शीत मरुस्थल में मालामाल होंगे किसान

संवाद सहयोगी पालमपुर हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर ने प्रदेश में पहली बार हींग

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Oct 2020 07:40 PM (IST) Updated:Sun, 18 Oct 2020 07:40 PM (IST)
शीत मरुस्थल में मालामाल होंगे किसान
शीत मरुस्थल में मालामाल होंगे किसान

संवाद सहयोगी, पालमपुर : हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर ने प्रदेश में पहली बार हींग की खेती की शुरुआत करने का बीड़ा उठाया है। इसकी शुरुआत संस्थान के निदेशक डा. संजय कुमार ने प्रदेश के शीत मरुस्थल जिला लाहुल स्पीति से की है।

उन्होंने बताया कि विश्व में हींग की खपत भारत में सबसे अधिक है लेकिन देश में इसका उत्पादन नहीं होता है। भारत हींग के लिए पूरी तरह से दूसरे देशों पर आश्रित है। वर्तमान में 600 करोड़ रुपये के लगभग 1200 मीट्रिक टन कच्ची हींग अफगानिस्तान, ईरान व उज्बेकिस्तान से आयात की जाती है। राष्ट्रीय पादप आनुवंशिकी संसाधन ब्यूरो ने इस बात की पुष्टि की है कि पिछले तीस वर्ष में हींग के बीज का आयात देश में नहीं हुआ है। यह पहला प्रयास है जब हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर ने हींग के बीज का आयात किया है। अब संस्थान ने कृषि विभाग व हिमाचल प्रदेश सरकार के साथ मिलकर हींग की खेती को बढ़ावा देने के लिए हाथ मिलाया है। किसानों की आय बढ़ाने के लिए हींग की खेती मील का पत्थर साबित हो सकती है। संस्थान के विज्ञानी डा. अशोक कुमार तथा डाक्टर रमेश ने लाहुल स्पीति के मडग्रां, बीलिग, केलंग तथा क्वारिंग क्षेत्रों में किसानों को कृषि विभाग के अधिकारियों की उपस्थिति में हींग की खेती करने का प्रशिक्षण दिया है। साथ ही वहां हींग का पौधा भी रोपा है। डा. अशोक कुमार ने बताया कि हींग एक बहुवर्षीय पौधा है तथा पांच वर्ष के उपरांत इसकी जड़ों से ओलिओ गम रेजिन निकलता है, जिसे शुद्ध हींग कहते हैं। इसकी खेती के लिए यहां की जलवायु उपयुक्त है। हींग की खेती खेती के लिए ठंड के साथ पर्याप्त धूप का होना आवश्यक है। डा. रमेश ने हींग की कृषि तकनीक के बारे में भी किसानों को जानकारी दी है।

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