देसी मधुमक्खियां व जड़ी-बूटियां होंगी संरक्षित
लुप्त हो रही देसी मधुमक्खियां अब संरक्षित होंगी। ये जड़ी-बूटियों के संरक्षण में मददगार बन किसानों की आय भी बढ़ाएंगी। जीबी पंत नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट कुल्लू ने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से प्रोजेक्ट आरंभ किया है।
मुकेश मेहरा, मंडी। लुप्त हो रही देसी मधुमक्खियां अब संरक्षित होंगी। ये जड़ी-बूटियों के संरक्षण में मददगार बन किसानों की आय भी बढ़ाएंगी। जीबी पंत नेशनल रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन एनवायरमेंट कुल्लू ने राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से प्रोजेक्ट आरंभ किया है। इसमें किसानों को देसी मधुमक्खियों के स्थानीय पौधों पर परागण के बारे में बताया जाएगा। ऐसी जड़ी-बूटियों या पौधों का पता लगाया जाएगा, जिन पर इनका परागण अधिक होता था। संस्थान ने बंजार उपमंडल की तुंग पंचायत में प्रोजेक्ट आरंभ किया है।
प्रोजेक्ट में देसी मधुमक्खियों को पालने के लिए 70 प्रतिशत पैसा सरकार देगी व 30 प्रतिशत किसान वहन करेंगे। ग्रामीणों की मदद से उन जड़ी-बूटियों का भी पता लगाया जाएगा, जिन पर मधुमक्खियां बैठती हैं। शहद के अलावा इनके छत्ते से क्रीम व अन्य आर्थिकी मजबूत करने वाले उत्पाद बनाए जाएंगे। इसका ट्रायल भी विज्ञानी कर चुके हैं। प्रोजेक्ट के तहत किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
हर मौसम में परागण प्रक्रिया करती है देसी मधुमक्खी
देसी मधुमक्खियां किसी भी मौसम और स्थान में परागण प्रक्रिया को पूरा कर लेती हैं। इनको पालने के बाद बार-बार स्थान बदलने की जरूरत नहीं पड़ती। यही सबसे बड़ा कारण है कि इनके व्यवसाय को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
स्वाद भी होगा बेहतर
देसी मधुमक्खियों से तैयार शहद का स्वाद बेहतर होगा। ये जिस पौधे पर बैठती हैं, उसके अनुसार ही शहद का स्वाद बनता है। इसी तरह जिस जड़ी-बूटी या पौधे पर बैठेंगी उसी का स्वाद मिलेगा। इनका शहद अन्य मधुमक्खियों के मुकाबले अधिक गुणकारी होगा।
इसलिए चुनी तुंग पंचायत
तुंग पंचायत में जीबी पंत संस्थान के प्रोजेक्ट पहले भी चले हैं। साथ ही ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के नजदीक होने के कारण वनीय क्षेत्र साथ है और जड़ी-बूटियां भी आसानी से मिल सकती हैं।
नाबार्ड के तहत संस्थान को देसी मधुमक्खियों के पालन का प्रोजेक्ट मिला है। इसके लिए किसानों को मधुमक्खी पालन समेत इसके शहद और छत्ते से किस तरह से अतिरिक्त आय होगी, वह सिखाया जा रहा है। तुंग पंचायत में यह प्रोजेक्ट आरंभ किया गया है।
-डा. सरला साशनी, विज्ञानी जीबी पंत संस्थान मौहल (कुल्लू)।
देसी मधुक्खियों के साथ जड़ी-बूटियों को भी संरक्षित करने पर संस्थान के विज्ञानिक काम कर रहे हैं। इससे देसी मधुमक्खी के संरक्षण के साथ किसान भी सुदृढ़ होंगे।
-डा. आरके सिंह, विज्ञानी एवं इंचार्ज जीपी पंत संस्थान मौहल, (कुल्लू)।