शहादत के 20 साल बाद भी नहीं पूरा किया वादा तो मां कीर्ति चक्र लौटाने पहुंची राजभवन, पढ़ें पूरा मामला

Himachal Martyr बेटा करीब 20 साल पहले वतन पर कुर्बान हो गया। राष्ट्रपति ने 2004 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। उस समय सरकार ने जयसिंहपुर के चंबी उच्च विद्यालय हालर का नाम शहीद अनिल कुमार चौहान के नाम पर रखने व शहीद स्मारक बनाने का एलान किया था।

By Rajesh SharmaEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 10:23 AM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 10:23 AM (IST)
शहादत के 20 साल बाद भी नहीं पूरा किया वादा तो मां कीर्ति चक्र लौटाने पहुंची राजभवन, पढ़ें पूरा मामला
राजभवन के बाहर मुख्‍यमंत्री से मिलते शहीद अनिल के परिवार के सदस्‍य। जागरण

शिमला, जेएनएन। बोडो आतंकियों से मुठभेड़ में बेटा करीब 20 साल पहले वतन पर कुर्बान हो गया। राष्ट्रपति ने 2004 में कीर्ति चक्र से सम्मानित किया। उस समय सरकार ने कांगड़ा जिला के जयसिंहपुर के चंबी गांव के उच्च विद्यालय हालर का नाम शहीद अनिल कुमार चौहान के नाम पर रखने व शहीद स्मारक बनाने का एलान किया था। कई सरकारें सत्ता में आई, मगर किसी ने बलिदानी की मां राजकुमारी के साथ किए वादे को पूरा नहीं किया। अब धैर्य जवाब दे गया तो बूढ़ी मां हाथों में बेटे की तस्वीर थामकर कीर्ति चक्र लौटाने राजभवन शिमला पहुंच गई।

इसी दौरान राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय से मुलाकात कर लौट रहे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को राजभवन के मुख्य द्वार पर बलिदानी अनिल कुमार चौहान की मां राजकुमारी ने अपनी व्यथा सुनाई। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह स्वयं इस मामले को देखेंगे और उनके साथ किए वादे को पूरा किया जाएगा।

राजकुमारी ने मुख्यमंत्री को बताया कि अनिल कुमार चौहान ने 15 सितंबर 2002 को असम में बोडो लैंड आतंकवाद को खत्म करने के लिए ऑपरेशन रायनो में लड़ते हुए शहादत पाई थी। 13 ग्रेनेडियर में तैनात अनिल कुमार उस समय 23 साल के थे। उस समय मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने घर आकर स्कूल का नाम शहीद के नाम से रखने व शहीद स्मारक बनाने की घोषणा की थी।

बलिदानी अनिल कुमार चौहान के भाई संदीप कुमार चौहान का कहना है कि वे इंतजार करते-करते थक चुके हैं। अब तय किया कि वीरता के सर्वाेच्च पुरस्कार कीर्ति चक्र को ही क्यों न लौटा दें। लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भरोसा दिलाया है कि शहीद की वीरता का सम्मान होगा। राज्यपाल के सचिव राकेश कंवर का कहना था कि शहीद की मां तीन लोगों के साथ आई थीं। उन्हें परिस्थितियों से अवगत करवाया। उसके बाद वे मुख्यमंत्री से मिलने सचिवालय चले गए।

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