कांगड़ा के लोगों ने आज भी सहेज कर रखी है यह प्रथा, काले महीने में नई नवेली दुल्‍हनें जाती हैं मायके

पंडितों के मुताबिक अस्त नई नवेली दुल्हनों की छुट्टी एक महीने की होगी तो इस जुदाई से नए नवेले दूल्हों के चेहरे भी लटके हुए हैंक्योंकि अब उन्हें अपनी संगिनी के दीदार भी एक माह बाद ही होंगे।इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 13 Aug 2021 10:29 AM (IST) Updated:Fri, 13 Aug 2021 10:29 AM (IST)
कांगड़ा के लोगों ने आज भी सहेज कर रखी है यह प्रथा, काले महीने में नई नवेली दुल्‍हनें जाती हैं मायके
कांगड़ा जिले की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुजारने अपने मायके जाने को तैयार हैं।

भवारना, शिवालिक नरयाल। सावन साजन संग गुजारने के बाद कांगड़ा जिले की नई नवेली दुल्हनें काला महीना गुजारने अपने मायके जाने को तैयार हैं। पंडितों के मुताबिक अस्त नई नवेली दुल्हनों की छुट्टी एक महीने की होगी तो इस जुदाई से नए नवेले दूल्हों के चेहरे भी लटके हुए हैं,क्योंकि अब उन्हें अपनी संगिनी के दीदार भी एक माह बाद ही होंगे। रीति रिवाजों के मुताबिक इन दिनों में सास-बहू और दामाद-सास का एक दूसरे का देखना वर्जित होता है। इस रिवाज का अभी भी पूरे चाव से पालन होता है।

उधर बिटिया के घर आने की ख़ुशी में उसके अम्मा बापू भी घर की चौखट पर खड़े उसका इंतजार कर रहे हैं। इस पहाड़ी प्रथा के अनुसार काला महीना गुजारने को नवविवाहिता को पूरी तैयारी के साथ भेजा जाता है। एक दिन पहले ही पकवान बना दिए जाते हैं।एक बड़े टोकरे में इन पकवानों भर कर दुल्हन के साथ मायके छोड़ कर आते हैं। दुल्हनों को इतनी लंबी छुट्टी शादी के बाद पहली बार यह ही मिलती है। सावन के ख़त्म होने और भाद्रपद के आगाज के साथ ही काला महीना शुरू हो जाता है।

इस बार यह महीना 16 अगस्त से शुरू हो रहा है,यानि तीन और चार दिन ही बचे हैैं चूंकि गुप्त नवरात्रे चल रहे है तो 16 अगस्त से पहले सभी दिन दुल्हनों के मायके घर जाने के लिए शुभ हैं 15 अगस्त तक सभी नई नवेली दुल्हनें मायके चली जाएंगी। इलाके के बुर्जुग चंपा देेवी,कृष्णा देवी,उर्मिला देवी बताती हैं कि नई दुल्हन को छोड़ने या तो पति खुद जाता है अथवा ससुर भी छोड़ आते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि इस महीने बहू का गर्भवती होना भी अशुभ माना जाता है।

क्या है काले महीने के पीछे की मान्यता व कहानी

हलके के सुप्रसिद्ध पंडित सुशील शर्मा व घनश्याम पुजारी बताते हैं कि पुराने जमाने में जब काला महीना आता था तो उस महीने को तेहरवां महीना माना जाता था अधिकतर लोगों के घरों में इन दिनों अनाज की कमी रहती थी और कमाई का साधन व काम धंधा भी शून्य के बराबर होता था।तो नई नबेली दुल्हन को किसी चीज की कमी का अहसास न हो तो ससुराल पक्ष अपनी गरीबी छुपाने को उसे उसके मायके भेज देते थे वहीं दामाद को भी इसलिय उसकी सास से नहीं मिलने देते थे कि कहीं उनकी बेटी दामाद के सामने अपने ससुराल की बुराई ओर कमियां न निकाल सके।

इसी के चलते अब यह प्रथा व रीति बन गई है भले ही लोग आज साधन संपन्न हो गए हैं लेकिन लोग आज भी इस रीति को बड़े चाव से निभा रहे है। काला महीना काट कर दुल्हनें सायर वाले दिन से लेकर 19 सितम्बर तक वापिस ससुराल आ सकती हैं उसके बाद श्राद लग पड़ेंगे।जिसमें उनका आना वर्जित रहेगा।

दूसरे जिलों में भी मनाया जाता है काला महीना

नई नवेली दुल्हनों को काले महीने में मायके भेजने के इस रिति रिवाज को कांगड़ा के अलावा मंडी, बिलासपुर ऊना व चंबा जिलों में भी मनाया जाता है।

युवा पीढ़ी ने अपनाया नया तरीका

भले ही आज की युवा पीढ़ी से इन रिवाजों को मानने से थोड़ी हिचकिचाती हो लेकिन आज इन नए नवेले जोड़ों ने काला महीना मनाने का नया तरीका अपनाया है। परवाणु में नौकरी करने वाले विनीत का कहना है वह काला महीने में अपनी बीवी को अपने साथ परवाणु ले जाएंगे। वहीं कुछ ने इन दिनों घर और ससुराल से दूर घूमने फिरने का प्लान बना लिया है। उनका कहना है इससे एक तरफ जहां घूमना हाे जाएगा और काला महीना भी कट जाएगा।

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