तंग हाथ के खुले सामाजिक सरोकार, जानिए क्‍या कहता है महामारी के शिकंजे में जकड़ी रही आर्थिकी से निकला बजट

Himachal Govt Budget मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट भाषण के समापन में जिस शेर का प्रयोग किया गया वहीं से बजट की मंशा का रास्ता खुलता है। शेर है हयात ले के चलो कायनात ले के चलो/चलो तो सारे जमाने को साथ ले के चलो।

By Rajesh Kumar SharmaEdited By: Publish:Sun, 07 Mar 2021 08:39 AM (IST) Updated:Sun, 07 Mar 2021 08:39 AM (IST)
तंग हाथ के खुले सामाजिक सरोकार, जानिए क्‍या कहता है महामारी के शिकंजे में जकड़ी रही आर्थिकी से निकला बजट
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बजट में हर वर्ग का ध्‍यान रखने का प्रयास किया है।

धर्मशाला, नवनीत शर्मा। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के बजट भाषण के समापन में जिस शे'र का प्रयोग किया गया, वहीं से बजट की मंशा का रास्ता खुलता है। शे'र है : हयात ले के चलो, कायनात ले के चलो/चलो तो सारे जमाने को साथ ले के चलो। हयात यानी जीवन और कायनात यानी संसार। बजट का प्रयास यही है कि सबको कुछ न कुछ देते चलो। बेशक संसाधन नहीं हैं लेकिन सबका ध्यान रखा जाना अनिवार्य है। यही कारण है कि तिल बेशक कम हों, जितने लोगों में बंट सकें, उतना ही बेहतर। यह लगभग एक साल तक महामारी के शिकंजे में जकड़ी रही हिमाचल प्रदेश की आर्थिकी से निकला बजट है।

अगले साल चुनाव का बिगुल बजेगा इसलिए सबको साथ रखना ही बजट का राजनीतिक प्रबंधन है। इसीलिए इस बजट की खूबी है, बजट का सामाजिक चेहरा। सामाजिक सुरक्षा, नारी सशक्तीकरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार सृजन, औद्योगिक विकास, जल संरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे सरोकारों को संबोधित यह बजट जयराम सरकार का चौथा बजट है। तमाम सीमाओं के बावजूद जब बजट छठी से दसवीं तक के विद्यार्थियों की आंखों की चिंता करे और निशुल्क जांच एवं चश्मों के लिए धन का प्रविधान करे या गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की बेटियों के लिए छात्रवृत्ति या 'शगुन' का प्रबंध करे कल्याणकारी राज्य की अवधारणा साकार होती है।

हिमाचल प्रदेश जैसी मूलत: मनीआर्डर अर्थव्यवस्था अब बेशक उससे आगे बढ़ चुकी है लेकिन अब भी पर्याप्त संसाधनों का न होना कचोटता है। बीते वर्ष के बजट में कहा गया था कि प्रभावी कर प्रबंधन, भारत सरकार के सहयोग एवं अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसी एवं युक्तीकरण से संसाधनों की व्यवस्था कर ली जाएगी। उससे पिछले बजट में यानी 2019-20 के बजट में भी संसाधनों के संबंध में विशुद्ध वित्तीय प्रबंधन पर जोर था। इस बार भी दारोमदार केंद्र सरकार और बेहतर वित्तीय प्रबंधन पर है। करमुक्त बजट है।

अब उम्मीद इन्वेस्टर्स मीट के फलों के पकने की है ताकि हिमाचल कुछ बड़ा सोच सके। वरना 100 रुपये में से विकास के हिस्से 43 रुपये ही आते रहेंगे। बीते वर्ष यह 41 रुपये, उससे पिछले वर्ष 39.56 जबकि 2013-14 में 35.96 रुपये थे। कर्ज और ब्याज के रूप में 16.64 पैसे जा रहे हैं। इससे पिछले लगातार दो बजट भाषणों में ब्याज और कर्ज के लिए 17 रुपये थे जबकि 2014 में यह 16 रुपये से अधिक थे। वेतन और पेंशन पर इस बजट में 39.42 रुपये हैं। आने वाले हर 100 रुपये में 64 रुपये अनुदान और कर्ज के हैं। अब यह प्रयास करना ही होगा कि कर्ज की जगह संसाधन चमकें।

chat bot
आपका साथी