Phulyatra Festival : पांगी में मनाया जा रहा सर्दियों के आगमन का प्रतीक फुलयात्रा उत्सव, जानिए क्या है मान्यता

Phulyatra Festival चंबा के जनजातीय विकास खंड पांगी को देव भूमि और शिव भूमि के नाम के साथ मिनी देवस्थली भी माना जाता है। मुख्यत पांगी के आपसी भाईचारे और पांगी के सर्दियों का आवागमन पर फुलयात्रा और ग्रीष्म ऋतु आवागमन पर जुकारू उत्सव मनाया जाता है।

By Virender KumarEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 04:15 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 04:15 PM (IST)
Phulyatra Festival : पांगी में मनाया जा रहा सर्दियों के आगमन का प्रतीक फुलयात्रा उत्सव, जानिए क्या है मान्यता
फुलयात्रा मेला मैदान कुफा में विधि-विधान से मेला मनाते हुए खटक । जागरण

कृष्ण चंद राणा, पांगी।

Phulyatra Festival, चंबा के जनजातीय विकास खंड पांगी को देव भूमि और शिव भूमि के नाम के साथ मिनी देवस्थली भी माना जाता है। पांगी घाटी में साल भर अनेक मेले और त्योहार मनाए जाते हैं। मुख्यत: पांगी के आपसी भाईचारे और पांगी के सर्दियों का आवागमन पर फुलयात्रा और ग्रीष्म ऋतु आवागमन पर जुकारू उत्सव मनाया जाता है।

फुलयात्रा (फुलयाट्ट) उत्सव शीत ऋतु के आवागमन पर 14 अक्टूबर से 16 अक्टूबर (29 कार्तिक मास) तक मनाया जाता है। मेले में किलाड़ कुफा करयास और कवास की प्रजाएं भाग लेती हैं। मेले का मुख्य आकर्षण करयास प्रजा द्वारा माता बलिन (ट्टण माता) हुडान की प्रजा द्वारा टुंडा राक्षस और किलाड़ प्रजा द्वारा टुंडा राक्षस के बच्चों की कुकड़ी जिसे माहलु राणा ने अपने कब्जे में लिया था। आज भी यह धरोहर किलाड़ प्रजा के पास सुरक्षित है फुलयाट्ट के दिन खटक इसको फुलयाट्ट मेले में लेकर आता है। पहले नौ प्रजाएं (लुज, सुराल, धरवास, करयास, कूफ़ा, कवास, हुडान, किरयूनी, किलाड़ और कुफा) कुफा गांव के फुलयात्रा (फुलयाट्ट) मैदान में इकट्ठा होकर मेले मानती थी। कुफा, कवास, किलाड़, करयास की प्रजाएं भाग लेती हैं। अन्य प्रजाओं ने किसी कारण इस मेले में भाग लेना बंद कर दिया।

यह है किवदंती

फुलयाट्ट मेले को मनाने को लेकर अनेक किवदंतियां हैं। पांगी के महालियत गांव में राणा परिवार रहता था। कहते हैं राणा परिवार अपने खेत में का (काले मटर) की खेती करता था। राणा के खेत से राक्षस के बच्चे मटर की चोरी करते थे एक दिन अचानक महल राणा अपने खेत में पहुंचा उसको देखकर राक्षस के बच्चे अपना खिलौना शलकुकडी (सोने की मुर्गी) खेत में भूल गए जब राक्षस दंपती उसे लेने आदमी के रूप धारण कर महालियात गांव में आए तो राणा के काहु पंडित ने अंतर ध्यान होकर के पहचान लिया और अपनी तांत्रिक शक्तियों से राणा की कोठी में दोनों को बांध कर रख दिया है। राक्षस दंपती ने राणा से उन्हें छोडऩे की अनेक विनती की, मानव जाति को नुकसान न पहुंचने का आश्वासन भी दिया, लेकिन इस सब का राणा पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। राक्षस दंपती के बार-बार आग्रह करने पर राणा ने आश्वासन दिया। कार्तिक मास के 29 तिथि (14 अक्तूबर) को नौ प्रजाएं फुलयाट्ट (फुलयात्रा) मेले मनाएगी। उस दिन इस कोठी के मुख्य द्वार (दरवाजे) पर शुभ ढोल (वाद्ययंत्र) बजाएंगे उस दिन आप को मुक्ति मिलेगी जाएगी। तब से राक्षस दंपती इस इंतजार में हैं कि मानव फुलयात्रा मेला मनाएगा। शुभ का ढोल नगाड़ों की ध्वनि होगी हमें मुक्ति मिलेगी।

