अगर हिमाचल के राज्यपाल अपना अभिभाषण पूरा पढ़ कर नहीं गए तो उनके साथ क्या यह व्यवहार उचित था?
यह समझना बेहद जरूरी है कि प्रदेश का मुद्दा शिक्षा की गुणवत्ता स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बढ़ाना और अन्य विषय हैं। बीते शुक्रवार को हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शिमला परिसर में राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय की गाड़ी रोकने का प्रयास करते कांग्रेस के विधायक। फाइल
कांगड़ा, नवनीत शर्मा। हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने बीते दिनों कुछ संदेश देश को भेजे हैं। एक अच्छा संदेश हरियाणा के विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता और टीम लेकर गई है कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने स्वयं को कागजमुक्त कैसे किया, यानी ई-विधान का गंतव्य पूछा है। उससे पहले राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय के साथ हुई बदसलूकी ने भी काफी कुछ कहा है। एक संदेश आंध्र प्रदेश तक राज्यपाल के स्वजन लेकर गए कि हिमाचल विधानसभा के प्रांगण में राज्यपाल के साथ क्या हो सकता है। जाहिर है, वे लोग अपने यहां बदसलूकी की ही बात सुनाएंगे।
पड़ोस का हाल यह है कि पंजाब विधानसभा में राज्यपाल के अभिभाषण की प्रतियां फाड़ी गईं, राज्यपाल का कालीन खींच लिया गया। हिमाचल प्रदेश विधानसभा में प्रतियां फाड़ कर फेंकी गईं और राज्यपाल का रास्ता भी रोका गया। देशभर में जो कुख्याति इस प्रकरण के बहाने इस घटनाक्रम के किरदारों ने कमाई है, वह रहस्य नहीं है।
विपक्ष का कहना है कि राज्यपाल ने पूरा अभिभाषण क्यों नहीं पढ़ा। वह अपने अभिभाषण को पूरा पढ़ा हुआ समझा जाए कह कर क्यों निकलने लगे? राज्यपाल अभिभाषण पूरा पढ़ें या पूरा पढ़ा हुआ समझने को कह दें, यह उनका अधिकार है। देश की संसद में कई वर्ष पहले इस पर बहस हो चुकी है। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के सहयोगी, केंद्र के पूर्व कैबिनेट सचिव, हरियाणा के पहले राज्यपाल और बाद में बंगाल के राज्यपाल रहे धर्मवीर ने बंगाल विधानसभा में 1969 में अभिभाषण के दो पैराग्राफ नहीं पढ़े थे, क्योंकि सरकार यूनाइटेड फ्रंट यानी वाम दलों की थी। उसके बाद भी ऐसे कई उदाहरण होंगे जहां राज्यपाल ने घोषणा की कि बाकी भाग पढ़ा हुआ समझा जाए।
ऐसा असंवैधानिक कुछ नहीं हुआ था, लेकिन इसे गुनाह समझते हुए जो विधानसभा के बाहर हुआ, वह अवश्य असंसदीय, अशालीन और अमर्यादित था। जो माननीय पाठशालाओं अथवा अन्य सामाजिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बन कर जाते हैं, उनके शब्द क्या विधानसभा में हुए घटनाक्रम के वीडियो से मेल खाते हैं? पक्ष कोई भी हो, अगर राज्यपाल के एडीसी का गला पकड़ा जाता है, अगर राज्यपाल को गाड़ी से बाहर निकालने के प्रयास होते हैं, तो संविधान के सम्मान का दृश्य नहीं हुआ! अगर राज्यपाल अभिभाषण पूरा पढ़ कर नहीं गए तो उनके साथ यह व्यवहार होना था?
हालांकि कांग्रेस के कुछ बड़े नेता इसे क्षणिक उत्तेजना बताते हैं। पांच निलंबित विधायक बाहर हैं, सदन काम कर रहा है। संवाद से विवाद सुलझाने का कोई रास्ता नहीं है। राज्यपाल का कितना सम्मान किया जाता है, यह एक विधायक जगत सिंह नेगी के बयान में देखिए जिसमें वह कहते हैं कि संवाद के लिए राज्यपाल भी पहल कर सकते हैं। हिमाचल प्रदेश में सत्तापक्ष तो राज्यपाल से क्षमा याचना कर लौट आया है, लेकिन कांग्रेस तैयार नहीं है। कांग्रेस को जो हानि उठानी पड़ी है उसके पीछे जोश की अधिकता और होश की कमी अवश्य है। कांग्रेस के भीतर खास पदों के लिए जो कशमकश चली है, उसका निर्णय जून तक होने की कोई संभावना नहीं है। क्योंकि पहले कांग्रेस को जी-23 की चुनौती से जूझना है। वीरभद्र सिंह संभवत: सदन में जाएं तो पार्टी को मार्गदर्शन मिले। इस बीच कांग्रेस में सुधीर शर्मा और जीएस बाली का एक होना, मंडी में सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा और ठाकुर कौल सिंह की बेटी चंपा ठाकुर का एक साथ आना नए समीकरण हैं।
इस सारे प्रकरण में यह देखने योग्य है कि हिमाचल के माननीयों को इसी नूराकुश्ती में बने रहना है या संवाद का कोई रास्ता निकालना है? क्योंकि काम नहीं वेतन नहीं इन पर लागू नहीं होता, अपना आयकर तक चुकाना इनके लिए कठिन है और विधानसभा जल्द ही बजट की प्रस्तुति देखने जा रही है। यह गतिरोध समाप्त हो तो जनता के मुद्दे पटल पर गूंजें। राज्यपाल संवैधानिक प्रमुख हैं, उनसे मिलकर बात रखी जाए तो सबका सम्मान बना रहेगा। अभिभाषण न पढ़ने जैसी सतही बात अगर विपक्ष की राजनीति का मुद्दा है तो समझा जा सकता है कि विषयों की कमी किस हद तक है। जिस विपक्ष को सत्ता पक्ष से भिड़ना चाहिए, वह राज्यपाल से भिड़ रहा है। यह समझना बेहद जरूरी है कि प्रदेश का मुद्दा शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर बढ़ाना और अन्य विषय हैं।
[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]