जानिए कैसे, आइजीएमसी में बिना चीरफाड़ 12 साल के बच्चे के दिल का छेद किया बंद

इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) शिमला में शुक्रवार को हृदय रोग विभाग में 12 वर्षीय बच्चे के दिल का छेद बिना चीरफाड़ के बंद कर दिया। परक्यूटेनियस डिवाइस क्लोजर चिकित्सा पद्धति से विशेषज्ञ डा. दिनेश बिष्ट और डा. राजेश शर्मा ने बच्चे की जान बचाई।

By Virender KumarEdited By: Publish:Fri, 30 Jul 2021 07:42 PM (IST) Updated:Fri, 30 Jul 2021 07:42 PM (IST)
जानिए कैसे, आइजीएमसी में बिना चीरफाड़ 12 साल के बच्चे के दिल का छेद किया बंद
आइजीएमसी में आपरेशन के बाद बच्‍चे के साथ डाक्‍टर्स। जागरण

शिमला, जागरण संवाददाता। इंदिरा गांधी मेडिकल कालेज एवं अस्पताल (आइजीएमसी) शिमला में शुक्रवार को हृदय रोग विभाग में 12 वर्षीय बच्चे के दिल का छेद बिना चीरफाड़ के बंद कर दिया। परक्यूटेनियस डिवाइस क्लोजर चिकित्सा पद्धति से विशेषज्ञ डा. दिनेश बिष्ट और डा. राजेश शर्मा ने बच्चे की जान बचाई। बच्चा काफी समय से इस बीमारी से ग्रस्त था और इलाज न मिलने के कारण चंबा जिला का रहने वाला परिवार बेहद परेशानी में था। बच्चे का सफलतापूर्वक इलाज होने से अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।

डा. दिनेश बिष्ट का कहना है कि तार के माध्यम से टांग के जरिये छेद बंद करने वाली डिवाइस को मरीज के शरीर में फिट किया गया। इसमें काफी जोखिम था, क्योंकि डिवाइस के इधर-उधर खिसकने और बीच में तार के कारण किसी नस के कटने से हार्ट ब्लाक होने की आशंका बनी रहती है। कार्यकुशलता की कमी के कारण मरीज की जान जोखिम में पड़ सकती है। उन्होंने कहा कि मरीज की हालत अब स्थिर है और उसे अब छुट्टी दे दी जाएगी। डा. दिनेश नाहन मेडिकल कालेज से प्रतिनियुक्ति पर छह माह की सेवा देने आइजीएमसी आए हैं।

एकमात्र कार्डियोलाजिस्ट हैं डा. बिष्ट

डा. दिनेश बिष्ट हिमाचल के पहले व एकमात्र पीडियाट्रिक कार्डियोलाजिस्ट हैं। इनकी सेवाओं से आइजीएमसी व कमला नेहरू अस्पताल में नवजात शिशुओं की देखभाल में काफी फायदा हो रहा है। रोजाना दो बजे के बाद वह कमला नेहरू अस्पताल शिमला में नवजात बच्चों की जांच करते हैं। इससे बच्चों में हृदय रोग की रोकथाम में काफी सहायता मिल रही है। आइजीएमसी में प्रशिक्षु डा. मीना राणा का कहना है कि डा. दिनेश के निर्देशन में उन्हें काफी कुछ सीखने को मिल रहा है। इस तरह की बीमारी से जूझ रहे मरीजों को इससे पहले इलाज के लिए दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता था।

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