धर्मशाला में प्राचीन जलस्रोत खो रहे अस्त्तित्‍व

बावडि़यां और सरोवर प्राचीनकाल से ही पीने के पानी और सिंचाई के महत्त्वपूर्ण जलस्रोत रहे हैं। आज की तरह जब घरों में नल अथवा सार्वजनिक हैंडपंप नहीं थे तो गृहणियां सुबह एवं सायंकाल कुएं बावड़ी व सरोवर से ही पीने का पानी लेने जाया करती थीं।

By Richa RanaEdited By: Publish:Wed, 02 Dec 2020 02:59 PM (IST) Updated:Wed, 02 Dec 2020 03:00 PM (IST)
धर्मशाला में प्राचीन जलस्रोत खो रहे अस्त्तित्‍व
बावडि़यां और सरोवर प्राचीनकाल से ही पीने के पानी और सिंचाई के महत्त्वपूर्ण जलस्रोत रहे हैं।

धर्मशाला, जागरण संवाददाता। बावडि़यां और सरोवर प्राचीनकाल से ही पीने के पानी और सिंचाई के महत्त्वपूर्ण जलस्रोत रहे हैं। आज की तरह जब घरों में नल अथवा सार्वजनिक हैंडपंप नहीं थे तो गृहणियां सुबह एवं सायंकाल कुएं, बावड़ी व सरोवर से ही पीने का पानी लेने जाया करती थीं।

बावड़ी का जल लवणीय नहीं होता है क्योंकि इनका निर्माण बड़े ही वैज्ञानिक तरीके से किया भी जाता है। धर्मशाला में बावड़ियों के निर्माण और उपयोग का लंबा इतिहास है।शहर में बावड़ियां का निर्माण 1845 में शुरू हुआ और  1940 तक चलता रहा। शहर के आस पास 200 बावड़ियां हैं  जिन्हें पहाड़ी शैली से पत्थरों से बनाया गया है। आज भी इन में जल भरपूर है जो हमारी प्राचीन जल संरक्षण प्रणाली का आधार रही हैं। परंतु कुछ एक अपने अस्तित्व को खो रही हैं ।

डीपू बाज़ार , झाकड़ी और मैक्लोडगंज की बावड़ियां सुंदर  धर्मशाला की धरोहर हैं । इंटैक जैसी  अंतर राष्ट्रीय संस्थाएं धर्मशाला में इन बावड़ियों के संग्रक्षण में महत्व पूर्ण भूमिका भी निभा रही हैं । सरकार और एम् सी धर्मशाला द्वारा  भी इन को बचाने के ठोस कदम उठाए  जा रहे हैं । सरकार को चाहिए की वो इन प्राचीन धरोहरों के  वास्तविक स्वरूप से बिल्कुल छेड़ छाड़ ना करते इन्हें संग्रक्षित रखा जाए, और इन्हें विश्व धरोहर सूची में शामिल करवाया जाए।

ये प्रणालियां विभिन्न सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक परिस्थितियों के कारण अपने प्रभावशाली स्वरूप को खो चुकी हैं । इंटैक  प्रेसिडेंट डॉ अश्वनी कौल ने बताया कि यदि समय रहते इनका जीर्णोंद्धार किया जाये तो ये बावड़ियां भविष्य में जल संकट का समाधान बन सकती हैं।

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