हिमाचल उपचुनाव में राजनीतिक विरासत की जंग लड़ रहे नेता,जीत मिली तो राजनीतिक परिवार होंगे और मजबूत

उपचुनावों में हिमाचल के तीन प्रत्याशी विरासत की जंग लड़ रहे हैं। तीनों अपने परिजनों की सीटों पर चुनावी बिसात बिछा कर विरोधी दलों को टक्कर दे रहे। वहीं राजनीतिक परिवार की पूरी प्रतिष्ठा इन चुनावों में लगी है।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 10:54 AM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 10:54 AM (IST)
हिमाचल उपचुनाव में राजनीतिक विरासत की जंग लड़ रहे नेता,जीत मिली तो राजनीतिक परिवार होंगे और मजबूत
प्रदेश में हो रहे उपचुनावों में हिमाचल के तीन प्रत्याशी विरासत की जंग लड़ रहे हैं।

शिमला, रोहित नागपाल। प्रदेश में हो रहे उपचुनावों में हिमाचल के तीन प्रत्याशी विरासत की जंग लड़ रहे हैं। तीनों अपने परिजनों की सीटों पर चुनावी बिसात बिछा कर विरोधी दलों को टक्कर दे रहे। इसमें एक प्रत्याशी को तो अपनी जिंदगी भर की राजनीतिक कमाई को दांव पर लगाकर विरासत बचाने के लिए चुनावी समर में उतरना पड़ा। वहीं राजनीतिक परिवार की पूरी प्रतिष्ठा इन चुनावों में लगी है। यदि इस चुनाव में जीते हैं तो आने वाला समय भी कांग्रेस ने उसी परिवार का होगा और यदि उन्हें हार का सामना करना पड़ता है तो राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ सकता है।

हिमाचल में एक लोकसभा और 3 विधानसभा हलकों पर चुनाव हो रहा है। इसमें मंडी संसदीय सीट से पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी पूर्व सांसद प्रतिभा सिंह कांग्रेस की ओर से चुनावी समर में उतरी है। वह अपने पति पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने के लिए चुनावी समर में लगातार पसीना बहा रही हैं। वही जुब्बल कोटखाई से चेतन बरागटा पिता के देहांत के बाद उप चुनाव में है। इसलिए वह भी मैदान में डटे है,उनकी अपनी पार्टी भाजपा से टिकट न मिलने के कारण उन्होंने राजनीतिक विरासत को चलाने के लिए आजाद प्रत्याशी के तौर पर उतरने का फैसला लिया है। उनका पूरा भविष्य इन चुनावों पर टिका है। यदि उन्हें जीत मिलती है तो भाजपा से लेकर अन्य सभी विकल्प उनके पास खुले होंगे।

वहीं फतेहपुर सीट से अपनी सादगी के लिए जाने जाने वाले पूर्व मंत्री स्व. सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया भी मैदान में हैं , हालांकि वे लंबे समय तक कॉर्पोरेट सेक्टर में सेवाएं देते रहे ,लेकिन चुनावों के समय हमेशा अपने पिता के साथ रहते थे। आम जनता से जुड़े रहते थे। इसलिए वह भी अपने क्षेत्र से पारिवारिक राजनीतिक विरासत को संभालने के लिए सब कुछ छोड़ कर चुनावी समर में हैं। अब देखते हैं कि हिमाचल की जनता राजनीतिक विरासत संभालने वाले नेताओं पर विश्वास जताती है या फिर किसी अन्य मुद्दों पर चुनाव का वोट करती है। चुनावों में जीत किसके हाथ लगेगी यह तो भविष्य के गर्भ में छुपा है लेकिन राजनीतिक विरासत और मुद्दों के बीच होने वाली राजनीतिक जंग के बीच प्रदेश में सियासत पूरी तरह से गरमाई हुई है।

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