जंक फूड ही नहीं, मीठे से भी फूल रहा लिवर

जंक फूड व वसायुक्त भोजन के सेवन से ही नहीं बल्कि अत्याधिक शक्कर यानी मीठा खाने से भी फैटी लिवर (फूला हुआ) की समस्या हो रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने शोध में शक्कर व चर्बी की परस्पर आणविक प्रक्रिया (मालिक्यूलर प्रोसेस) का पता लगाया है।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Mon, 14 Jun 2021 08:51 PM (IST) Updated:Mon, 14 Jun 2021 08:51 PM (IST)
जंक फूड ही नहीं, मीठे से भी फूल रहा लिवर
आइआइटी मंडी के एसोसिएट प्रोफेसर डा.प्रोसेनजीत मंडल व डा.विनीत डेनियल। जागरण

मंडी, जागरण संवाददाता। जंक फूड व वसायुक्त भोजन के सेवन से ही नहीं बल्कि अत्याधिक शक्कर यानी मीठा खाने से भी फैटी लिवर (फूला हुआ) की समस्या हो रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मंडी के शोधकर्ताओं ने शोध में शक्कर व चर्बी की परस्पर आणविक प्रक्रिया (मालिक्यूलर प्रोसेस) का पता लगाया है। लोगों को सलाह दी है कि गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) को बढऩे से रोकने के लिए कम मात्रा में शक्कर खाएं। स्कूल आफ बेसिक साइंसेज में एसोसिएट प्रोफेसर डा. प्रोसेनजीत मंडल के नेतृत्व में पूरक प्रायोगिक प्रक्रिया से इस बात का पता लगाया गया है कि अत्याधिक मीठा खाने का फैटी लिवर होने से जैव रासायनिक संबंध है।

शोध विद्वानों की टीम

डा. प्रोसेनजीत मंडल की टीम में शोध विद्वान डा. विनीत डैनियल, सुरभि डोगरा, प्रिया रावत, अभिनव चौबे, जामिया हमदर्द संस्थान, नई दिल्ली के डा. मोहन कामथन, आयशा सिद्दीक खान व एसजीपीजीआइ लखनऊ के संगम रजक शामिल थे।

चर्बी जमा होना चिकित्सकीय समस्या

एनएएफएलडी लिवर में बहुत ज्यादा चर्बी जमा होने की चिकित्सकीय समस्या है। दो दशक तक कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखते हैं। उपचार न होने की स्थिति में ज्यादा चर्बी लिवर की कोशिकाओं को बुरी तरह प्रभावित कर सकती है। परिणामस्वरूप लिवर सिरोसिस हो सकता है। समस्या अधिक गंभीर होने पर लिवर कैंसर भी हो सकता है।

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हेपैटिक डीएनएल बढऩे की प्रक्रिया के बारे में अब तक स्पष्ट जानकारी नहीं

बकौल डा. प्रोसेनजीत मंडल, ज्यादा मीठा खाने से हेपैटिक डीएनएल बढऩे की प्रक्रिया के बारे में अब तक स्पष्ट जानकारी नहीं है। उनका लक्ष्य ज्यादा मीठा खाने व फैटी लिवर की समस्या शुरू होने और डीएनएल के माध्यम से ज्यादा गंभीर होने के बीच परस्पर प्रक्रिया को स्पष्ट करना है। एनएएफएलडी की गंभीरता समझने व इसे रोकने का प्रयास करने वाला भारत दुनिया का पहला देश है। देश की लगभग नौ से 32 प्रतिशत आबादी में यह समस्या है। केवल केरल में 49 प्रतिशत आबादी इससे ग्रस्त है। स्कूली बच्चों में भी जो मोटे हैं उनमें 60 प्रतिशत में यह समस्या है। सामान्य चीनी (सुक्रोज) व कार्बोहाइड्रेट के अन्य रूप में चीनी दोनों इसकी वजह है। ज्यादा मीठा व अधिक कार्बोहाइड्रेट खाने पर लिवर उन्हें चर्बी में बदल देता है। इस प्रक्रिया को हेपैटिक डी नोवोलाइपोजेनेसिस या डीएनएल कहते हैं। इस तरह लिवर में चर्बी जमा हो जाती है। शोधकर्ताओं ने चूहों के माडलों पर पूरक प्रायोगिक प्रक्रिया से यह दिखाया कि कार्बोहाइड्रेट की वजह से एक जटिल प्रोटीन एनएफ-केबी के सक्रिय होने व डीएनएल बढऩे के बीच परस्पर संबंध है जो अब तक अज्ञात रहा है। डाटा से स्पष्ट है कि शर्करा के जरिए हेपैटिक एनएफ पीबीपी 65 के सक्रिय होने से एक अन्य प्रोटीन सार्सिन कम हो जाता है जिसके चलते कैस्केङ्क्षडग जैव रासायनिक मार्ग से लिवर का डीएनएल सक्रिय हो जाता है।

अधिक मीठा खाने से लिवर में चर्बी जमा होने के बीच आणविक संबंध स्पष्ट होने पर इस बीमारी का इलाज ढ़ूंढना आसान होगा। एनएफ-केबी को रोकने की दवा शर्करा की वजह से लिवर में चर्बी बढऩे की समस्या भी दूर कर सकती है। सार्सिन घटने से एनएफ-केबी इनहिबिटर की चर्बी नियंत्रण क्षमता कम हो जाती है। शोध से लिवर में चर्बी जमा होने में एनएफ-केबी की खास भूमिका होने के बारे में पता लगाने के बाद चिकित्सा विज्ञान के सामने एनएएफएलडी के उपचार का नया रास्ता खुल गया है। सूजन संबंधी अन्य बीमारियों में भी एनएफ-केबी की भूमिका है जैसे कि कैंसर, अल्जाइमर रोग, एथेरोस्क्लेरोसि, आइबीएस, स्ट्रोक, मांसपेशियों का खराब होना। शोध से यह भी स्पष्ट है कि एनएफ-केबी को रोकने की दवा से जिन बीमारियों का इलाज होता है अब उनमें एनएफएलडी भी शुमार हो सकता है।

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