कुल्लू में पूर्णिमा के दिन जलाया रावण, दशहरा का हुआ समापन
अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का वीरवार को लंका दहन के साथ समापन हो गया है। बलि बंद होने के बाद अब नारियल की बलि के साथ दशहरे के समापन किया गया। कुल्लू दशहरा उत्सव के समापन पर भगवान रगुनाथ जो पिले वस्र का धारण कर शोभा यात्रा निकाली गई।
कुल्लू ,संवाद सहयोगी। अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव का वीरवार को लंका दहन के साथ समापन हो गया है। बलि बंद होने के बाद अब नारियल की बलि के साथ दशहरे के समापन किया गया। कुल्लू दशहरा उत्सव के समापन पर भगवान रगुनाथ जो पिले वस्र का धारण कर शोभा यात्रा निकाली गई। इसके बाद लंका बेकर में रावण के बनाए हुए मुखोटे को भगवान रघुनाथ के तीर से भेदन कर रावण का अंत किया गया है। इसी के साथ बुराई पर अच्छाई का प्रतीक दशहरा उत्सव विधि पूर्वक संपन्न हुआ।
15 अक्टूबर से चले सात दिवसीय दशहरा उत्सव का इस बार कोरोना महामारी के कारण न तो व्यापारिक गतिविधियां हो पाई और न ही सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस बार दशहरा उत्सव देवमहाकुंभ में 281 देवी देवताओं ने हाज़री भरी। लंका दहन की चढ़ाई में इस वर्ष अधिष्ठाता रघुनाथ जी के साथ कई देवी-देवताओं ने भाग लिया। लंकाबेकर में माता हिडिंबा और राज परिवार के सदस्यों द्वारा लंका दहन की रस्म निभाई। इसके लिए जय श्रीराम के उद्घोष के साथ राजपरिवार की दादी कहे जाने वाली माता हिडिंबा सहित अन्य देवियां भी रस्म के लिए आयोजन स्थल पर पहुंची।
लंका पर विजय पाने के बाद भगवान रघुनाथ देवी-देवताओं के साथ अपने मंदिर की ओर रवाना हुए। लंका दहन की परंपरा का निर्वहन करने के बाद रघुनाथ का रथ वापस रथ मैदान की ओर मोड़ा गया। इस दौरान जय सिया राम, हर-हर महादेव के जयकारों के साथ रथ को रथ मैदान में पहुंचाया। रथ की डोर छूने के लिए लोगों की भीड लगी रही। भगवान रघुनाथ रथ मैदान से पालकी में विराजमान होकर रघुनाथपुर लौटे।