बलिदानी बेटे के नाम पर स्मारक गेट बना दो सरकार
संवाद सहयोगी भवारना शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले वतन पर मिटने वालों का यह
संवाद सहयोगी, भवारना : शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर वर्ष मेले, वतन पर मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा। यह नारा देकर नेता बलिदानियों के नाम पर घोषणाएं तो कर देते हैं, लेकिन उन पर अमल कितना होता है यह शायद उन्हें भी नहीं मालूम। मामला पालमपुर उपमंडल के तहत पंचायत भौरा का है। यहां के युवक राम कुमार ने महज 22 साल की उम्र में 8 जून, 2002 को राजोरी सेक्टर में दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहादत का जाम पिया था। राम कुमार 1998 में डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुए थे और महज चार साल बाद ही तिरंगे में लिपटकर घर आए थे।
बलिदानी के पिता कर्म चंद भी सेना से ही सेवानिवृत्त हैं व माता कांता देवी गृहिणी हैं। वह बताते हैं कि राम कुमार की शहादत के बदले सरकार ने उनके बड़े बेटे को सरकारी नौकरी तो दे दी है लेकिन बलिदानी को वह सम्मान नहीं मिला है जिसका वह हकदार था। कर्म चंद बताते हैं कि भौरा पंचायत के सरकारी स्कूल में बेटे की याद में हाल बनवाया है। उन्होंने बताया कि 2013 में भेडू महादेव मंदिर के प्रांगण में आयोजित एक कार्यक्रम में सुलह के पूर्व विधायक जगजीवन पाल ने बलिदानी के नाम पर स्मृति द्वार बनवाने की घोषणा की थी लेकिन आज दिन तक उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है। माता-पिता ने गुहार लगाई है कि उनके जीते जी बलिदानी बेटे की याद में सरकार स्मारक गेट बना दे।
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बलिदानी की याद में स्मारक गेट बनाने के लिए विधायक निधि से पैसा खर्च किया जाना था। उस समय विधायक निधि पर प्रतिबंध लगने के कारण यह कार्य पूरा नहीं हो पाया है। कांग्रेस की सरकार बनते ही इस दिशा में कदम उठाया जाएगा।
-जगजीवन पाल, पूर्व विधायक सुलह।
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स्वजन ने घर में ही मनाया बलिदानी दिवस
कोरोना के कारण स्वजन ने बलिदानी दिवस घर में ही मनाया। पंचायत प्रधान विनोद पटियाल व वार्ड सदस्य किशोरी चंद ने बलिदानी को अमर ज्योति जलाकर व फूल अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।
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भारतीय सेना की वजह से ही हम चैन की नींद सोते हैं। सरकार को देश की खातिर बलिदान देने वाले जवानों के सम्मान में स्मारक बनाने चाहिए।
-पुरुषोत्तम सिंह
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19 साल बाद भी बलिदानी की स्मृति में कुछ न बनना सरकारों की नाकामी को दर्शाता है। भौरा गांव की नई पीढ़ी के बच्चे तो इस बलिदान के बारे में जानते तक नहीं है।
-अमर सिंह
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किसी भी सरकार का ध्यान इस ओर नहीं गया है। प्रशासन और सरकार से मांग है कि बलिदानी के नाम पर स्मारक गेट जल्द से जल्द बनाया जाए।
ओंकार सिंह
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बेटे की याद में स्मारक गेट बन जाए बस यही अंतिम इच्छा है। इतने वर्ष बीतने के बाद अब सरकार व नेताओं की घोषणाओं से भरोसा ही उठ गया है।
-कांता देवी, बलिदानी की मां
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यदि पहले पता होता कि बेटे की शहादत के बदले सिर्फ दूसरे बेटे को नौकरी मिलना था और उसके बाद उनकी कोई पूछताछ नहीं होनी थी तो सरकार का उस समय दिया गया प्रस्ताव ठुकरा दिया होता। वीर जवानों का सम्मान जरूरी है।
-कर्म चंद, बलिदानी के पिता