीमेंट रोकने, सेंश्योर (कम सजा) या चेतावनी देकर छोडऩे का प्रावधान है।

वीवीआइपी की सुरक्षा का जिम्मा एसपी का

नियमों के अनुसार जिलों में वीवीआइपी सुरक्षा का जिम्मा संबंधित जिले के एसपी का होता है। मुख्यमंत्री या अन्य वीपीआइपी का काफिला कहां रुकेगा और कहां नहीं, यह एसपी तय करते हैं। कुल्लू के थप्पड़ विवाद में दोनों अधिकारियों ने वाद-विवाद में पडऩे के बजाय अपने वरिष्ठ अधिकारियों की राय नहीं ली। जानकारों की मानें तो एसपी को लगा कि एएसपी उनसे काफिले के संबंध में क्यों पूछ रहे हैं। अगर डीआइजी, एडीजीपी सीआइडी या डीजीपी पूछते तो बात बनती थी, जूनियर अधिकारी कैसे पूछ सकते थे। एएसपी को लगा कि प्रदर्शनकारियों को केंद्रीय मंत्री से कैसे मिलने दिया और काफिले में सुरक्षा कर्मियों व मुख्यमंत्री के बीच वाहनों की दूरी ज्यादा क्यों रखी। लेकिन एसपी ने आपा खोकर एएसपी को थप्पड़ मार दिया। अगर उन्हें सुरक्षा मसले पर कोई आपत्ति थी तो वरिष्ठ अधिकारियों को कहते या लिखित शिकायत करनी चाहिए थी।

जिलों में वीपीआइपी सुरक्षा का पूरा जिम्मा एसपी का होता है। एसपी से एएसपी नहीं पूछ सकते हैं कि मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री का काफिला कहां रुकेगा और कहां नहीं। एसपी ने भी बड़ी गलती की है। उन्हें जूनियर आफिसर को थप्पड़ नहीं मारना चाहिए था। फैक्ट फाइंङ्क्षडग रिपोर्ट के बाद ही अगली कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त होगा। झगड़े की जड़ का पता लगाना होगा। पीएसओ पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है क्योंकि वह बीच में बिना किसी बात के कूदा। मुख्यमंत्री की सुरक्षा में प्रोफेशनल लोग होने चाहिए ताकि किसी भी तरह के हालात को सही तरीके से संभाल सकें।

आइडी भंडारी, पूर्व डीजीपी, हिमाचल प्रदेश

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