सबसे बड़े कर्मचारी संगठन पर अंदरुनी सियासत भारी, कभी समानांतर सरकार चलाता था महासंघ, पढ़ें खबर

Himachal Employee Politics अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ कभी प्रदेश में समानांतर सरकार चलाता था लेकिन पिछले दो दशक में संगठन के रुतबे में बड़ी गिरावट आई है। यह संगठन वर्ष 1966 में अस्तित्व में आया था। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में जेसीसी की एक भी बैठक नहीं हो पाई है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Wed, 21 Jul 2021 01:36 PM (IST) Updated:Wed, 21 Jul 2021 01:36 PM (IST)
सबसे बड़े कर्मचारी संगठन पर अंदरुनी सियासत भारी, कभी समानांतर सरकार चलाता था महासंघ, पढ़ें खबर
अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ कभी प्रदेश में समानांतर सरकार चलाता था

शिमला, राज्य ब्यूरो। Himachal Employee Politics, अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ कभी प्रदेश में समानांतर सरकार चलाता था, लेकिन पिछले दो दशक में संगठन के रुतबे में बड़ी गिरावट आई है। यह संगठन वर्ष 1966 में अस्तित्व में आया था। मौजूदा सरकार के कार्यकाल में संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की एक भी बैठक नहीं हो पाई है। कर्मचारियों के सबसे बड़े संगठन अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ पर अंदरूनी सियासत भारी पड़ी। पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में भी महासंघ दो गुटों में बंटा रहा।

एक गुट एसएस जोगटा और दूसरा सुरिंद्र मनकोटिया का था। काफी समय पर आपस में ही लड़ते रहे। इन दोनों के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने सुलह करवाई और मनकोटिया को कर्मचारी कल्याण बोर्ड में नियुक्ति दी। बाद में उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर विधायक का चुनाव भी लडा। हालांकि वह विधायक नहीं बन पाए थे।

एसएस जोगटा को पूर्व सरकार ने मान्यता दी थी। उन्होंने तब जो भी मुद्दे सरकार के सामने रखे, नौकरशाही ने उन्हें खास अधिमान नहीं दिया। सेवानिवृत्ति के बाद जोगटा की कांग्रेस  के साथ दाल नहीं गल पाई। उन्होंने आम आदमी पार्टी का दामन थामा। इससे पूर्व धूमल सरकार में भी महासंघ के दो गुट थे। सुरेंद्र ठाकुर गुट को बाद में मान्यता मिल गई थी। उनकी राह में भरमौरिया गुट रोड़े बनता रहा।

सरकार को बनाने, बिगाडऩे का काम

कर्मचारी प्रदेश की सियासत में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये सरकार को बनाने और बिगाडऩे का काम करते हैं। शांता कुमार ने अपने मुख्यमंत्री काल में काम नहीं तो वेतन नहीं की नीति लागू की। कर्मचारियों ने इसे कभी पसंद नहीं किया। बेशक शांता की इस नीति को पूरे देश ने सराहा, लेकिन कर्मचारी वर्ग ने इसका विरोध किया।

प्रमुख मांगें प्रदेश में पंजाब की तर्ज पर छठे वेतन आयोग की सिफारिशें लागू करना, इसे लागू करने के लिए राज्य सरकार के खजाने पर करीब 20 हजार करोड़ का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। पुरानी पेंशन लागू करवाना, अभी न्यू पेंशन स्कीम लागू हो रही है, करीब एक लाख कर्मियों की मांग है कि प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाल की जाए। अनुबंध कार्यकाल तीन से दो वर्ष हो, अभी ये तीन वर्ष है, भाजपा ने विजन डोक्युमेंट में इसका वादा किया था। राज्य का अपना अलग वेतन आयोग गठित करना। अनुबंध कर्मियों की वरिष्ठता नियुक्त तारीख से तय हो न कि नियमित होने की तारीख से। कई श्रेणियों के भर्ती एवं पदोन्नति नियमों में संशोधन हो। अनुबंध से नियमित होने पर कर्मियों पर दो साल तक आर्थिक लाभ न देने की शर्त हटे।

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