उपचुनाव में पौंग बांध विस्थापितों का मुद्दा खामोश, सैकड़ों परिवार आज भी लड़ रहे हक की लड़ाई
Pong Dam Displaced कभी हल्दून घाटी में बसने वाले लोगों को यह कहकर उठाया गया कि आपको राजस्थान में उपजाऊ जमीनें दी जाएंगी। आज सात दशक गुजर जाने के बावजूद कुछ पौंग बांध विस्थापितों को न्याय नहीं मिल पाया है।
राजा का तालाब, संवाद सूत्र। Pong Dam Displaced, कभी हल्दून घाटी में बसने वाले लोगों को यह कहकर उठाया गया कि आपको राजस्थान में उपजाऊ जमीनें दी जाएंगी। आज सात दशक गुजर जाने के बावजूद कुछ पौंग बांध विस्थापितों को न्याय नहीं मिल पाया है। हर पांच साल बाद चुनावों के समय पौंग बांध विस्थापितों की समस्या नेतागण उठाते थे। लेकिन उपचुनाव में नेता सहित मतदाता भी आजकल मौन हैं। यह मुद्दा कहीं न कहीं दबकर रह गया है।
1926 में हुई थी पौंग बांध की प्रपोजल तैयार
सन 1926 में पंजाब सरकार की ओर से पौंग बांध बनाने की प्रपोजल तैयार की गई। सन् 1955 में जिओलॉजिकल सर्वे विभाग ने पूरे एरिया का अध्ययन किया। सन् 1959 में पौंग बांध का डिजाइन बनाया गया और अंतिम रूप सन् 1961 को दिया गया। इस परियोजना के पावर स्टेशन सन् 1974 में बनकर पूरे हुए। पौंग बांध कार्य सन् 1978 में शुरू होकर 1983 में पूरा हुआ। परियोजना के लिए विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास आज दिन तक नहीं हो पाया है।
यहां के लोगों को राजस्थान में बसाने की थी योजना
इस घाटी के लोगों को राजस्थान में बसाने को लेकर एक योजना बनाई गई थी। हिमाचल और राजस्थान सरकारों ने समझौते करके निर्णय लिया था कि पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिए जाएंगे। कई दशकों के लंबे इंतजार के बाद मुरब्बे आबंटन की प्रक्रिया शुरू हो पाई। राजस्थान सरकार गंगानगर की बजाय पौंग बांध विस्थापितों को जैसलमेर में बसाना चाहती थी। शुरुआती दौर में ही राजस्थान सरकार की नीयत में खोट साफ देखी जा सकती थी। इसलिए ही विस्थापित अभी तक मुरब्बों पर सही ढंग से काबिज नहीं हो पा रहे हैं। पौंग बांध विस्थापितों को जैसलमेर के दूरदराज इलाकों रामगढ़ और मोहनगढ़ में मुरब्बे दिए गए। इन अति पिछड़े इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। वहां बेघर हुए हिमाचली लोगों को बसाया गया। इस बीच विस्थापितों की स्थायी समिति ने पुनर्वास का स्थान बढ़ाने की पुरजोर मांग की, मगऱ भूमि चयन का अधिकार केवल मात्र भारत सरकार और दोनों राज्यों की सरकारों का था। इसलिए यह प्रक्रिया सिरे न चढ़ सकी।
गंगानगर जिले में 220 लाख एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए हुई अधिसूचित
उस समय राजस्थान में गंगानगर जिले में 220 लाख एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए अधिसूचित हुई। हालांकि दोनों राज्यों की सरकारों के समझौते के अनुसार जिन पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बा नहीं मिलेगा, उन्हें हिमाचल प्रदेश में ही बसाया जाएगा। पौंग बांध निर्माण में उजड़े परिवारों में से प्रदेश सरकारें 16,342 परिवारों को ही राजस्थान में भूमि आबंटन के लिए योग्य करार दिया गया था। अभी तक प्रदेश सरकार 105824 को राजस्थान में भूमि आबंटन करवाने में सफल हो पाई है। 143 लाख एकड़ जमीन का आबंटन होना अभी बाकी है। पौंग बांध विस्थापित जो वहां पर खुद खेतीबाड़ी कर रहे हैं, वही अपनी जमीनों पर काबिज हैं। कुछेक पौंग बांध विस्थापितों ने अपने मुरब्बे राजस्थान के लोगों को खेतीबाड़ी करने के लिए सौंप रखे थे। नतीजतन ऐसे लोगों के साथ जालसाजी की गई है। गंगानगर में हिमाचली लोगों की अधिकतर जमीनें राजस्थान के प्रभावशाली लोगों ने उन पर जबरदस्ती कब्जा करके रखा है। ऐसे हालात में राजस्थान सरकार अवैध कब्जाधारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही है। यही नहीं पौंग बांध विस्थापितों के कुछ मुरब्बों का अवैध कब्जाधारियों ने जाली दस्तावेज तैयार करके आगे उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के पास बेच दिया है। ऐसे हालात में कब्जा दोबारा से ले पाना विस्थापितों के लिए मुसीबत बना हुआ है।
यह भी है एक दर्दनाक पहलू
पुनर्वास के चक्कर में कई लोगों पर आत्मघाती हमले करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। प्रदेश सरकार भी ऐसे अवैध कब्जाधारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके पुन: विस्थापितों के कब्जे दिलाने में कोई पहल नहीं दिखा रही है। राजा का तालाब स्थित भू-अर्जुन अधिकारी कार्यालय के सहयोग से नजायज कब्जे हटाकर पुन: पौंग बांध विस्थापितों को बसाने की कोशिशें जारी हैं। चुनाव नजदीक आते देखकर हर बार सरकारें पौंग बांध विस्थापितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश करती हैं, मगऱ अभी तक सफल नहीं हो पाई हैं। पौंग बांध विस्थापित जिन्होंने अपनी उपजाऊ भूमि खोई, उन्हें ऐसी जगह भूमि आबंटित की जाती रही, जहां सुविधाओं की कमी होती है।
विस्थापितों की लड़ाई कौन लड़े
ओबीसी के नेता आपस में वर्चस्व की लड़ाई लडऩे में मशगूल रहते हैं, मगऱ कोई भी नेता खुलकर पौंग बांध विस्थापितों की लड़ाई लडऩे को तैयार नहीं है। पौंग बांध के निर्माण में सबसे ज्यादा जमीन इसी समुदाय को आबंटित हुई है। ओबीसी की आबादी लाखों में होने के बावजूद यह लोग आज दिन तक अपने हक सरकारों से लेने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।