कम बारिश से बिजली संकट के बादल, बांधों के कैचमेंट एरिया के सूखे ने कम की टरबाइन की रफ्तार

उत्तर भारत के कई राज्यों को सर्दियों में भी बिजली कट का सामना करना पड़ सकता है। उत्तरी ग्रिड की रीढ़ भाखड़ा व पौंग बांध के अवाह क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में सूखा ङ्क्षचता का सबब बन गया है। सूखे ने पनविद्युत प्रोजेक्ट की टरबाइन की रफ्तार कम कर दी है।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Thu, 02 Sep 2021 11:55 PM (IST) Updated:Thu, 02 Sep 2021 11:55 PM (IST)
कम बारिश से बिजली संकट के बादल, बांधों के कैचमेंट एरिया के सूखे ने कम की टरबाइन की रफ्तार
कम बारिश से विद्युत उत्पादन हुआ प्रभावित। प्रतीकात्मक

हंसराज सैनी, मंडी। उत्तर भारत के कई राज्यों को सर्दियों में भी बिजली कट का सामना करना पड़ सकता है। उत्तरी ग्रिड की रीढ़ भाखड़ा व पौंग बांध के अवाह क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) में सूखा ङ्क्षचता का सबब बन गया है। सूखे ने भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) के दोनों पनविद्युत प्रोजेक्ट की टरबाइन की रफ्तार कम कर दी है। दोनों प्रोजेक्ट अप्रैल से जुलाई तक बिजली उत्पादन का निर्धारित लक्ष्य हासिल नहीं कर पाए हैं। अगस्त में मुश्किल से लक्ष्य तक पहुंच पाए। यही स्थिति राज्य विद्युत परिषद के 23 पनविद्युत प्रोजेक्टों की है। पूर्व में बरसात में पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने पर बिजली उत्पादन के रिकार्ड स्थापित होते रहे हैं।

भाखड़ा बांध का कैचमेंट एरिया 56,980 वर्ग किलोमीटर है। जलाशय का क्षेत्र 168.35 वर्ग किलोमीटर है। अधिकतम भंडारण क्षमता 1680 फीट है। 2005 के बाद इस बार कैचमेंट एरिया में सबसे कम बारिश हुई है। 15 माह से स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। आमतौर पर कैचमेंट एरिया में 1000 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती है। गत वर्ष 874 मिलीमीटर बारिश हुई। इससे पहले 2005 में सबसे कम 747 मिलीमीटर बारिश हुई थी। सूखे की वजह से गत वर्ष भाखड़ा बांध का अधिकतम जलस्तर 1662 फीट तक अटक गया था। इस साल जून से अगस्त तक मात्र 367 मिलीमीटर बारिश हुई है। सितंबर के 28 दिन बाकी हैं। भाखड़ा बांध के कैचमेंट एरिया में जून से सितंबर तक 600 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती रही है।

पौंग बांध का कैचमेंट एरिया 12,560 वर्ग किलोमीटर है। अधिकतम भंडारण क्षमता 1421 फीट है। गत वर्ष 1284 मिलीमीटर बारिश हुई थी। इससे पहले 1983-84 में 1192 मिलीमीटर बारिश हुई थी। पौंग बांध के कैचमेंट एरिया में 1983-84 से पिछले साल तक 1700 मिलीमीटर से अधिक बारिश होती रही है। सितंबर तक दोनों बांधों के जलाशय में पानी का अधिकतम स्तर तक भंडारण किया जाता है। यही पानी सर्दी में बिजली उत्पादन के अलावा भागीदारी राज्यों में सिंचाई के काम आता है। बरसात में ब्यास व सतलुज नदी उफान पर रहती थी। दोनों नदियां अभी तक शांत बनी हुई हैं।

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