कुल्‍लू दशहरा: इंसान की तरह देवी-देवता भी करते हैं पूरी दिनचर्या, रघुनाथ जी को पांच बार लगता है विशेष भोग

International Kullu Dussehra इंसान की भांति देवी-देवता भी दिनचर्या पूरी करते हैं। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में भी रघुनाथ जी समेत सभी देवी-देवता इन प्रक्रियाओं को निभा रहे हैं। सुबह से रात तक पांच बार दूध और लुची यानी मैदा से बनी रोटी का भोग लगाया जा रहा है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 11:07 AM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 02:20 PM (IST)
कुल्‍लू दशहरा: इंसान की तरह देवी-देवता भी करते हैं पूरी दिनचर्या, रघुनाथ जी को पांच बार लगता है विशेष भोग
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में भी रघुनाथ जी

कुल्लू, कमलेश वर्मा। International Kullu Dussehra इंसान की भांति देवी-देवता भी दिनचर्या पूरी करते हैं। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव में भी रघुनाथ जी समेत सभी देवी-देवता इन प्रक्रियाओं को निभा रहे हैं। अठारह करडू की सौह (ढालपुर मैदान) स्थित अस्थायी शिविर में रघुनाथ जी, भगवान नृसिंह, माता सीता, शालीग्राम व हनुमान जी को अस्थायी शिविर में सुबह से रात तक पांच बार दूध और लुची यानी मैदा से बनी रोटी का भोग लगाया जा रहा है। दिन में एक बार दाल व चावल का भोग लग रहा है।

अधिष्ठाता भगवान रघुनाथ जी श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहे हैं। सोने, जागने, खाने, पीने के अलावा नृत्य का भी लुत्फ उठा रहे हैं। उत्सव के दौरान सात दिन तक हर रोज सुबह से शाम तक राजसी तरीके से सभी प्रक्रिया चलेगी। रघुनाथ जी के पुजारी दिनेश किशोर के अनुसार रघुनाथ जी, माता सीता, नृसिंह, शालीग्राम व हनुमान जी के लिए भोजन ग्रहण करने को अलग-अलग अस्थायी शिविर हैं। इनमें सभी विराजमान होते हैं और भोजन परोसा जाता है।

उस स्थान का पर्दा बंद कर दिया जाता है, जब तक भगवान जी भोजन ग्रहण करते हैं तब तक पुजारी माला जपता है। खाना खाने के बाद रघुनाथ जी तुंग नामक पेड़ की लकड़ी की दातुन भी करते हैं। उसके बाद सभी देवी-देवता अपने-अपने स्थान पर विराजमान होते हैं। आराम भी करते हैं। अस्थायी शिविर में चार पहर उनकी पूजा-अर्चना हो रही है। दिन से लेकर रात तक रघुनाथ जी का गुणगान और शिविर में चंद्राउली नृत्य भी हो रहा है।

क्‍या कहते हैं छड़ीबरदार

भगवान रघुनाथ जी के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह का कहना है अयोध्या की तर्ज पर दशहरा उत्सव में, अन्य दिन भी भगवान रघुनाथ जी की हर परंपरा का निर्वहन हो रहा है। इन्सान की तरह ही भगवान रघुनाथ जी भी अपनी दिनचर्या पूरी करते हैं।

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