दैत्य जालंधर को मारने में बाद मां बज्रेश्वरी की चोटों पर लगाया था घृत, जानिए घृत मंडल का रहस्य

मकर संक्रांति पर घृत मंडल पर्व हर साल मनाया जाता है। इस घृत मंडल पर्व के आयोजन के पीछे कई मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं के आधार पर ही आज भी यह पर्व मनाया जाता है और दूर दूर से लोग यहां श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर कांगड़ा आते हैं।

By Richa RanaEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 09:30 AM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 09:30 AM (IST)
दैत्य जालंधर को मारने में बाद मां बज्रेश्वरी की चोटों पर लगाया था घृत, जानिए घृत मंडल का रहस्य
कर संक्रांति पर घृत मंडल पर्व हर साल मनाया जाता है।

कांगड़ा, रितेश ग्रोवर। मकर संक्रांति पर घृत मंडल पर्व हर साल मनाया जाता है। इस घृत मंडल पर्व के आयोजन के पीछे कई मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं के आधार पर ही आज भी यह पर्व मनाया जाता है और दूर दूर से लोग यहां श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर कांगड़ा आते हैं।

एक मान्यता के अनुसार जालंधर दैत्य को मारते वक्त मां के शरीर पर अनेक चोटें आई थीं। चोटों के घावों को ठीक करने के लिए माता के शरीर पर घृत का लेप किया था। उस दौरान देवी-देवताओं ने देसी घी को एक सौ एक बार शीतल जल से धोकर उसका मक्खन बनाया था और उसे माता के शरीर पर आए घावों पर लगाया था। इस मान्यता के बाद कांगड़ा श्री बज्रेश्वरी माता मंदिर में ये परंपरा कब शुरू हुई, इसको लेकर अभी तक कोई सही उल्लेख तो नहीं मिलता है, लेकिन सदियों से इसका निर्वहन किया जा रहा है। मक्खन से मां का सजाने के बाद फल और मेवों से इस पिंडी का श्रृंगार किया जाता है।

101 बार ठंडे पानी से धोकर तैयार किया जाता है मक्खन

मक्खन से मां का श्रृंगार अद्भुत होता है लेकिन घी से मक्खन तैयार करने की प्रक्रिया भी किसी तप से कम नहीं है। देसी घी को 101 बार ठंडे जल में रगड़-रगड़ बनाया जाता है। इसे तैयार करने में पुजारियों को कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। बर्फ जैसे ठंडे पानी में देसी घी को 101 बार धोना किसी कल्पना से कम नहीं है, लेकिन माता की कृपा से यह कार्य संपन्न होता है।

घृत मंडल पर्व शुरू होने से आठ दिन पहले ही घी से मक्खन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इन दिनों इस अंतिम रूप दिया जा रहा है। घृत पर्व के लिए मंदिर को रंग-विरंगी रोशनी से सजाया गया है। कई साल से चले आ रहे इस पर्व में हर श्रद्धालु अपनी भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है। माघ मास की संक्रांति के दिन शुरू होने वाले इस उत्सव के दौरान मंदिर में खास इंतजाम किए जाते हैं।

चर्म रोगों के लिए रामबाण

मान्यता है कि शरीर के चर्म रोगों और जोड़ों के दर्द में लेप करने के लिए यह प्रसाद रामबाण का काम करता है। मकर संक्रांति पर्व पूरे देश के साथ-साथ कांगड़ा के नगरकोट धाम में भी मनाया जाता है। इस पर्व पर बज्रेश्वरी मंदिर कांगड़ा में घृतमंडल तैयार किया जाता है। गर्भगृह से लेकर प्रांगण तक मां के दिव्य भवन में मां के भक्तों का तांता लगा रहता है। यह परंपरा देवीय काल से चली आ रही है और शक्तिपीठ मां बज्रेश्वरी के इतिहास से संबंधित है।

सात दिन तक मां की पिंडी पर चढ़ा रहता है मक्खन

घृतमंडल पर्व मकर संक्रांति से लेकर सात दिन तक चलता है। इस दौरान लोग मंदिर में माता के इसी रूप का दीदार करते हैं। सात दिन बाद इस मक्खन को माता की पिंडी से उतारा जाता है। उसके बाद इसे प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। मान्यता है कि माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ने के बाद यह औषधि बन जाता है। लोग इसे व्याधि या अन्य चर्म रोगों को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं, लेकिन इसे खाने के लिए उपयोग नहीं किया जाता है।

chat bot
आपका साथी