President Himachal Visit : राष्ट्रपति कोविन्द ने अन्नदाताओं से प्राकृतिक खेती अपनाने का किया आग्रह

राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने हिमाचल का अन्नदाताओं से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आह्वान किया है। उनके मुताबिक पहाड़ की नदियों का पानी निर्मल है। यहां की मिट्टी साफ सुथरी है और पोषक तत्वों से भरपूर है। इस धरती को किसान रसायनिक उर्वरक से मुक्त करवाएं।

By Virender KumarEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 10:30 PM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 10:30 PM (IST)
President Himachal Visit : राष्ट्रपति कोविन्द ने अन्नदाताओं से प्राकृतिक खेती अपनाने का किया आग्रह
राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने अन्नदाताओं से प्राकृतिक खेती अपनाने का आग्रह किया। जागरण आर्काइव

शिमला, राज्य ब्यूरो। राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने हिमाचल का अन्नदाताओं से प्राकृतिक खेती को अपनाने का आह्वान किया है। उनके मुताबिक पहाड़ की नदियों का पानी निर्मल है। यहां की मिट्टी साफ सुथरी है और पोषक तत्वों से भरपूर है। इस धरती को किसान रसायनिक उर्वरक से मुक्त करवाएं।

गौर रहे कि प्रदेश में कुछ वर्ष से प्राकृतिक खेती की अवधारणा को धरातल पर उतारा गया है। इसे लागू करने के लिए अलग से प्रोजेक्ट तैयार किया गया। प्रदेश के कई किसान इस प्रकार की खेती कर सफलता की इबारत लिख रहे हैं। कोई इस विधि से सेब उगा रहा है तो कोई नकदी फसलों का उत्पादन कर रहे है। अभी करीब डेढ़ लाख किसान प्राकृतिक खेती अपना रहे हैं।

प्राकृतिक खेती राज्य बनने की ओर बढ़े कदम

हिमाचल प्रदेश प्राकृतिक खेती राज्य बनने की ओर तेजी से कदम बढ़ा रहा है। राज्य में साढ़े तीन साल पहले शुरू की गई प्राकृतिक खेती के सफल परिणाम नजर आने लगे हैं। रसायनों के प्रयोग को हत्तोत्साहित कर किसान की खेती लागत और आय बढ़ाने के लिए शुरू की गई। योजना के शुरुआती साल में ही किसानों को यह विधि रास आ गई और 500 किसानों को जोडऩे के तय लक्ष्य से कहीं अधिक 2,669 किसानों ने इस विधि को अपनाया। साल 2019-20 में भी 50,000 किसानों को योजना के अधीन लाने के लक्ष्य को पार करते हुए 54,914 किसान इस विधि से जुड़े। कोविड काल में प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद साढ़े 14 हजार से ज्यादा नए किसानों ने प्राकृतिक खेती को अपनाया है। 31 अगस्त 2021 तक प्रदेशभर में 1,35,172 किसानों को प्रशिक्षित किया गया है, जिनमें से 1,29,299 किसान 93750 बीघा से अधिक भूमि पर इस विधि खेती-बागवानी कर रहे हैं। प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना प्रदेश की 3615 में से 3415 पंचायतों तक पहुंच चुकी है।

क्या कहते हैं अध्ययन

प्राकृतिक खेती को लेकर राज्य परियोजना कार्यन्वयन इकाई ने विभिन्न अध्ययन किए हैं। येे इस विधि को प्रासंगिकता एवं व्यावहारिकता को इंगित करते हैं। ऐसे ही एक अध्ययन के अनुसार प्राकृतिक खेती अपनाने के बाद किसानों की खेती लागत 46 फीसद कम हुई है, वहीं उनका शुद्ध लाभ 22 फीसद बढ़ा है। प्राकृतिक खेती से सेब पर बीमारियों का प्रकोप अन्य तकनीकों की तुलना में कम रहा।

कौन अपना रहा यह खेती

प्राकृतिक खेती के नतीजों से प्रभावित होकर बागवान बड़ी संख्या में इस विधि के प्रति आकर्षित हुए हैं। मौजूदा आंकड़ों के अनुसार प्रदेशभर के 12 हजार से ज्यादा बागवान प्राकृतिक विधि से विभिन्न फल-सब्जियां उगा रहे हैं। लाहुल स्पीति के शांशा गांव के किसान रामलाल ने बताया कि प्राकृतिक खेती से उनका सब्जी उत्पादन पहले से बेहतर हुआ है। पालमपुर में इस खेती का प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने गोभी, आइसबर्ग, ब्रोक्ली, मटर, आलू, टमाटर और राजमाश की खेती में प्राकृतिक खेती आदानों का प्रयोग किया। पहले आइसबर्ग की चार पेटियों का भार 60 किलोग्राम होता था वह बढ़कर 70-75 किलो हो गया। रामलाल लीज पर जमीन लेकर इस खेती का दायरा बढ़ा रहे हैं। पहले वह सालभर में पांच बीघा भूमि पर 17 हजार खर्च कर साढ़े तीन लाख कमाते थे। प्राकृतिक खेती से अब वह चार लाख की आय कमा रहे हैं।

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