हिमाचल के आलू को गंभीर रोग, विभाग ने बताए बचाव के ये तरीके

हिमाचल में कई स्थानों पर आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है। यह रोग बहुत तेजी से फैलता है और इससे आलू की फसल प्रभावित हो सकती है। अनुसंधान संस्थान ने फसल को बचाने के लिए दवाओं के छिड़काव की सलाह दी है।

By Vijay BhushanEdited By: Publish:Thu, 22 Jul 2021 08:24 PM (IST) Updated:Thu, 22 Jul 2021 08:24 PM (IST)
हिमाचल के आलू को गंभीर रोग, विभाग ने बताए बचाव के ये तरीके
हिमाचल में आलू की फसल को रोग लगा है। जागरण आर्काइव

शिमला, राज्य ब्यूरो। हिमाचल में कई स्थानों पर आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग का प्रकोप देखने को मिल रहा है। यह रोग बहुत तेजी से फैलता है और इससे आलू की फसल प्रभावित हो सकती है। केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान ने पछेती झुलसा रोग से आलू की फसल को बचाने के लिए दवाओं के छिड़काव की सलाह दी है।

जिन स्थानों पर पछेती झुलसा रोग अभी नहीं आया है, वहां भी किसानों को इस रोग को पनपने से रोकने के लिए छिड़काव करने को कहा गया है। यह रोग फाइटोपथोरा नामक कवक के कारण होता है। इसमें पौधों की पत्तियां सिरे से झूलसने लगती हैं। प्रभावित पत्तियों पर भूरे व काले रंग के धब्बे उभरने लगते हैं। पत्तियों की निचली सतह पर फफूंद नजर आने लगती है। इस रोग के होने के कारण उत्पादन कम होता है और कंदों का आकार छोटा रह जाता है। कंदों पर भी काले रंग के धब्बे बन जाते हैं।

फसल को ऐसे बचाएं रोग से

आलू की फसल में यदि अभी तक फफूंदनाशक दवा का छिड़काव नहीं किया है और जिनकी आलू की फसल में पछेती झुलसा रोग नहीं दिखा है वे मेंकोजेब या कलोरोथेलोनील दवा दो से 2.5 किलोग्राम को प्रति एक हजार लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। जिन खेतों में बीमारी प्रकट हो चुकी है, वहां साइमोक्सेनिल़़ व मेंकोजेब या फिनेमिडोऩ़मेंकोजेब या डाइमेथोमाफऱ़्मेंकोजेब दवा का तीन किलोग्राम प्रति हेक्टेयर एक हजार लीटर पानी की दर से छिड़काव करें।

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पछेती झुलसा रोग में फफूंदनाशक का छिड़काव 10 दिन के अंतराल पर दोहराया जा सकता है। बीमारी के कम या ज्यादा होने पर छिड़काव की अवधि को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। खेत में जल निकासी का उचित प्रबंध रखकर खेत को खरपतवार मुक्त रखें।

-नरेंद्र कुमार पांडे, प्रधान विज्ञानी एवं अध्यक्ष, सामाजिक विज्ञान संभाग, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान, शिमला

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