हिमाचल में सियासत की मंडी के मोड़, प्रतिभा के नाम के बाद सुखराम का फिर जागा परिवार मोह

Himachal Politics कांग्रेस जानती है कि वीरभद्र सिंह के परिवार से किसी को टिकट देकर सहानुभूति का लाभ मिलेगा। मंडी से वीरभद्र सिंह ही नहीं प्रतिभा सिंह भी लोकसभा सदस्य रही हैं। लेकिन पंडित सुखराम भावुक और आग्रही हैं अपने पोते आश्रय शर्मा के लिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 11:46 AM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 11:46 AM (IST)
हिमाचल में सियासत की मंडी के मोड़, प्रतिभा के नाम के बाद सुखराम का फिर जागा परिवार मोह
प्रतिभा सिंह: लोकसभा टिकट की आस, सुखराम: पोते को टिकट के लिए प्रयास। फाइल

कांगड़ा, नवनीत शर्मा। कुलदीप सिंह राठौर कौन होते हैं कांग्रेस का टिकट बांटने वाले.. ये शब्द कभी प्रदेश में संचार क्रांति के मसीहा माने जाते पंडित सुखराम ने हाल में कहे, जब यह सूचना उड़ने लगी थी कि मंडी संसदीय सीट पर उपचुनाव करवाना ही चाहिए। यह और इससे संबद्ध विषयों पर चर्चा के लिए आलाकमान ने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को दिल्ली बुलाया था। भारतीय जनता पार्टी के काम इस सीट पर कोई मंत्री आता है या कोई नया चेहरा, यह देखना बाकी है, लेकिन पंडित सुखराम के बयान से उस कांग्रेस के चुनावी माहौल का पता अवश्य चल रहा है जिसकी अपने भीतरी लोकतंत्र के प्रति अगाध श्रद्धा है।

अब भी न कोई तारीख तय है और न किसी कार्यक्रम की घोषणा हुई है, लेकिन मंडी लोकसभा क्षेत्र के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी दोनों में हलचल शुरू हो गई है। दरअसल नाम सुखराम होने से तमाम सुखों की प्राप्ति होती रहे, यह कहां आवश्यक है। सुखराम के अपनी ही पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष के प्रति इतने आदरसूचक शब्दों की पृष्ठभूमि में दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह का नाम चलना है। कुलदीप सिंह राठौर ने कुछ मंचों पर कहा था कि प्रतिभा कांग्रेस प्रत्याशी हो सकती हैं। कांग्रेस जानती है कि वीरभद्र सिंह के परिवार से किसी को टिकट देकर सहानुभूति का लाभ मिलेगा। मंडी से वीरभद्र सिंह ही नहीं, प्रतिभा सिंह भी लोकसभा सदस्य रही हैं। लेकिन पंडित सुखराम भावुक और आग्रही हैं अपने पोते आश्रय शर्मा के लिए।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में यह आग्रह इतना प्रबल हुआ कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से टिकट मांगा जो नहीं मिला। फिर सुखराम और आश्रय शर्मा कांग्रेस में चले गए। सुखराम का दुख यह था कि उनके परिवार को मान सम्मान नहीं मिलता। भूत यानी सुखराम और भविष्य यानी सुखराम के पोते आश्रय के आग्रहों के पाटों में वर्तमान यानी जयराम मंत्रिमंडल के सदस्य रहे अनिल शर्मा ऐसे पिसे कि वह धर्मसंकट में फंस गए। धर्मसंकट यह कि भारतीय जनता पार्टी विधायक और मंत्री होने के नाते भाजपा प्रत्याशी का प्रचार करें या पिता की बात मानते हुए पुत्र का प्रचार करें। तब से अब तक मंडी में अनिल शर्मा के रूप में भाजपा विधायक तो हैं, लेकिन नहीं भी हैं क्योंकि जब मुख्यमंत्री के मंच पर अनिल गए हैं, उनका अतीत पीछा करता रहा है।

उन दिनों सुखराम ने वीरभद्र सिंह से बगलगीर होते हुए पिछली गलतियों के लिए माफी मांगी थी और मिलजुल कर कांग्रेस को आगे बढ़ाने की बात कही थी। अब सुखराम के लिए कांग्रेस का अर्थ आश्रय शर्मा है तो वह गलत कहां हैं? इधर, कोई तो वजह है ही कि जब सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा पंजाब में चरणजीत चन्नी का चांद चढ़ाने के बाद शिमला पहुंचे, तो प्रतिभा सिंह और उनके पुत्र विक्रमादित्य सिंह दिल्ली में कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के साथ भेंट कर रहे हैं। इधर आश्रय भी जानते हैं कि जनता का प्रश्रय आवश्यक है सो वह कार्यकर्ताओं के साथ मिल रहे हैं।

इधर, भारतीय जनता पार्टी भी सक्रिय है। मुख्यमंत्री उन विधानसभा क्षेत्रों का दौरा पहले ही कर चुके हैं जहां उपचुनाव होने हैं। दिल्ली से आते ही उन्होंने चारों लोकसभा क्षेत्रों में सबसे बड़े मंडी संसदीय हलके के नाचन का दौरा किया और बार-बार कहा कि वह कई बार दिल्ली जाएंगे और वापस आएंगे, क्योंकि यह प्रदेश के विकास का मामला है। एक सर्वेक्षण की भी चर्चा है जो सर्वेक्षण कम आईना अधिक है। हालांकि यह बात भी सही है कि नामों को लेकर भाजपा चौंकाती है, लेकिन अब तक किसी न किसी मंत्री को ही उपचुनाव के मोर्चे पर भेजने की बातें आ रही हैं। यह शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर भी हो सकते हैं और जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह भी।

तेज मंत्री, सहज मंत्री : जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह चुभने वाली बात के लिए जाने जाते हैं। बीते दिनों जनमंच में उन्होंने एक फरियादी के साथ तू-तड़ाक की भाषा में बात की, वीडियो बन गया। वायरल भी हुआ। धारणा बनी। उससे पहले उन्होंने कहा था कि कोरोना काल में सबसे अधिक मजे मास्टरों ने किए। बाद में कहा कि बात का गलत मतलब लिया गया और वह सबका सम्मान करते हैं। एक और मंत्री हैं जिनका हाथ जन जन की नब्ज पर रहता है। हिंदी बहुत अच्छी बोलते हैं। सुशिक्षित हैं और विनम्र भी।

बीते दिनों किसी ने उन्हें कोई जरूरी संदेश वाट्सएप के माध्यम से भेजा। दो दिन तक एक काला टिक दिखाई देता रहा। अंतत: फोन किया कि आपको एक संदेश भेजा है, किसी की करुण पुकार है, जायज लगे तो कर दें। मंत्री जी बेहद शालीन लहजे में बोले, जी बिलकुल.. मिल गया होगा, अमुक नंबर पर ही भेजा है न? अनुरोधकर्ता ने कहा, जी हां, नहीं देखा हो तो देख लीजिए। मंत्री जी ने.. अपना ख्याल रखें.. आऊंगा तो अवश्य मिलूंगा.. जैसे मीठे शब्द कहे और इस प्रकार संवाद संपन्न हुआ। लेकिन.. एक माह बीतने को आया.. दूसरे काले टिक की प्रतीक्षा में पहला काला टिक वहीं जमा हुआ है। जाहिर है कि उनके नीले होने की संभावना नहीं बची है।

[राज्य संपादक, हिमाचल प्रदेश]

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