आइएचबीटी पालमपुर ने 80वें सीएसआइआर स्थापना दिवस पर जीते दो पुरस्कार
सीएसआइआर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद प्रौद्योगिकी पुरस्कार के तहत सीएसआईआर-आएएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिकों को नई दिल्ली में 26 सितंबर को आयोजित 80वें सीएसआइआर स्थापना दिवस समारोह के दौरान दो सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। समाज उत्थान के लिए उनके प्रयासों और प्रतिबद्धता की सराहना की।
पालमपुर, संवाद सहयोगी। सीएसआइआर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद प्रौद्योगिकी पुरस्कार के तहत सीएसआईआर-आएएचबीटी पालमपुर के वैज्ञानिकों को नई दिल्ली में 26 सितंबर को आयोजित 80वें सीएसआइआर स्थापना दिवस समारोह के दौरान दो सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया।
पहला मेरिट प्रमाण पत्र डा. प्रोबीर कुमार पाल, डा. सनत्सुजात सिंह, मोहित शर्मा, डा. अशोक यादव, डा. राकेश राणा और डा. राम कुमार शर्मा की टीम को स्टीविया, कृषि प्रौद्योगिकी और प्रसंस्करण में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया गया। जबकि दूसरा पुरस्कार अकेले डा. सुखजिंदर सिंह को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और संस्थागत पहुंच बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए दिया गया है।
इस अवसर को भारत के माननीय उपराष्ट्रपति एम बैंकेया नायडू एवं जितेंद्र सिंह उपाध्यक्ष सीएसआइआर राज्य मंत्री विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय कार्मिक लोक शिकायत और पेंशन तथा परमाणु ऊर्जा विभाग और अंतरिक्ष विभाग ने सुशोभित किया। इस कार्यक्रम में भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो के विजयराघवन तथा सीएसआईआर के महानिदेशक एवं वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान विभाग के सचिव डा. शेखर सी मांडे भी मौजूद रहे। डा. संजय कुमार निदेशक सीएसआइआर-आइएचबीटी ने भी पुरस्कृत वैज्ञानिकों को बधाई दी तथा किसानों और समाज उत्थान से संबंधित प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए उनके प्रयासों और प्रतिबद्धता की सराहना की।
उन्होंने कहा कि हमारी वैज्ञानिक पहल के परिणामस्वरूप हमारे शोध पत्र उच्च स्तरीय अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 3.43 के औसत तथा उच्चतम 11,38 इम्पैक्ट फैक्टर के साथ कुल 145 शोध पत्र भी प्रकाशित किए गए। इसके अतिरक्त 27 पुस्तक अध्याय प्रकाशित किए गए और कुल 51 पेटेंट आवेदित किए गए। वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर प्रौद्योगिकी का नवाचार भी हुआ। इसके कारण संस्थान उद्यमिता विकास के द्वारा विभिन्न स्टेकहोल्डरों के साथ सबन्धों को और भी प्रगाढ़ किया है।
उन्होंने आगे बताया कि संस्थान द्वारा हींग, केसर की कृषि प्रौ्द्योगिकी उपलब्ध कराई गई है। उन्होंने बताया कि संस्थान के वैज्ञानिकों ने हींग और केसर की खेती की कृषि तकनीक विकसित करके आत्मनिर्भता की ओर कदम बढ़ाए हैं। सगंध फसलें विशेषकर जंगली गेंदे को उगाने एवं प्रसंस्करण के लिए अलग-अलग राज्यों में आसवन इकाइयां स्थापित की गईं। प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से किसानों, बेरोजगार युवाओं, उद्यमियों में क्षमता निर्माण एक महत्वपूर्ण पहलू रहा।