world nature conservation day कोरोना काल में दुर्लभ जड़ी-बूटियों में आया निखार, हिमाचल में इन पुष्पीय प्रजातियों का बढ़ा कुनबा
हिमाचल प्रदेश के लिए खुशखबर है। विज्ञानियों को मानना है कि पहाड़ के दुर्लभ गुणों वाली जड़ी-बूटियों और पुष्पीय पौधों के लिए कोरोना काल ने संजीवनी का काम किया है। जैव संपदा के अपार भंडार में और निखार आया है। इससे कई जड़ी बूटियों को संरक्षण मिला है।
शिमला, रमेश सिंगटा। हिमाचल प्रदेश के लिए खुशखबर है। विज्ञानियों को मानना है कि पहाड़ के दुर्लभ गुणों वाली जड़ी-बूटियों और पुष्पीय पौधों के लिए कोरोना काल ने संजीवनी का काम किया है। जैव संपदा के अपार भंडार में और निखार आया है। यहां के विज्ञानिकों ने 35 साल में 500 नई पुष्पीय प्रजातियों को खोजा है। इसमें भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण और हिमालय जैव प्रौद्योगिकी संस्थान (आइएचबीटी)पालमपुर के विज्ञानिकों की बड़ी भूमिका रही। इनके अत्यधिक दोहन से कई प्रजातियों को खतरा पैदा हो गया था, जो कोरोना काल में कम हुआ है। हालांकि इसका कितना प्रभाव पड़ा इस पर अभी शोध होगा। प्रदेश में अब दुर्लभ प्रजातियों की संख्या 3600 हो गई है।
108 तरह के औषधीय पौधे
वन विभाग के अनुसार राज्य में औषधीय गुणों वाले पौधों की 100 के अधिक प्रजातियां हैं। इनमें से 90 का वाणिज्यिक दृष्टि से दोहन हो रहा है। वनस्पतियों के विस्तार से इनका संरक्षण हुआ है। हजारों करोड़ की जैव संपदा पर लगातार शोध हो रहा है।
डेढ़ लाख करोड़ की वन संपदा
प्रदेश में डेढ़ लाख करोड़ की वन संपदा है। इसमें औषधीय पौधे भी शामिल हैं। इनके संरक्षण के लिए सरकार लगातार प्रयास करने के दावे करती है, लेकिन मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जड़ी-बूटियों का लगातार दोहन हो रहा है। इससे कई प्रजातियां खतरे में हैं।
खतरे में पतिश, कूठ व ब्राह्मी
प्रदेश में औषधीय गुणों वाली तीन प्रजातियां पतिश, कूठ व ब्राह्मी अत्यधिक खतरे में हैं। विभाग इनके दोहन के लिए किसानों को परमिट जारी करता है। चिलगोजा और गुच्छी आदि पर भी ग्रामीणों की आजीविका निर्भर है। परमिट के बदले वसूली जाने वाली फीस का कुछ भाग रायलिटी के तौर पर पंचायतों को जारी होता है। कुछ वर्ष पहले परमिट का अधिकार भी पंचायतों को दिया था, पर दुरुपयोग होने से फिर से वन विभाग को जिम्मेवारी सौंपी गई। जड़ी- बूटियां अमृतसर और दिल्ली की मंडियों में जाती रही हैं। वहां से फार्मस्यूटिकल उद्योगों में इनकी काफी मांग रहती हैं। किसान हर वर्ष करीब दस करोड़ का कारोबार करते हैं।
जैव संपदा को कोरोना काल में लाभ जरूर हुआ है, लेकिन बदलाव आंकने के लिए ये अवधि पर्याप्त नहीं है। शुरुआत में ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मानव दखल कम हुआ था। बाद में फिर वैसा ही हो गया।
-डा. संजय कुमार, निदेशक, आइएचबीटी।
हिमाचल प्रदेश में 1984 तक 310 पुष्पीय पौधों की कुल प्रजातियां थीं। इसके बाद हुए शोध से 500 और ऐसी प्रजातियां पाई गई हैं। ये प्रजातियां हिमाचल में पहली बार देखी गई। इनमें से कुछ उत्तराखंड और लद्दाख क्षेत्र में पहले से पाई गई थीं। नई प्रजातियों पर शोध जारी रहेगा। एक साल में एक हेक्टेयर वन भूमि 7.4 लाख रुपये का लाभ देती है ।
-डा. संजय उनियाल, प्रधान मुख्य विज्ञानी,आइएचबीटी।
हिमाचल में कोरोना काल में जैव संपदा पर किस तरह के प्रभाव देखे गए। यह शोध का विषय हो सकता है। हम इसे आने वाले समय में शोध में शामिल कर सकते हैं। इससे प्रभाव का सही आकलन किया जा सकेगा
-अनिल ठाकुर, अतिरिक्त प्रधान मुख्य अरण्यपाल, वन विभाग।