पूर्ण राज्‍य के 50 साल होने पर हिमाचल का मार्गदर्शन करेंगे राष्‍ट्रपति, जानिए प्रदेश की उपलब्धियां व चुनौतियां

हाल के वर्षो में डा. एपीजे अब्दुल कलाम आए प्रतिभा पाटिल आईं योजना आयोग के उपाध्यक्ष रहते हुए श्रीनयना देवी क्षेत्र को पानी से सराबोर करने वाले प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति बनकर भी आए सबका अपने सामथ्र्य के अनुसार सत्कार किया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 11:51 AM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 11:52 AM (IST)
पूर्ण राज्‍य के 50 साल होने पर हिमाचल का मार्गदर्शन करेंगे राष्‍ट्रपति, जानिए प्रदेश की उपलब्धियां व चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश विधानसभा के एक दिवसीय सत्र को संबोधित करेंगे राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद। फाइल

नवनीत शर्मा। नमस्कार! आज देश के प्रथम नागरिक के मेजबान के रूप में प्रफुल्लित मुझ हिमाचल प्रदेश की हवाओं में गर्व के झोंके हैं। पूर्ण राज्य के रूप में 50 साल पूरे करने की संतुष्टि है और चिंताएं वही हैं जो एक 50 वर्ष के अधेड़ की होती हैं। यह वर्ष पूर्ण राज्यत्व की स्वर्णिम जयंती का वर्ष है। कार्यक्रम तो सालभर चलेंगे, लेकिन आज का दिन इसलिए खास है, क्योंकि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद शिमला आएंगे। मेरी विधानसभा के एक दिवसीय विशेष सत्र को संबोधित करेंगे। वैसे तो राष्ट्रपति आते रहते हैं, क्योंकि उनका एक आवास यहां भी है जिसे सब रिट्रीट के नाम से जानते हैं। लेकिन इस बार वह होटल में ठहरेंगे। जो हो, उनका आना इसलिए खास है, क्योंकि अवसर खास है।

50 साल का हो गया हूं, फिर भी यह नहीं समझ पाता कि मुझमें अब भी जवानी की तरंग कहां से उठती है। शायद इसलिए कि जनरल जोरावर सिंह या प्रथम परमवीर चक्र विजेता मेजर सोमनाथ शर्मा से लेकर कैप्टन विक्रम बतरा तक मेरे सपूत अब भी मुझमें सांस लेते हैं। शायद इसलिए कि आबादी कम होने के बावजूद सेना में मैं धड़कता हूं। युवा होने की यह अनुभूति मुझे कई तमगे दे चुकी है। मेरी साक्षरता और शिक्षा के संदर्भ में ही नहीं, अन्यत्र भी। ई विधान सबसे पहले यहां से शुरू हुआ। ई कैबिनेट भी यहां से आरंभ हुई। मेरा मोबाइल फोन घनत्व 138 प्रतिशत है। यह बात कभी बाद में करेंगे कि कैसे है, पर स्वास्थ्य संस्थान 2900 के लगभग हैं। मेरे यहां 3209 लोगों पर एक बैंक शाखा है जबकि देश का औसत यह है कि 11000 लोगों पर एक बैंक शाखा है।

देश के अग्रणी स्वास्थ्य संस्थानों का जिम्मा हिमाचली संभाल रहे हैं। देश के होटल उद्योग में मेरे ही बच्चे आपकी रुचि का ख्याल रखते हैं। मैं वह हिमाचल प्रदेश भी हूं, जिसके साथ हाल में प्रधानमंत्री ने संवाद किया था। यह संवाद इसलिए नहीं था कि मोदी यहां कई भूमिकाओं में रहे हैं और उन्हें मेरी याद आई थी। उन्होंने मुझे संवाद के लिए चुना, क्योंकि मुझे उन्होंने कोरोना महामारी के खिलाफ टीकाकरण में चैंपियन कहा। आप जानते ही हैं, चैंपियन होना आसान नहीं होता। प्रधानमंत्री को मुझ पर गर्व हुआ तो मुझे भी स्वयं पर गर्व करने का अधिकार है। फिर सोचता हूं कौन हूं मैं।

