Eid al-Adha 2021:बिलासपुर में एक हजार से अधिक बकरों के आर्डर, 15 से 35 हजार की कीमत तक बिके बकरे
कुर्बानी का पर्व मुस्लिम समुदाय का ईद उल जुहा आज यानी बुधवार को देशभर के साथ साथ जिला में भी मनाया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस पर्व को लेकर खासा उत्साह नजर आ रहा है।
बिलासपुर, जागरण संवाददाता। कुर्बानी का पर्व मुस्लिम समुदाय का ईद उल जुहा आज यानी बुधवार को देशभर के साथ साथ जिला में भी मनाया जा रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस पर्व को लेकर खासा उत्साह नजर आ रहा है। मुस्लिम समुदाय के लोग बकरों की खरीद फरोख्त करते नजर आए और बकरों के व्यापारी अपने अपने बकरों को लेकर इधर से उधर चक्कर लगाते नजर आए।
मुस्लिम समुदाय के इस पर्व से बकरों के व्यापारियों में खासा उत्साह नजर आया और जिला भर में करीब एक हजार से अधिक बकरों को व्यापारियाें ने मुस्लिम समुदाय को बेचा। व्यापारियों ने बताया कि उन्हें कम से कम 700 रुपये प्रति किलो के हिसाब से एक बकरे का 15 से 35 हजार रुपये तक आमदनी प्राप्त हुई है।
सात बजे नमाज के बाद होगी कुर्बानी
ईद उल जुहा के इस पर्व पर मुस्लिम समुदाय के लोग सबसे पहले सुबह सात बजे सूरज निकलने के बाद अपनी नजदीकी मस्जिदों में नमाज अता करने पहुंचते हैं। उसके बाद वह कुर्बानी की रस्म को पूरा करते हैं। कुर्बानी केवल जिला में मालदार लोग ही करते हैं, जिनके उपर किसी तरह का कोई कर्ज न हो। ऐसे लोग जो मालदार हैं उनके लिए कुछ फर्ज भी तय किए हैं जिसके तहत उन्हें मीट के तीन हिस्से गरीब गुरबा में बांटने होते हैं। यह तीन हिस्से वह अपने रिश्तेदारों में मीट के तोहफे के रूप में देते हैं। उन्हें केवल कुल मीटर का चौथा हिस्सा ही अपने घर पर रखने का रिवाज रखा गया है। एेसा नहीं करने पर कुर्बानी को कबूल नहीं किया जाता। मुस्लिम समुदाय के हुसैन अली ने बताया कि बकरों की कुर्बानी के दौरान निकाली गई खाल को मदरसों में प्रदान कर दिया जाता है। इस खाल को व्यापारी मदरसों से खरीदकर ले जाते हैं और उसकी कीमत से मदरसे का विकास करवाया जाता है।
15 से 35 हजार का मिल रहा है बकरा
ईद उल जुहा को बकरीद भी कहा जाता है। इस दिन बकरों की कुर्बानी का दिन होता है। ऐसे बकरे जो सेहतमंद, रोबदार और हष्ट पुष्ट होते हैं। उनकी व्यापारियों को अच्छी कीमत मिलती है। ऐसे बकरों की कुर्बानी को ही मुस्लिम समुदाय के लोग ठीक मानते हैं। कोई बकरा अगर कान कटा, अंधा, लंगड़ा होगा तो उस कुर्बानी को ठीक नहीं माना जाता है। समुदाय का मानना है कि यह कुर्बानी हम इब्राहिम अली इस्लाम पैगंबर की सुन्नत में देते हैं। खुदा का पैगाम लाने वाले पैगंबर इब्राहिम अली इस्लाम से जब सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी मांगी गई थी तो उन्होंने अपने बच्चे की कुर्बानी दे दी थी, लेकिन जैसे ही पैगंबर ने छुरी गर्दन पर चलाई तो बच्चा किनारे और एक भेड़ छुरी के नीचे आ गई और वह कुर्बानी कबूल हो गई थी। उस दिन के बाद से इस सुन्नत को शुरू कर दिया गया।
एक हजार से अधिक बकरों की होगी कुर्बानी
ओल्ड टाउन बिलासपुर की जामा मस्जिद के सलाहकार हुसैन अली ने बताया कि नमाज सात बजे अदा करवाई जाएगी। शहर में करीब 300 के करीब बकरों के आर्डर थे और जिलाभर में लगभग एक हजार से अधिक बकरों के आर्डर गए थे। समुदाय के लोग अपने सामर्थय के हिसाब से बकरे काटते हैं। वहीं गरीब परिवार जो कर्ज में उन्हें बकरे काटने जरूरी नहीं है।