Medicine Price Hike: चीन पर निर्भरता ने दिया दवा का दर्द, कच्चे माल की कमी से बढऩे लगे दाम, आ सकता है संकट

Medicine Price Hike कोरोना की दूसरी लहर से मिले घावों के बीच आवश्यक दवाओं की कमी चिंता बढ़ा रही है। चालाकी चीन की है। चीन से आई महामारी से निपटने के लिए जिन दवाओं की जरूरत है उनके कच्चे माल के लिए भारत चीन पर ही निर्भर है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Wed, 12 May 2021 03:17 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 08:07 AM (IST)
Medicine Price Hike: चीन पर निर्भरता ने दिया दवा का दर्द, कच्चे माल की कमी से बढऩे लगे दाम, आ सकता है संकट
कोरोना की दूसरी लहर से मिले घावों के बीच आवश्यक दवाओं की कमी चिंता बढ़ा रही है

सोलन, भूपेंद्र ठाकुर। Medicine Price Hike, कोरोना की दूसरी लहर से मिले घावों के बीच आवश्यक दवाओं की कमी चिंता बढ़ा रही है। चालाकी चीन की है। चीन से आई महामारी से निपटने के लिए जिन दवाओं की जरूरत है, उनके कच्चे माल के लिए भारत चीन पर ही निर्भर है। भारत बेशक आकार के हिसाब से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक देश है लेकिन आवश्यक दवाओं का उत्पादन कच्चे माल की कमी के कारण संकट में है। दवाएं इसलिए महंगी मिल रही हैं क्योंकि कच्चा माल नहीं है। भारत के लिए 85 प्रतिशत कच्चा माल चीन से आता है, भारत में केवल 15 फीसद बनता है।

यह रॉ मैटीरियल या कच्चा माल एपीआइ के नाम से जाना जाता है यानी एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट! इसे मनुष्य निर्मित रसायन या मॉलीक्यूल भी कहते हंै। जैसे क्रोसीन का एपीआइ पैरासीटामोल। बीते कुछ माह के दौरान जीवन रक्षक दवाओं में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल के दाम कई गुणा बढ़े हैं। बढ़ती हुई मांग के जवाब में 50 फीसद माल भी चीन से दवा उद्योग को नहीं मिल रहा है। जाहिर है, पुख्ता कदम नहीं उठाए तो देशभर में जीवन रक्षक दवाओं का संकट पैदा हो सकता है। खास बात यह है कि कोरोना उपचार के दौरान इस्तेमाल हो रही दवाओं के कच्चे माल की मांग ही सबसे अधिक बढ़ी है।

चीन पर निर्भरता क्यों?

इसलिए, क्योंकि चीन ने इतनी सस्ती दरों पर सामान देना शुरू किया कि भारतीय उद्योग यहां कच्चा माल बना कर भी चीन वाली कीमत पर नहीं उतर पा रहे थे। 10 साल पहले तक भारत में ही एपीआइ बनते थे। राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा से बतौर प्रोफेसर मेडिसिन सेवानिवृत्त हुए डॉ. राजेश शर्मा कहते हैं, 'चीन में न मानवाधिकार हैं, न श्रमशक्ति कुछ कहती है...मशीनें भी अत्याधुनिक हैं इसलिए वह सस्ते में बना और बेच कर भी कमा जाता है।' भारत सरकार की अनुमति के बाद चीन ने बेहद सस्ते रेट पर भारतीय दवा उद्योगों को एपीआइ मुहैया करवाया। इसके बाद भारतीय बाजार पर चीनी कंपनियों का एकाधिकार हो गया।  जनवरी 2020 में भारत में कोरोना की दस्तक के साथ ही एपीआइ का संकट पैदा हुआ और भारत ने बल्क ड्रग पार्क बनाए जाने की दिशा में प्रयास शुरू किया। बल्क ड्रग पार्क यानी जहां बड़े स्तर पर दवाओं के लिए कच्चे माल का उत्पादन होता है। एक बल्क ड्रग पार्क ऊना में हो, इसके लिए प्रयास जारी हैं लेकिन हुआ कुछ नहीं है।

क्या है अहम दवा उद्योग का हाल

देश के फार्मा हब बीबीएन (बद्दी-बरोटीवाला-नालागढ़) में 650 दवा कंपनियां हैं जो भारत और विदेश में भी दवा आपूर्ति करती हैं। इनमें से अधिकांश के लिए कच्चा माल चीन से आता है। चीन ने बीते दिनों भारत के लिए विमान सेवाएं बंद कर दी थी, नतीजतन दो सप्ताह तक एपीआइ की आपूर्ति बंद रही। अभी मांग और आपूर्ति के बीच ऊंट और जीरे वाला संबंध है, जिसका असर दवाओं के उत्पादन पर पडऩे लगा है। दवा उत्पादक संघ हिमाचल प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. राजेश गुप्ता कहते हैं, 'एपीआइ की आपूर्ति कम होने और कीमतें बढऩे से छोटे दवा उद्योग सर्वाधिक प्रभावित हो रहे हैं। चीन से समय पर सामान नहीं आ रहा है। बेशक अब तक उत्पादन पर असर नहीं पडऩे दिया गया है। एपीआइ के बढ़ते रेट का मामला केंद्र सरकार के समक्ष उठाया गया है।'

सरकार के ध्‍यानार्थ लाया मामला

राज्य दवा नियंत्रक हिमाचल प्रदेश नवनीत मारवाह का कहना है एपीआइ की आपूर्ति का मामला सरकार के ध्यानार्थ लाया गया है। विभाग इस मामले में कुछ भी करने में सक्षम नहीं है।

एपीआइ के बढ़ते दाम एपीआइ, पुराना रेट, नया रेट ( प्रतिकिलो) पैरासीटॉमोल, 350, 900 आइवरमेक्टिन, 15000, 70000 डॉक्सीसाइक्लिन, 6000, 15500 एजिथ्रोमाइसिन, 8500, 14000 प्रोपीलीन ग्लाइकोल, 140, 400

हमारा सीरम मंजूर हुआ तो कच्चा माल स्वयं बनाएंगे

केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआइ) कसौली के निदेशक डॉ. एके तहलान का कहना है एंटी कोविड-19 सीरम के तीन बैच तैयार करके एनआइवी लैब पुणे भेजे गए हैं। यहां से रिपोर्ट आने के बाद आगे का अनुसंधान कार्य शुरू किया जाएगा। अगर हमें स्वीकृति मिलती है तो हम कच्चे माल के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे, देश में ही कुछ करेंगे।

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