आधुनिकता के युग में वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझना जरूरी
वैज्ञानिक मनोवृत्ति मानवतावाद उत्सुकता की भावना और सुधार की बात करती है। इसे हर नागरिक क
वैज्ञानिक मनोवृत्ति मानवतावाद, उत्सुकता की भावना और सुधार की बात करती है। इसे हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य बताया गया है। हमारे संविधान में वैज्ञानिक मनोवृत्ति का जिक्र विशेष रूप से है। आज से ज्यादा बेहतर वक्त नहीं होगा जब हमें कर्तव्य को याद करना चाहिए व इसके प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए। कुछ वर्ष पहले पुणे में सामाजिक कार्यकर्ता और तर्कवादी नरेंद्र दाभोलकर की अज्ञात हमलावरों ने वैज्ञानिक मनोवृत्ति बढ़ाने और अंधविश्वास का विरोध करने के लिए हत्या कर दी थी। ऐसे कई और उदाहरण भी हैं जहां पर वैज्ञानिक मनोवृत्ति को बढ़ाने वालों को जान से हाथ धोना पड़ा। 20 अगस्त को आल इंडिया पीपल्स साइंस नेटवर्क की ओर से राष्ट्रीय वैज्ञानिक मनोवृत्ति दिवस मनाया जाता है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का मतलब है कि विज्ञान के इस युग में कैसे एक सजग जीवन जिया जा सके। प्रकृति के नियम और उस वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझना इंसान को आज के आधुनिकता के युग में बहुत जरूरी है। जांच की वैज्ञानिक तकनीक के मुताबिक असल दुनिया में किसी भी चीज पर यकीन किया जा सकता है जब उसके बारे में सारे सुबूत भी मौजूद हों। विज्ञान के पास हमारी हर समस्या का समाधान है इसलिए हमें शुरुआत में ही बच्चों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति और जिज्ञासा पैदा करनी चाहिए। वैज्ञानिक सोच में जिज्ञासा, तार्ककिकता और खुली विचारधारा समाहित होती है। कभी भी जीवन में अंधविश्वास न आने दें। इसके बजाए हमें किसी दावे की जांच के लिए ज्यादा ऊंचा पैमाना बनाना चाहिए। विकास के युग में रहते हुए हमारे लिए यह अनिवार्य है कि हम किसी भी दावे को तेजतर्रार व तार्किक वैज्ञानिक ढंग से जांचें। दिमाग में यह बात रखना जरूरी है कि विज्ञान सिर्फ कुछ कुलीनों की संपत्ति नहीं है, जिन्होंने विज्ञान को उच्च स्तर तक पढ़ा है। अगर हम प्रकृति को अपनी समझ बनाने के लिए विज्ञान को एक उत्सुकता का वैज्ञानिक तरीका मानते हैं तो हममें से हर किसी के लिए यह आदत विकसित करना संभव है। विज्ञान ही किसी भी चीज को जानने का एकमात्र तरीका है, बाकी सारा कुछ अंधविश्वास है। वैज्ञानिक मनोवृत्ति का निर्माण तभी हो सकता है, जब हम अपने अज्ञान को स्वीकार करें और जवाबों की खोज करें। यहां सांख्यिकीय आंकड़े बहुत अहम होते हैं। आंकड़ों के निष्पक्ष विश्लेषण के बाद अगर परिकल्पना को नकारा जाता है तो इसमें फेरबदल या इसे रद किया जाना जरूरी होता है। वैज्ञानिक अपनी परिकल्पनाओं से चिपके नहीं रहते, जबकि बहुत सारे धार्मिक शिक्षक उनकी धार्मिक शिक्षाओं पर अड़े रहते हैं। जो चीज परीक्षण, प्रयोगों और सुबूतों से साबित नहीं हो पाती, उसे गलत या अंधविश्वास के तौर पर खारिज करना जरूरी है। एक वैज्ञानिक परिकल्पना को वैध ठहराने का सही तरीका किसी प्रयोग की बारंबरता है। मतलब इस प्रयोग को दोहराया जाए। अगर कोई वैज्ञानिक प्रयोग न्यूयार्क में किया गया है तो वह नई दिल्ली में भी दोहराया जा सकता है। अगर दोनों को एक ही तरीके से दोहराया गया है तो दोनों के नतीजे भी एक जैसे आना चाहिए। अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि अगर मेरे पास किसी समस्या को हल करने के लिए एक घंटा होगा तो मैं 55 मिनट तक समस्या पर विचार करूंगा और पांच मिनट समाधान पर सोचूंगा। ज्ञान को समाधान तक पहुंचने की प्रक्रिया समझा जाना चाहिए, न कि अंतिम नती•ा। दूसरे शब्दों में कहें तो आलोचनात्मक ढंग से सोचने की क्षमता, प्रयोग और मस्तिष्क का अभूतपूर्व उपयोग कर किसी समाधान पर पहुंचना, पहले से उपलब्ध जानकारी से ज्यादा अहम है। कैसे सोचना है, क्या सोचना है, से ज्यादा अहमियत रखता है।
-एमएल कश्यप, अध्यक्ष एवं प्रधानाचार्य, रेनबो इंग्लिश स्कूल भटेहड़।