पहाड़ी किसानों की आजीविका सुधार में जंगली गेंदा की खेती को बढ़ावा

सुगंधित पौधे बहुमूल्य जैव संसाधन हैं तथा मानवता के लिए मूल्यवान और कई उपयोगी घटकों का भंडार हैं। सुगंधित फसलों से प्राप्त सुगंधित तेल उच्च मूल्य वाले पदार्थ हैं इनका उपयोग फार्मास्युटिकल अरोमाथेरेपी भोजन पेय स्वाद सुगंध और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में किया जाता है।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 04:58 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 04:58 PM (IST)
पहाड़ी किसानों की आजीविका सुधार में जंगली गेंदा की खेती को बढ़ावा
सीएसआइआर-आइएचबीटी के निदेशक डाक्टर संजय कुमार। जागरण आर्काइव

पालमपुर, संवाद सहयोगी। सुगंधित पौधे बहुमूल्य जैव संसाधन हैं तथा मानवता के लिए मूल्यवान और कई उपयोगी घटकों का भंडार हैं। सुगंधित फसलों से प्राप्त सुगंधित तेल उच्च मूल्य वाले पदार्थ हैं, इनका उपयोग फार्मास्युटिकल, अरोमाथेरेपी, भोजन, पेय, स्वाद, सुगंध, और सौंदर्य प्रसाधन उद्योगों में किया जाता है। यह बात सीएसआइआर-आइएचबीटी के निदेशक डाक्टर संजय कुमार ने पहाड़ी क्षेत्रों की आजीविका सुधार कार्यक्रम के तहत जंगली गेंदे की खेती को बढ़ावा देने वाले एक कार्यक्रम में कही।

सीएसआइआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद) ने सुगंध क्षेत्र में परिवर्तन लाने के लिए जुलाई 2017 में अरोमा मिशन परियोजना की शुरूआत की थी। अनुपजाऊ व बंजर भूमि को सुगंधित फसलों की खेती के अंतर्गत लाने के लिए अरोमा मिशन शुरू किया गया।

वैश्विक बाजार में 2016 में सुगंधित तेलों की मांग 6.63 बिलियन अमरीकी डालर थी व 2018-2025 तक 9.70 फीसदी सीएजीआर (यौगिक वार्षिक वृद्धि दर) से बढऩे की उम्मीद है।

उन्होंने कहा कि जंगली जानवरों, बेसहारा पशुओं के खतरे और अनिश्चित मौसम की स्थिति के कारण पारंपरिक खेती गैर-लाभकारी हो रही है तथा सुगंधित फसलें इसके लिए उपयुक्त विकल्प हैं क्योंकि ये फसलें जैविक और अजैविक कारकों से अप्रभावित रहती हैं। यह एक सुगंधित जड़ी बूटी भी है। विश्व भर में इसका उपयोग कृषि रसायन, भोजन, स्वाद, सुगंध उद्योग में व्यापक रूप से किया जाता है और यह औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं।

शनिवार को आइआइटी मंडी में कामंद घाटी की महिलाओं को सक्षम करने वाली, ईवोक सोसायटी के सहयोग से जंगली गेंदा की कृषि और प्रक्रिया प्रौद्योगिकियों पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सीएसआइआर-आइएचबीटी में अरोमा मिशन चरण-2 के सह-नोडल अधिकारी एवं वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डा. राकेश कुमार ने जंगली गेंदे के संपूर्ण पैकेज और प्रथाओं पर किसानों को जानकारी दी। वहीं संपूर्ण कृषि पद्धतियां, फसल की खेती, प्रबंधन, सुगंधित तेल आसवन और व्यापारियों की उपलब्धता पर भी बताया। प्रधान वैज्ञानिक मोहित शर्मा ने किसानों को प्रसंस्करण और आवश्यक तेल निष्कर्षण से पहले जंगली गेंदे की उचित हैंडङ्क्षलग के बारे में बताया।

2023 तक गेंदे की खेती के तहत 1500 हेक्टेयर क्षेत्र तक लाने का लक्ष्य

संस्थान निदेशक डा. संजय कुमार ने बताया कि 2021 के दौरान जब अधिकांश युवा अपनी नौकरी खोकर अपने घरों को वापस चले गए थे, तो संस्थान ने इस दौरान आजीविका उत्पन्न करने के लिए किसानों को 700 किलोग्राम से अधिक जंगली गेंदा बीज वितरित किया। संस्थान के प्रयासों से हिमाचल भारत में सुगंधित तेल उत्पादन में अग्रणी राज्य बन गया है। सीएसआइआर-एचआइबीटी 2023 तक जंगली गेंदे की खेती के तहत 1500 हेक्टेयर क्षेत्र को लाने का लक्ष्य रखा है। फसल की उचित अवस्था में कटाई करने पर प्रति हेक्टेयर लगभग 12 से 15 टन फसल उपज और 30 से 45 किलोग्राम सुगंध तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। जंगली गेंदे के तेल की कीमत 8,000 रुपये से 10,000 रुपये प्रति किलोग्राम है। इस फसल को 5-6 महीने में उगाकर किसान 1.2 से 1.5 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर का शुद्ध लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

chat bot
आपका साथी