Kinnaur Landslide: किन्नौर की सड़कों पर सफर से डरने लगे लोग, ये हैं खतरनाक स्पाट
Kinnaur Landslide Spots कुछ वर्षों में किन्नौर जिला में पहाड़ दरकने की घटनाएं बढ़ी हैं। बिजली परियोजनाओं और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे विकास कार्यों के कारण पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। हादसों में कई लोगों की जान भी जा चुकी है
रिकांगपिओ, संवाद सहयोगी। Kinnaur Landslide Spots, कुछ वर्षों में किन्नौर जिला में पहाड़ दरकने की घटनाएं बढ़ी हैं। बिजली परियोजनाओं और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे विकास कार्यों के कारण पहाड़ कमजोर हो रहे हैं। हादसों में कई लोगों की जान भी जा चुकी है, वहीं करोड़ों रुपये का नुकसान हर साल हो रहा है। यहां लोग सफर करते समय हमेशा चिंतित रहते हैं। कुछ दिन पहले निगुलसरी में पहाड़ दरकने से 28 लोगों की मौत हुई थी। 25 जुलाई को सांगला-छितकुल सड़क पर बटसेरी के पास भूस्खलन के कारण नौ पर्यटकों की मौके पर मौत हो गई थी।
निगुलसरी हादसे के बाद लोगों की जुबान पर यही शब्द थे कि अब तो किन्नौर की सड़कों पर सफर करना खतरनाक हो गया है। मूरंग उपतहसील के तहत खदूरा गांव के पास कुछ वर्ष पहले भूस्खलन होने से राष्ट्रीय उच्च मार्ग का करीब एक किलोमीटर हिस्सा पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया था। हादसे में सेना के कुछ वाहन भी मलबे की जद में आ गए थे। इसके अलावा हंगरंग घाटी में पहाड़ दरकने से यंगथंग से चांगो राष्ट्रीय उच्च मार्ग भी पूरी तरह से कट गया था। अब नाको मलिंग होकर सड़क बनाई है। इसी तरह उपतहसील टापरी में के उरनी गांव में भूस्खलन के कारण कई लोगों को गांव छोडऩा पड़ा था। वहीं, उपायुक्त किन्नौर ने सर्वेक्षण के लिए विशेषज्ञों की तैनाती के लिए सात अगस्त को उपमहानिदेशक, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण की राज्य इकाई से पत्राचार किया है।
इन स्थानों पर है भूस्खलन का खतरा
ककस्थल के पास पागल नाला गर्म पानी टापरी निचार में नाथपा बटसेरी के पास खरोगला नाला टिंकू नाला में पूरबानी झूला के पास पूह में मलिंग नाला रिब्बा नालाक्या कहते हैं स्थानीय व प्रतिनिधि
लोगों ने शुरू की है 'नो मीन्स नो, सेव किन्नौर की मुहिम
जिला किन्नौर की विभिन्न पंचायतों के लोगों ने किन्नौर के अस्तित्व को बचाने के लिए व परियोजनाओं के विरोध में 'नो मीन्स नो, सेव किन्नौर' की मुहिम शुरू की है। लोगों ने विद्युत परियोजनाओं के निर्माण पर रोक लगाने के लिए आवाज बुलंद की है।
क्या कहते हैं विधायक व पूर्व विधायक
विधायक जगत सिंह नेगी ने कहा जिला में पहाड़ों का दरकना जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण से पूर्व से ही होता आ रहा है। टापरी, उरनी, मलिंग व खदुरा आदि स्थानों पर समय-समय पर भूस्खलन होता आ रहा है। 80 के दशक में टापरी के गर्म पानी के पास भूस्खलन होता रहा है। भूस्खलन रोकने के लिए प्रयास किए जाते हैं। 2000 में कड़छम वांगतू प्रोजेक्ट बना उसके बाद भी यहां भूस्खलन का होता रहा है। हिमाचल प्रदेश वन विकास निगम के उपाध्यक्ष सूरत नेगी ने कहा भूस्खलन को रोकना असंभव है। यह प्राकृतिक भी है और कहीं पर जल विद्युत परियोजना के निर्माण से भी हो रहा है। सरकार की ओर से भूस्खलन रोकने का प्रयास किया जाता रहा है। इसके अलावा सर्वे भी करवाया जाता है।