काष्ठकुणी शैली के मकान कुल्लू की पहचान, मलाणा में दो अग्निकांड के बाद नाममात्र रह गए प्राचीन घर, जानिए
Kullu Kashkuni Style House जिला कुल्लू काष्ठकुणी शैली (लकड़ी से बने) मकानों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। हालांकि इन मकानों की जगह अब धीरे-धीरे आधुनिक मकान ले रहे हैं। लेकिन अधिकतर गांवों में आज भी काष्ठकुणी शैली के ही मकान हैं।
कुल्लू, कमलेश वर्मा। Kullu Kashkuni Style House, जिला कुल्लू काष्ठकुणी शैली (लकड़ी से बने) मकानों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है। हालांकि इन मकानों की जगह अब धीरे-धीरे आधुनिक मकान ले रहे हैं। लेकिन अधिकतर गांवों में आज भी काष्ठकुणी शैली के ही मकान हैं। मणिकर्ण घाटी के प्रसिद्ध मलाणा गांव में भी काष्ठकुणी शैली के ही मकान थे। लेकिन दो बार आग की भेंट चढ़े इस गांव में अब लकड़ी के मकान कम ही रह गए हैं, जिनमें से गत रात हुए अग्निकांड में अधिकतर घर राख हो गए हैं। वहीं, जिला के सभी मंदिर काष्ठकुणी शैली से बने हुए हैं।
सनद रहे कि पहले जहां लकड़ी की उपलब्धता अधिक होती थी और सड़कें न होने के कारण सीमेंट, रेत व अन्य निर्माण सामग्री गांवों तक पहुंचानी मुश्किल होती थी, जंगल व पत्थर, मिट्टी आासानी से उपलब्ध होने के चलते लोग काष्ठकुणी शैली के मकानों को तवज्जो देते थे। वर्तमान समय में लकड़ी की पर्याप्त उपलब्धता न होने के कारण और आग से बचाव के कारण लोग पक्के मकानों को बनाने को प्राथमिकता दे रहे हैं। लेकिन अभी भी दुर्गम क्षेत्रों में कई गांव ऐसे हैं,जहां काष्ठकुणी शैली के मकान देखने को मिल जाते हैं, लेकिन शहरों में इनकी संख्या नाम मात्र ही रह गई है।
लकड़ी का होता है अधिक इस्तेमाल
काष्ठकुणी शैली के मकानों में अधिकतर लकड़ी का इस्तेमाल होता है।इस शैली के मकान में सीमेंट का बिल्कुल भी प्रयोग नहीं किया जाता है और दीवारों पर मिट्टी और गोबर के मिश्रण से बने पदार्थ का पलस्तर किया जाता है और साथ में लकड़ी इस्तेमाल की जाती है। गांव में घर एक दूसरे से सटे होने तथा घर की निचली मंजिल में घास व लकड़ी रखने की वजह से आग की एक चिंगारी पूरे घर को राख में बदलने को देरी नहीं लगाती। कुल्लू जिला में अब तक भीषण अग्निकांडों में काष्ठकुणी शैली से बने पूरे पूरे गांव भी आग की भेंट चढ़े हैं। मलाणा गांव दो बार पूरी तरह से जल चुका है। मलाणा गांव की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि गांव तक सड़क सुविधा न होने के कारण फयर ब्रिगेड पहुंचना मुमकिन नहीं।
एक-दूसरे से सटे हैं मकान
पहाड़ों पर बने लकड़ी के इन मकानों को देखकर पर्यटक भी उनकी ओर खींचे चले आते हैं। हालांकि बीते कुछ दशकों से जिला कुल्लू में कंक्रीट के जंगल बनने शुरू हुए और लोगों ने सीमेंट के मकान बनाने शुरू कर दिए लेकिन पर्यावरण में आए बदलाव के चलते अब एक बार फिर से लोग पत्थर और लकड़ी से बने मकानों की ओर आकर्षित हो रहे हैं और ग्रामीण इलाकों में लोग काष्ठकुणी जिन्हें कुल्लवी बोली में काठकुणी कहा जाता है के भवनों का निर्माण कर रहे हैं।
गर्मियों में ठंडे व सर्दियों में गर्म होते हैं मकान
इस शैली से बने मकानों की खासियत यह है कि गर्मियों में यह ठंडे और सर्दियों में गर्म होते हैं। गर्मियों के मौसम में भी ऐसे घरों में पंखों की जरूरत नहीं होती है। यह मकान भूकंपरोधी भी होते हैं जिसका प्रमाण जिला कुल्लू का नग्गर कैसल और चैहणी कौठी है।इस शैली के घर व मंदिर बनाने वाले कारीगर कई बार तो लोहे की कील का भी इस्तेमाल नहीं करते हैं। लकड़ी को आपस में जोड़ने के लिए लकड़ी की ही कील तैयार कर उसे जोड़ा जाता है। इस शैली की खासियत लकड़ी पर की गई नक्काशी है जो यहां की कला की एक विशेष पहचान है। इसे हाथ से उकेरा जाता है और इन्हें बनाने में बहुत समय लगता है।