क्या वह भूखंड मात्रा जिसका क्षेत्रफल करीब 55 हजार वर्ग किमी है? जो अपने माथे पर पहाड़ सजाए फिरता है? जिसकी गोद में बहती नदियां पहाड़ों का संदेश लेकर समुद्र की ओर ऐसे भागी फिरती हैं जैसे कोई कर्तव्यनिष्ठ संदेशवाहक हमेशा जल्दी में हो। मैं प्रधानमंत्री से बातचीत करते हुए कहना चाहता था कि नाम बेशक बदल गए हैं, किरदार जिंदा हैं। इसलिए कहानी चल रही है और बहादुरी की यह कहानी कभी समाप्त नहीं होगी। अब मेरे पास कर्मा देवी जैसे स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिनके पैर की हड्डी टूट गई, लेकिन जिंदगी का टीका लगाना उसने नहीं छोड़ा। डा. राहुल जैसे लोग हैं जो मूलत: गुजराती हैं, लेकिन शिमला जिले के डोडरा क्वार जैसे दुर्गम क्षेत्र में डाक्टर हैं। पढ़ाई रूस में की, कुछ समय दिल्ली में बिताया और नौकरी करने मेरे पास आए तो मेरा भी अंतिम छोर पकड़ा ताकि जिंदगी वहां भी मुस्करा सके। मेरे डोडरा क्वार क्षेत्र से किसी भी मरीज को रोहड़ू जाने में 10 घंटे लगते हैं। लाहुल-स्पीति के शाशुर गोंपा वाले नवांग उपासक ने ठीक कहा कि अटल रोहतांग सुरंग बनने से जिंदगी आसान हुई।

संकोच के साथ कहूं तो मेरे अंदर एक बालक भी है जो किसी बड़े बुजुर्ग के आने पर आशाओं से भरा रहता है। लेकिन इतना जानता है कि औद्योगिक पैकेज, रोहतांग सुरंग, हिमालयन रेजिमेंट और राष्ट्रीय संस्थानों की मांग किससे करनी है। राष्ट्रपति आशीर्वचन दे सकते हैं। देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद भी मेरे पास आते थे। तब मेरी प्रति व्यक्ति आय इतनी नहीं थी, फिर भी अतिथि सत्कार नहीं भूला। अब्दुल कलाम ने जो नौ सूत्र हिमाचल को ब्रांड बनाने के मेरी ही विधानसभा में दिए, मेरे अंदर का बालक उसे भी भूल गया। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने शिमला में चाय-काफी पी या किताबें खरीदीं तो डिजिटल तरीके से उसका भुगतान अपनी जेब से किया। यह बात मैं कैसे भूल सकता हूं जो उन्होंने प्रथम नागरिक के तौर पर अपने आचरण से मुङो समझाया।

मैं अपने सिर पर चढ़ा कर्ज का बोझ देखता हूं तो मुझे अपने संसाधनों का ध्यान हो आता है। मैं अब संस्थानों को गिनती के रूप में नहीं, उनकी गुणवत्ता के रूप में देखना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि मेरी जो भी ताकत है, वह और बढ़े और जो मेरी सीमाएं हैं, वे संभावनाएं बन जाएं। जानता यह भी हूं कि यह काम आसान नहीं है, लेकिन मेरे लिए या मेरे नीति नियंताओं के लिए मुश्किल भी क्या है। मैं सिक्किम से सीखना चाहूंगा कि कैसे वह पर्यटन में आगे बढ़ गया, जबकि मेरे पास प्रकृति का दिया सबकुछ है। मुझे गर्व है कि मेरे नाम पर बीते 50 साल में कई उपलब्धियां हैं, लेकिन मुझे मेरी चिंताओं का ध्यान भी होना चाहिए। मुझे मेरी चुनौतियां पता होंगी तो मैं उन्हें दूर कर पाऊंगा। मैं नहीं चाहता कि वित्त सृजन या प्रबंधन में चार्वाक मेरे आदर्श पुरुष हों, मैं नहीं चाहता कि मैं औरों पर निर्भर रहूं। मैं पहाड़ हूं, मुझे दरकना बुरा लगता है।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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