फुलयात्रा के दिन तीन थाप देकर की जाती है अशुभ ध्वनि

फुलयात्रा के दिन सुबह के समय मेला ग्राउंड के लिए जाने से पहले राणा की उस कोठी के सामने ढोल नगाड़ों पर तीन थाप देकर अशुभ की ध्वनि की जाती है। जिसे राक्षस दंपती को लगता है कि शुभ का दिन नहीं आया है इस लिए फुलयाट्ट मेले का आयोजन नहीं किया जा रहा है। फुलयात्रा के दिन देंती नाग का खटक (चेला) शलकुकड़ी को लेकर कुफा गांव के मेला मैदान में पहुंचता है जहां पर अन्य खटक (चेले) कुमाऊ के फूलों के साथ पहले ही तैयार होते हैं। मुख्य खटक के पहुंचते कुकड़ी को फूलों से सजाया जाता है, ढककर रखा जाता है। विधि विधान से पूजापाठ के बाद राक्षस दंपती को दिखाया जाता है कि आप की धरोहर सुरक्षित है। बताते हैं राक्षस दंपती दूर पहाड़ी से इसे देखने के बाद वापस जाता है।

यह भी है मान्यता

एक मान्यता के अनुसार सदियों पहले जब किलाड़ की ग्वालिन ने देंती नाग की शुक्राली (चंद्रभागा नदी किनारे ) से हंसूं नामक स्थान पर पहुंचाया था तो उस समय ग्वालिन को वरदान दिया था कि नौ फुलयात्रा के दिन मवेशी एक स्थान पर रहे। मैं भी फुलयाट्ट मेला देख सकूं।

एक अन्य किवदंती और बड़े बुजुर्गों के अनुसार माता बलिन (ट्टण माता) माता का निवास ट्टण के साथ साचपास जोत में भी है। इसलिए माता को जोतांवाली माता के नाम से भी जाना जाता है। माता को चंडी माता का अंश अवतार माना जाता है। कहते हैं कि माता ने मानव जाति के उत्थान के लिए करयास पांगी के वलवास गांव में भतवान खानदान में जन्म लिया था। फुलयात्रा के दिन करयास की प्रजा सुबह नौ बजे माता के वाद्ययंत्रों और रथ के साथ फुलयात्रा मैदान के लिए निकलते हैं। उधर साचपास में माता जोतांवाली और राक्षसों के मध्य भूत ग्राउंड में युद्ध होता है। आस्था के अनुसार उस समय साचपास को आरपार करना अशुभ माना जाता है इस दिन किलाड़ के घराट भी खाली छोड़ दिए जाते हैं। आस्था है कि इस दिन राक्षस दंपती घराट पिसता है।

सुख-समृद्धि की करते हैं कामना

तीन दिन तक मनाए जाने वाले फुलयात्रा मेले के दौरान लोग एक-दूसरे की सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। पांगी के लोग छह महीने के लिए सर्दियों का राशन और मवेशियों के चार फुलयात्रा से पहले इकठ्ठा कर लेते हैं। सर्दियों के लिए गर्म वस्त्रों की व्यवस्था भी करते हैं। बर्फबारी के बाद छह से सात माह तक पांगी का संपर्क देश दुनिया से कटा रहता है। ट्टण माता के पुजारी केसर सिंह बताते हैं फुलयात्रा मेला सदियों से मनाया जाता हैं तब से करयास से माता के वाद्ययंत्रों के साथ रथ यात्रा जाती है जिससे मेले का नाम फुलयात्रा रखा गया है। कुफा पंचायत प्रधान सतीश शर्मा और किलाड़ पंचायत के प्रधान एवं फुलयात्रा कमेटी के अध्यक्ष केदारनाथ राणा बताते हैं फुलयात्रा देवी देवताओं के साथ आपसी भाईचारे का प्रतीक है।

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