हिमाचल के कर्मचारी बोले, पंजाब का वेतनमान कर्मचारियों के साथ धोखा, सरकार के खिलाफ एकजुट होंगे कर्मी

Himachal Employees Union प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष एनआर ठाकुर ने पंजाब के छठे वेतनमान की रिपोर्ट को हिमाचल और पंजाब के कर्मचारियों के साथ बड़ा धोखा करार दिया है। उन्होंने कहा पांच वर्ष के लंबे इंतजार के बाद जो रिपोर्ट आई है वह छल से भरी पड़ी है।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Sun, 20 Jun 2021 02:29 PM (IST) Updated:Sun, 20 Jun 2021 02:29 PM (IST)
हिमाचल के कर्मचारी बोले, पंजाब का वेतनमान कर्मचारियों के साथ धोखा, सरकार के खिलाफ एकजुट होंगे कर्मी
कर्मचारी महासंघ ने पंजाब के छठे वेतनमान की रिपोर्ट को कर्मचारियों के साथ बड़ा धोखा करार दिया है।

मंडी, जागरण संवाददाता। Himachal Employees Union, प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष एनआर ठाकुर ने पंजाब के छठे वेतनमान की रिपोर्ट को हिमाचल और पंजाब के कर्मचारियों के साथ बड़ा धोखा करार दिया है। उन्होंने कहा पांच वर्ष के लंबे इंतजार के बाद जो रिपोर्ट आई है वह छल से भरी पड़ी है। वेतनमानों को लेकर सारा आकर्षण काफुर हो गया। यह रिपोर्ट खोदा पहाड़ निकली चुहिया जैसी साबित हुई। रिपोर्ट में 2011 को दिए ग्रेड पे चालाकी के साथ मर्ज कर दिए गए हैं। एरियर का भुगतान नौ किस्तों में साढ़े चार सालों में होगा, जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है।

सभी भत्ते 2021 के बाद दिए जाएंगे। बहुत से भत्तों को खत्म कर दिया गया। यह वेतनमान केंद्र के वेतनमानों से फिसड्डी साबित हुआ है। एक कर्मचारी पहले 10 साल वेतन निर्धारण का इंतजार करे। फिर अगले 10 साल उसे लागू करवाने के लिए संघर्ष करे।उसके बाद जब सरकार वेतनमान देती है तो वह भी टुकड़ों में। एनआर ठाकुर ने हिमाचल और पंजाब के कर्मचारियों से अपील करते हुए कहा कि उन्हें सरकारों की दमनकारी नीतियों का डट कर मुकाबला करने के लिए एक होना होगा, क्योंकि सरकारें हमेशा कामगारों का शोषण करती आई है। जब नेताओं को अपने वेतन भत्ते, पेंशन एवं अन्य लाभ लेने हों तो सभी पार्टियां एकजुट होकर उन्हें अविलंब लागू करवाती हैं। लेकिन अपने कर्मचारियों और मजदूरों को संविधान में दिए गए हकों से भी वंचित रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।

एनआर ठाकुर ने हिमाचल सरकार से भी अविलंब वेतनमानों को लागू करने बारे कहा है। उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार भी पिछले चार वर्षों से कर्मचारियों की कोई सुध नहीं ले रही है। जेसीसी का न होना सरकार की असफलता को दर्शाता है। समस्याओं का अंबार लगा है। लेकिन सरकार के कानों में कोई जूं नहीं रेंगती। जब चुनाव आते है तो कर्मचारियों की याद आती है, चुनाव निकलते ही सारे मुद्दे ठंडे बस्ते में चले जाते हैं।

ऐसी सरकार की बेरुखी और उदासीनता कर्मचारी कब तक झेलेंगे। सालों से सरकारी खजाने में पड़ी कर्मचारियों की बकाया राशि जब काफी समय के बाद दिलवाई जाती है तो सरकार इसका पूरा क्रेडिट लेने की कोशिश करती है। आम जनमानस में भ्रम फैलाया जाता है कि वित्तीय हालात ठीक न होने के बावजूद सरकार को अपने कर्मचारियों के लिए वित्तीय लाभ देने पड़ रहे हैं और सरकारी खजाने को करोड़ों की चपत लग रही है। लेकिन यह चपत नेताओं और अधिकारियों की अपनी सुविधाएं बढ़ाने में क्यों नहीं लगती।

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